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रामगढ़ के किसान डेगलाल ने आपदा में तलाशा अवसर, बतख पालन से बने आत्मनिर्भर, अब दे रहे रोजगार

कोरोना बीमारी की वजह से जहां कई लोग बेरोजगार हो गए. वहीं कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने इस आपदा के काल को अवसर का समय बना दिया. आज वो खुद तो आत्मनिर्भर हैं ही, कई लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं. ऐसे ही एक किसान हैं रामगढ़ के डेगलाल मुंडा.

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Published : Jun 29, 2022, 4:49 PM IST

Ramgarh farmer Degalal Munda
Ramgarh farmer Degalal Munda

रांचीः आज के समय में खेती-बाड़ी के साथ–साथ पशुपालन का करोबार भी एक सफल कारोबार के रूप में उभरकर कर सामने आ रहा है. कोरोना महामारी ने जहां पूरे देश में आपदा जैसी स्थिति पैदा कर दी, वहीं कुछ लोगों ने इसे अवसर में बदलकर मिसाल पेश किया है. रामगढ़ जिले के सरैया गांव के किसान डेगलाल मुंडा ने कोरोना काल में बत्तख पालन की शुरुआत की और गांव के कई लोगों को रोजगार भी दिया. शुरुआती दौर में उन्हें मुनाफा जरूर हुआ लेकिन बाद में इन्हें कुछ नुकसान भी उठाना पड़ा.

रामगढ़ जिला अंतर्गत रामगढ़ प्रखंड में अधिकतर किसान धान की खेती करते हैं. सब्जी की खेती बहुत बहुत ही कम किसान कर पाते हैंं यहां भौगोलिक स्थिति भी ऐसी है कि यहां पर सालोंभर खेती करना आसान नहीं है. अधिकांश जमीन यहां पर ऊपरी जमीन है. जहां खेती करना आसान नहीं होता है. ऐसे में सरैया गाव के युवक डेगलाल मुंडा बत्तख पालन से अच्छी आमदनी कर दूसरे युवाओं के लिए रोजगार के रास्ते भी दिखा रहे हैं.

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पशुपालन एक ऐसा कारोबार है जिसमें आपको मुनाफा भी होता है और कई लोगों को आप रोजगार भी देते हैं. बत्तख के अंडे और मांस दोनों में प्रोटीन की मात्रा काफी अधिक पाई जाती है. मार्केट में भी इसकी डिमांड रहती है. जिससे किसानों की आय में भी अच्छा खासा इजाफा हो रहा है. बत्तख के अंडे का वजन करीब 15 से 20 ग्राम प्रति अंडा होता है. बतख के अंडे का छिलका बहुत मोटा होता है, इसलिए टूटने का डर भी कम रहता है सरैया गांव के किसान डेगलाल मुंडा बताते हैं कि इंटरनेट और आत्मा के तकनीकी जानकार से जानकारी ले कर कोरोना काल में रिस्क लेकर खड़गपुर से खाकी कैम्पवेल बतख के 1000 बच्चों को मंगाकर पालन शुरू किया. शुरुआती दौर में परेशानी तो आई लेकिन धीरे धीरे जब यह बड़े होने लगे तब इनसे मुनाफा भी हुआ, लेकिन बीच में बीमारी के कारण अचानक आधे से अधिक बत्तख उसके शिकार हो गए. जिसके कारण उन्हें नुकसान भी उठाना पड़ा. वर्तमान में 300 से 400 तक बतख बचे हुए हैं. इन्हीं की देखरेख कर रहे हैं. फिर से बत्तख के चूजे को मंगाने क्या प्रयास कर रहे हैं. बत्तख पालन से इनकी आय भी बढ़ी है.आत्मा के प्रखंड तकनीकी प्रबंधक चंद्रमौली जी ने बताया कि हम लोगों से जब राय ली गई तो हम लोगों ने इन्हें तकनीकी तौर पर देखरेख और बत्तख पालन के संबंध में जानकारी दी और आज वह अपने बल पर हम लोगों की देखरेख में बतख पालन कर अपने आय को दोगुनी कर रहे हैं. साथ ही साथ कई लोगों को रोजगार भी दे रखा है यह काफी अहम है. वहीं स्थानीय लोगों ने भी कहा कि हम लोग पारंपरिक खेती तो गांव में कर ही रहे हैं, लेकिन बतख पालन, मछली पालन जैसे रोजगार हमारे आय को दोगुनी करते हैं.

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