रामगढ़:झारखंड को प्रकृति ने भरपूर संपदा सम्पन्न बनाया है. आदिवासी संस्कृति ने इस संपदा को और समृद्धि दी है. यहां रहने वाले आदिवासियों में एक बेदिया आदिवासी भी इस संस्कृति के अभिन्न हिस्सेदार हैं. बेदिया आदिवासी खुद को हिंदू मानते हैं. 2011 के सर्वे के अनुसार झारखंड में बेदिया आदिवासी की आबादी 1 लाख 61 हजार है. इसमें 48 हजार 885 लोग रामगढ़ में रहते हैं. यानी 50 फीसदी बेदिया आदिवासी रामगढ़ में रहते हैं. रामगढ़ के अलावा रांची, हजारीबाग, बोकारो, गढ़वा ,धनबाद, गिरिडीह, सिंहभूम और जामताड़ा में भी बेदिया आदिवासियों का निवास है.
दामोदर नदी के किनारे लपंगा, चैनगड्ढा, घुटवा, दुर्गी, मसमोहना, बस्ती, कैराबिहार के लोग दामोदर नदी के किनारे रहते हैं. इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्र सिऊर सिद्धवार कंडेर पुरनाडीह कचुदाग में भी बहुतायत आबादी है. अगर रामगढ़ प्रखंड की बात करें, तो सिरका, कहुआबेड़ा, हेसला, मरार, चेटर, कोठार, हुहुआ, लोधमा के साथ ही दुलमी के बहातू, जमीरा, हरहदकंडेर जमुआबेड़ा, गंधोनिया, गोला, बरलंगा पंचायत, मनुवाताड़, पुरबडीह, सरगडीह, अवरडीह, बिरहोरडीह, सोंनडिमरा,चौकड़बेडा, हारूबेड़ा, कोराम्बे, साडम, डुमरडीह, ईचातु, चाडी, बंदा, सुतरी, पोना, मांडू के सांडी पंचायत, पुराना चुंबा पंचायत, मनुवा, फुलसराय में बेदिया जनजाति के लोग रहते हैं.
वक्त के साथ बदला पहनावा
बेदिया जनजाति के लोग आज भी पुराने समय के पहनावे का इस्तेमाल करते हैं. मसलन, धोती, साड़ी, गंजी, झूला यह सभी कपड़े आज भी कई जगहों पर पहने जाते हैं. हालांकि बदलते परिवेश के साथ इनका पहनावा भी आधुनिक होता जा रहा है. बेदिया जनजाति के लोग ज्यातदतर खाने में गोठिकद कंदमूल उपयोग करते हैं. बेदिया मुख्य रूप से धान उपजाते हैं. साथ ही साथ उड़द, कुर्थी, सरसों, सुरगुजा तिल, महुआ के तेल का भी प्रयोग करते हैं. बेदिया जनजाति के लोग पुराने समय से ही पशुपालन भी करते हैं गाय बैल भेड़ बकरी सूअर मुर्गी आदि यह लोग पालते हैं.
पर्दा और तिलक प्रथा नहीं
यदि इनकी पूजा की बात करें तो यह लोग घर में देव कुल की पूजा करते हैं और बलि भी देते है. यह जनजाति करमा, जितिया, सोहराई या सरहुल त्योहार मनाती है. इस जनजाति की मातृभाषा वर्तमान में शोध का विषय है क्योंकि वो जिस क्षेत्र में रहते हैं. वहां उस भाषा का प्रयोग करते हैं. मसलन, खोरठा, नागपुरी, कुरमाली, सदरी संथाली जैसी भाषा का प्रयोग लोग करते हैं. बेदिया जनजाति के लोग एक ही गोत्र में अपनी शादी नहीं करते हैं. इनके कई गोत्र हैं- फेचा, सीडरा, कछुआ, सुईया, वामी, बिहा, महूकल, महुआ मैना और दिया. अगर इनकी खासियत की बात करें, तो इनमें पर्दा प्रथा और तिलक प्रथा नहीं है.
एक गलती पड़ रही भारी
झारखंड के संदर्भ में बेदिया मांझी उपाधि रहने से जाति प्रमाण पत्र निर्गत नहीं होता है. यह समस्या सिल्ली क्षेत्र में बहुत है. बेदिया और बेदेया में अक्षर ऋुटि की वजह से सरकारी योजनाओं का फायदा भी बेदिया आदिवासियों को नहीं मिल पा रहा है. आपको बताते चलें कि रामगढ़ जिले में बेदिया जनजाति के लोग मुक्त पहाड़ों के किनारे-किनारे पड़ने वाले गांव में ही रहते हैं. कई गांव में तो अब तक सड़क तक नहीं पहुंच पाई है. यदि बात करें रामगढ़ के परिपेक्ष में बात करें तो यहां सिउर, मसमोहना, बारीडीह में इनकी बहुत ज्यादा आबादी है. पीरी पंचायत के दो तीन गांव को विशेष दर्जा भी दिया गया है. यहां के मुखिया भी बेदिया जनजाति की गंगाधर बेदिया हैं.