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विश्व आदिवासी दिवसः यहां बसती है बेदिया आदिवासियों की आधी आबादी, एक गलती पड़ रही भारी

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Published : Aug 8, 2019, 1:44 PM IST

बेदिया जनजाति के लोग आज भी पुराने समय के पहनावे का इस्तेमाल करते हैं. मसलन धोती, साड़ी, गंजी, झूला यह सभी कपड़े आज भी कई जगहों पर पहने जाते हैं. हालांकि बदलते परिवेश के साथ इनका पहनावा भी आधुनिक होता जा रहा है. बेदिया जनजाति के लोग ज्यातदतर खाने में गोठिकद कंदमूल उपयोग करते हैं. बेदिया मुख्य रूप से धान उपजाते हैं. साथ ही साथ उड़द, कुर्थी, सरसों, सुरगुजा तिल, महुआ के तेल का भी प्रयोग करते हैं. बेदिया जनजाति के लोग पुराने समय से ही पशुपालन भी करते हैं गाय बैल भेड़ बकरी सूअर मुर्गी आदि यह लोग पालते हैं.

यहां बसती है बेदिया आदिवासियों की आधी आबादी, एक गलती पड़ रही भारी

रामगढ़:झारखंड को प्रकृति ने भरपूर संपदा सम्पन्न बनाया है. आदिवासी संस्कृति ने इस संपदा को और समृद्धि दी है. यहां रहने वाले आदिवासियों में एक बेदिया आदिवासी भी इस संस्कृति के अभिन्न हिस्सेदार हैं. बेदिया आदिवासी खुद को हिंदू मानते हैं. 2011 के सर्वे के अनुसार झारखंड में बेदिया आदिवासी की आबादी 1 लाख 61 हजार है. इसमें 48 हजार 885 लोग रामगढ़ में रहते हैं. यानी 50 फीसदी बेदिया आदिवासी रामगढ़ में रहते हैं. रामगढ़ के अलावा रांची, हजारीबाग, बोकारो, गढ़वा ,धनबाद, गिरिडीह, सिंहभूम और जामताड़ा में भी बेदिया आदिवासियों का निवास है.

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दामोदर नदी के किनारे लपंगा, चैनगड्ढा, घुटवा, दुर्गी, मसमोहना, बस्ती, कैराबिहार के लोग दामोदर नदी के किनारे रहते हैं. इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्र सिऊर सिद्धवार कंडेर पुरनाडीह कचुदाग में भी बहुतायत आबादी है. अगर रामगढ़ प्रखंड की बात करें, तो सिरका, कहुआबेड़ा, हेसला, मरार, चेटर, कोठार, हुहुआ, लोधमा के साथ ही दुलमी के बहातू, जमीरा, हरहदकंडेर जमुआबेड़ा, गंधोनिया, गोला, बरलंगा पंचायत, मनुवाताड़, पुरबडीह, सरगडीह, अवरडीह, बिरहोरडीह, सोंनडिमरा,चौकड़बेडा, हारूबेड़ा, कोराम्बे, साडम, डुमरडीह, ईचातु, चाडी, बंदा, सुतरी, पोना, मांडू के सांडी पंचायत, पुराना चुंबा पंचायत, मनुवा, फुलसराय में बेदिया जनजाति के लोग रहते हैं.

वक्त के साथ बदला पहनावा

बेदिया जनजाति के लोग आज भी पुराने समय के पहनावे का इस्तेमाल करते हैं. मसलन, धोती, साड़ी, गंजी, झूला यह सभी कपड़े आज भी कई जगहों पर पहने जाते हैं. हालांकि बदलते परिवेश के साथ इनका पहनावा भी आधुनिक होता जा रहा है. बेदिया जनजाति के लोग ज्यातदतर खाने में गोठिकद कंदमूल उपयोग करते हैं. बेदिया मुख्य रूप से धान उपजाते हैं. साथ ही साथ उड़द, कुर्थी, सरसों, सुरगुजा तिल, महुआ के तेल का भी प्रयोग करते हैं. बेदिया जनजाति के लोग पुराने समय से ही पशुपालन भी करते हैं गाय बैल भेड़ बकरी सूअर मुर्गी आदि यह लोग पालते हैं.

पर्दा और तिलक प्रथा नहीं

यदि इनकी पूजा की बात करें तो यह लोग घर में देव कुल की पूजा करते हैं और बलि भी देते है. यह जनजाति करमा, जितिया, सोहराई या सरहुल त्योहार मनाती है. इस जनजाति की मातृभाषा वर्तमान में शोध का विषय है क्योंकि वो जिस क्षेत्र में रहते हैं. वहां उस भाषा का प्रयोग करते हैं. मसलन, खोरठा, नागपुरी, कुरमाली, सदरी संथाली जैसी भाषा का प्रयोग लोग करते हैं. बेदिया जनजाति के लोग एक ही गोत्र में अपनी शादी नहीं करते हैं. इनके कई गोत्र हैं- फेचा, सीडरा, कछुआ, सुईया, वामी, बिहा, महूकल, महुआ मैना और दिया. अगर इनकी खासियत की बात करें, तो इनमें पर्दा प्रथा और तिलक प्रथा नहीं है.

एक गलती पड़ रही भारी

झारखंड के संदर्भ में बेदिया मांझी उपाधि रहने से जाति प्रमाण पत्र निर्गत नहीं होता है. यह समस्या सिल्ली क्षेत्र में बहुत है. बेदिया और बेदेया में अक्षर ऋुटि की वजह से सरकारी योजनाओं का फायदा भी बेदिया आदिवासियों को नहीं मिल पा रहा है. आपको बताते चलें कि रामगढ़ जिले में बेदिया जनजाति के लोग मुक्त पहाड़ों के किनारे-किनारे पड़ने वाले गांव में ही रहते हैं. कई गांव में तो अब तक सड़क तक नहीं पहुंच पाई है. यदि बात करें रामगढ़ के परिपेक्ष में बात करें तो यहां सिउर, मसमोहना, बारीडीह में इनकी बहुत ज्यादा आबादी है. पीरी पंचायत के दो तीन गांव को विशेष दर्जा भी दिया गया है. यहां के मुखिया भी बेदिया जनजाति की गंगाधर बेदिया हैं.

बच्चों की पढ़ाई में सड़क का रोड़ा

वर्तमान हालात को देखें तो बारीडीह जाने के लिए रास्ते का अभाव है. वहां के बच्चे बच्चियों को पढ़ने का बेहद शौक है, लेकिन रोजाना 6 से 7 किलोमीटर तक पैदल चलकर स्कूल तक आना पड़ता है, जिससे वो रोज स्कूल नहीं आ पाते हैं. खासकर बरसात के दिनों में पहाड़ी क्षेत्रों में खतरा बना रहता है. कई बच्चियों से बात करने पर पता चला कि उन्हें न ही साइकिल मिली है और न ही किसी भी तरह का कोई सरकार की ओर से मदद मुहैया कराई गई है.

गांव से सड़क जुड़ने पर मिलेगी सहूलियत

गांव वालों की बात करें तो फसल तो होती है, लेकिन उसे बाजार तक लाने का अब तक कोई ठोस प्रबंध नहीं किया गया है. इसके कारण वो लोग अपने बोरे में सब्जियों को माथे पर लेकर 6 से 7 किलोमीटर तक पहाड़ पार करते हुए शहर आते हैं और फिर सामान बेचकर वापस जाते हैं. इस वजह से वो घर पर बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते हैं. उन लोगों की मांग है कि अगर मुख्य सड़क से गांव को जोड़ दी जाए, तो काफी सहूलियत हो जाएगी.

कृषि आधारित हैं बेदिया जनजाति

हालांकि बेदिया जनजाति के नेताओं का कहना है कि रहन-सहन में तो परिवर्तन हुआ है, लेकिन आज भी कृषि आधारित ही बहुतायत लोग हैं. अब खपड़े के मकान से पक्का मकान होने लगे हैं, आधुनिक खेती भी करने लगे हैं. हालांकि जिस तरह अन्य जाति और जनजाति के लोगों का विकास हुआ है. उस तरह बेदिया जनजाति का विकास नहीं हो पाया है.

सरकार पर भेदभाव का आरोप

बेदिया जनजाति के केंद्रीय अध्यक्ष शंकर बेदिया ने कहा कि सरकार हमारे साथ भेदभाव बरत रही है. जीवन स्तर जिस तरह होना चाहिए वर्तमान परिस्थिति में उस तरह का नहीं हो पाया है. लोग एक दूसरे को देखकर पढ़ लिख रहे हैं, लेकिन वर्तमान में उनका बौद्धिक स्तर नहीं बढ़ पाया है. इस वजह से अभी भी वो काफी पिछड़े हैं. सरकार को चाहिए कि जिस तरह अन्य जनजाति को सुविधा दी जा रही हैं, वैसे ही बेदिया जनजाति को भी सुविधा दें. इससे जीवन स्तर में तेजी से सुधार हो और विकास की गति को तेज कर सकें.

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