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जानिए दुनिया की सबसे बड़ी शक्तिपीठ की रहस्यमयी कहानी, जहां बिना सिर वाली देवी की होती है अराधना - mysterious story of Chinnmastike Devi of Ramgarh

झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर मां छिन्नमस्तिके का यह मंदिर है. रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर आस्था की धरोहर है. यह शक्तिपीठ भारत के दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में विख्यात मां छिन्नमस्तिके मंदिर काफी लोकप्रिय है.

histoy of rajrappa temple in ramgarh
राजरप्पा मंदिर का इतिहास

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Published : Jul 27, 2020, 10:02 PM IST

Updated : Jul 28, 2020, 10:20 PM IST

रामगढ़:जिला में मां छिन्नमस्तके देवी का मंदिर स्थित है, जो झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर दूर रजरप्पा में स्थित है. ये मंदिर शक्तिपीठ के रूप में विख्यात है. छिन्नमस्तिके मंदिर में बिना सिर वाली देवी मां की पूजा की जाती है. मान्यता है कि मां इस मंदिर में आए सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं.

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विराजमान है मां काली का रूप

मंदिर के अंदर जो देवी काली की प्रतिमा है, उसमें उनके दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है. शिलाखंड में मां की तीन आंखें हैं. इसके साथ ही वह बायां पैर आगे की ओर बढ़ाए हुए कमल पुष्प पर खड़ी हुईं हैं. इनके अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं, जिन्हें वह रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं. इनके गले से रक्त की तीन धाराएं बह रही हैं.

क्‍या है इस रूप की कहानी

माता का सिर काटने के पीछे एक पौराणिक कथा है. कहा जाता है कि एक बार मां भवानी अपनी दो सहेलियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं थीं. उस दौरान स्नान करने के बाद उनकी सहेलियों को तेज भूख लगी और वे भूख से बेहाल होने लगी. भूख की वजह से उनकी सहेलियों का रंग काला पड़ने लगा था. इसके बाद उन दोनों ने माता से भोजन देने के लिए कहा, लेकिन माता ने जवाब में कहा कि वे थोड़ा सब्र और इंतजार करें. लेकिन उनको भूख इतनी ज्यादा लगी थी कि वे तड़पने लगीं. जिसके बाद मां भवानी ने खड्ग से अपना सिर काट दिया. सिर काटने के बाद माता का कटा हुआ सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा और उसमें से खून की तीन धाराएं बहने लगीं. माता ने सिर से निकली उन दो धाराओं को अपनी दोनों सहेलियों की ओर बहा दिया. बाकी को खुद पीने लगीं. तभी से मां के इस रूप को छिन्नमस्तिका नाम से पूजा जाने लगा.

मंदिर की खूबसूरती लगाती है चार चांद

रजरप्पा का यह सिद्धपीठ केवल एक मंदिर के लिए ही विख्यात नहीं है. छिन्नमस्तिके मंदिर के अलावा यहां महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंग बली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल 7 मंदिर हैं. पश्चिम दिशा से दामोदर तथा दक्षिण दिशा से कल-कल करती भैरवी नदी का दामोदर में मिलना मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है. दामोदर और भैरवी के संगम स्थल के समीप ही मां छिन्नमस्तिके का मंदिर स्थित है. मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए माता छिन्नमस्तिके का दिव्य रूप अंकित है.

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भक्तों कि मनोकामना पूरी करती हैं मां

कई सालों तक पौराणिक महत्व की यह जगह घने जंगलों में खो सी गयी थी. फिर अचानक कुछ ऐसी घटनाएं घटी की ये मंदिर फिर से चर्चा का विषय बना. रामगढ़ राजा सूरत की अचानक राजपाट उनसे छीन गयी और वह अपनी जान बचाते हुए रजरप्पा के इसी क्षेत्र के घने जंगलों में अपना बसेरा बना लिया. एक दिन राजा सूरत को मां ने सपने में दर्शन दिया और कहा की यहां पूजा अर्चना करने से तेरे दोखों का अंत होगा. कई साल के जंगल वनवास के दौरान राजा सूरत ने इसी स्थान पर पूजा अर्चना की और अपना राज पाट दुबारा हासिल किया. तब से लोगों का मानना है कि सच्चे मान से पूजा कराने पे मां भक्तों कि मनोकामना पूरी करती हैं.

रजरप्पा आस्था और प्रकति की ऐसी संगमस्थली है, जो यहां आने वाले सैलानियों को मंत्र-मुग्ध कर देती है, जो सैलानियों को बार-बार आनें पर विवश कर देता है, ऐसा कभी न भूलने वाला धार्मिक स्थल है रजरप्पा का छिनमस्तिके मंदिर.

Last Updated : Jul 28, 2020, 10:20 PM IST

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