रांची: झारखंड में 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता तय करने और राज्य सरकार के थर्ड और फोर्थ ग्रेड की नौकरियों में स्थानीयों को 100% आरक्षण देने से जुड़ा "झारखंड स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और परिणामी सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभों को ऐसे स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिए विधेयक, 2022 " दोबारा सदन से पारित हो गया है.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रस्ताव रखा कि 11 नवंबर 2022 को पारित बिल को उसी स्वरूप में दोबारा पारित किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि अटॉर्नी जनरल का परामर्श तर्कसंगत नहीं है. इस पर महाधिवक्ता से भी राय ली गई है. इस विधेयक के 9वीं अनुसूची में शामिल होने से ज्यूडिशल रिव्यू नहीं हो पाएगा. सीएम ने कहा कि भारत के अटॉर्नी जनरल के हवाले से राज्यपाल ने जो संदेश दिया है, उसका इस विधेयक से कोई लेना ना देना नहीं है.
इस पर नेता प्रतिपक्ष अमर बावरी ने कहा कि इस विधेयक में साफ लिखा हुआ है कि जब तक यह 9वीं अनुसूची में शामिल नहीं होती, तब तक यह व्यवस्था लागू नहीं हो पाएगी. पूर्ववर्ती रघुवर सरकार ने कैबिनेट की बैठक कर स्थानीयता तय की थी. उसी आधार पर आज तक लोगों को नौकरी मिल रही है. इस सरकार ने भी 8000 से ज्यादा जो बहाली की है, वह भी उसी स्थानीयता के आधार पर हुई है.
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि सरकार इस मामले को टालना चाह रही है. इस वजह से 9वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र के पास फेंक कर अपने दायित्व से भाग रही है. सरकार फिर से लटकाने, भटकाने और अटकाने का काम कर रही है. सरकार को एग्जीक्यूटिव ऑर्डर निकालकर तत्काल इसको लागू करना चाहिए. इस बिल की आड़ में सरकार संवैधानिक संकट पैदा करना चाहती है. सरकार को मान लेना चाहिए कि वह नियोजन देने में फेल है.
भाजपा नेता नीलकंठ सिंह मुंडा ने मुख्यमंत्री से जानना चाहा कि 9वीं अनुसूची में इस विधेयक को शामिल करने की आखिर जरूरत क्या है? सर्वे तो अलग-अलग समय में हुआ है, लेकिन सीएम ने कोई जवाब नहीं दिया. जवाब में संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि कैबिनेट के पास 50% से अधिक आरक्षण देने का अधिकार नहीं है. यह मामला कई बार कोर्ट में निरस्त हो चुका है. इस मामले पर बाबूलाल मरांडी ने बोलने की इच्छा जताई लेकिन उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया गया.
पूर्व में इस बिल को हेमंत सरकार ने 11 नवंबर 2022 को विशेष सत्र बुलाकर बहुमत से पारित कराया था. लेकिन लंबे समय तक यह बिल राजभवन में पड़ा रहा. राजभवन ने पहले उस बिल को सरकार को लौटाया था, लेकिन बाद में अपने संदेश के साथ विधानसभा को लौटा दिया था. सत्र के पहले ही दिन बिल वापस किए जाने की वजह से जुड़े राज्यपाल के संदेश को स्पीकर ने सदन में पढ़ा था. इसके बाद सताधारी दलों ने स्पष्ट कर दिया था कि यह बिल दोबारा पारित कराया जाएगा.
क्या कहकर राजभवन ने लौटाया था बिल:राज्यपाल ने विधानसभा को भेजे गये अपने संदेश में कहा था कि सदन से पारित इस बिल को राष्ट्रपति के पास भेजने से पहले भारत के अटार्नी जनरल से राय मांगी गई थी. अटार्नी जनरल की ओर से राजभवन को सुझाव भेजा गया. अटार्नी जनरल का कहना था कि बिल में स्थानीय व्यक्ति शब्द की परिभाषा लोगों की अकांक्षाओं के अनुकूल है. इसमें सांस्कृतिक और स्थानीय परिस्थिति का भी जिक्र है. लेकिन बिल के सेक्सन 6(a) को देखने पर लगता है कि इससे संविधान की धारा 14 और धारा 16(2) का उल्लंघन हो रहा है.