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जानिए रामगढ़ के हाइटेक किसान की कहानी, इंटर क्रॉपिंग सिस्टम से हो रहे मालामाल - Inter cropping method in Ramgarh

रामगढ़ समेत पूरे झारखंड में इन दिनों किसान हाइटेक खेती की ओर बढ़ रहे हैं. परंपरागत खेती को छोड़कर बड़े किसान हॉर्टिकल्चर की ओर रुझान कर रहे हैं. जिससे इन किसानों को काफी फायदा हो रहा हैं. आज हम एक ऐसे ही किसान परिवार के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जो तरबूज, करैला समेत अन्य सब्जियों की खेती कर अपने जीवन स्तर को बेहतर कर रहे हैं.

Hitech farmer of Ramgarh
किसान मिथिलेश की कहानी

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Published : May 20, 2020, 2:38 PM IST

रामगढ:जिले के युवा किसान मिथलेश ने उन्नत कृषि तकनीकों को अपनाकर खेती को आमदनी का बेहतर जरिया बना लिया है. मिथलेश ने मांडू प्रखंड के मुरपा में लगभग 5 एकड़ की जमीन लीज पर लेकर उसमें लगभग 3 एकड़ में तरबूज की फसल लगाई थी. हाइटेक तरीके से की गई तरबूज की खेती काफी सफल रही और इसका परिणाम यह रहा कि फसल काफी अच्छी हुई, लेकिन लॉकडाउन के कारण जिले से बाहर तरबूज नहीं जाने के कारण इन्हें मुनाफा तो नहीं हुआ लेकिन नुकसान भी नहीं हुआ है.

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इनका कहना है कि लॉकडाउन के नियम सबके लिए सामान्य हैं, इस बार फायदा नहीं हुआ तो अगली बार इसकी भरपाई कर लेंगे लेकिन नुकसान नहीं हुआ है. खेती के प्रति झुकाव, उन्नत और नई तकनीक से खेती करने के जज्बे के कारण मिथिलेश आज उन्नतशील किसान बन गए हैं. मन में लगन और मेहनत के अलावा समय के साथ खुद को बदलने की चाह हो तो कुछ भी अंसभव नहीं है.

हरा-भरा करैले का पौधा

मुर्रामकला के रहने वाले मिथिलेश

ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई करने के बाद कई जगहों पर नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटके और कई जगहों पर नौकरी भी की, लेकिन अंत में उन्हें खेती की ओर झुकाव हुआ और फिर रामगढ़ कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन अभिकरण 'आत्मा' के संपर्क में आए. जहां उन्हें आधुनिक तरीके से खेती करने के लिए प्रेरित किया गया. धीरे-धीरे वह अपने छोटे से खेत में उस तकनीक को अपनाकर खेती करने लगे.

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कुछ दिन बाद उन्होंने लगभग 5 एकड़ की जमीन किराये पर ली और फिर उसमें अंतरवर्तीय फसल के रूप में तरबूज के साथ स्वीट कॉर्न मकई के साथ करैला, खीरा और टमाटर का प्रयोग किया, जो सफल रहा. इस खेत में बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति के साथ मल्चिंग का भी सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया. यही नहीं जैविक खेती की सारी पद्धति का भी अनुसरण किया, क्योंकि उत्पादन में टिकाऊपन जैविक खेती से लाया जा सकता है. साथ ही साथ मिट्टी की गुणवत्ता भी बनी रहती है.

तरबूज की खेती

अप्रैल से कर रहे तरबूज की खेती

मिथिलेश बताते हैं कि कई लोगों को हाइटेक खेती करते हुए देखा, तो उनका रुझान भी इसकी ओर हुआ. इसके बाद उन्होंने भी हाइटेक खेती शुरू की. सबसे पहले उन्हें खेत में ड्रिप इरीगेशन की व्यवस्था कर पौधे लगाकर उन्होंने खेत में मल्चिंग की और लो टनल बनाया. जिससे पौधे सर्दी गर्मी और बारिश से बच सकें. मिथिलेश ने अप्रैल से इस खेती की शुरुआत की है.

हालांकि लॉकडाउन के कारण शुरुआत में काफी परेशान रहे थे व्यपारी नहीं पहुंच रहे थे, लेकिन अगल-बगल के किसान खेत से ही उनकी तरबुज को बाजार में ले जाकर बेच रहे हैं. उनका कहना है कि इस बार मुनाफा तो नहीं हुआ लेकिन नुकसान भी नहीं हुआ है. परंपरागत खेती में लागत बढ़ने के चलते लाभ बेहद कम हो गया है. इसलिए किसानों को खेती के हाइटेक तौर तरीके अपनाने चाहिए. जिससे खेती घाटे के बजाए लाभकारी साबित होगी और युवा किसानों को खेती से हो रहा मोहभंग भी रुकेगा.

अपनी पैदावार बेचते किसान मिथिलेश

इन सब्जियों की कर रहे हैं खेती

किसान मिथिलेश नई तकनीक से मकई, करैला, छप्पन कद्दू, तरोई, झींगी, खीरा, शिमला मिर्च और टमाटर की खेती कर रहे हैं. उन्होंने सिंचाई के लिए ड्रीप इरीगेशन की व्यवस्था की हुई है. कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन अभिकरण 'आत्मा' के उप परियोजना निदेशक चंद्रमौली ने बताया कि मिथिलेश को आत्मा ने कई जगहों पर ट्रेनिंग के लिए भेजा और हाइटेक तकनीक का उपयोग कर कृषि करने के लिए प्रेरित भी किया. जिसका नतीजा यह है कि आज मिथिलेश इतने बड़े पैमाने पर तरबूज की खेती कर रहे हैं.

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उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में रामगढ़ तरबूज के लिए हब के रूप में जाना जाएगा. यहां से भी तरबूज अन्य राज्यों में भेजे जाएंगे क्योंकि उन्नत किस्म के तरबूज यहां हो रहे हैं. मिथिलेश तरबूज की खेती में नई तकनीक का प्रयोग कर अच्छा लाभ कमा रहे हैं. अंतरवर्तीय (इंटरक्रॉपिंग) जिसमें एक प्लॉट पर ही एक समय में दो या दो से अधिक किस्म के पौधे उगाए जाते हैं, क्षेत्र के किसानों को उनसे प्रेरणा लेकर खेती में नई तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए.

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