रामगढ़ः कृषि कानून पर जारी गतिरोध के बीच खेत खलिहानों से कुछ ऐसी खबर आती है जो बताती है कि किसान 21वीं सदी में अपनी आमदनी को लेकर काफी गंभीर है. इसकी महत्व उन स्थानों पर खाफी बढ़ जाती है, जहां प्रकृति ने पहले से ही अकूत खनिज संपदा स्थानीय लोगों को सौगात में दी है. बावजूद इसके इस क्षेत्रों के किसान भी अपनी सीमित जमीन पर नई फसलों का प्रयोग कर अपनी आमदनी को बढ़ाने के लिए आतुर है. ऐसा ही कुछ नजारा इन दिनों रामगढ़ जिले में देखने को मिल रहा है. जहां के किसान पर्वतीय भागों जैसे नैनीताल, देहरादून, हिमाचल प्रदेश, महाबलेश्वर, महाराष्ट्र, नीलगिरी और दार्जिलिंग जैसे प्रदेश में होने वाली स्ट्राबेरी की खेती कर रहे हैं. इस खेती से वह लागत का चार गुना फायदा 4 माह के अंदर उठा रहे हैं.
टपक विधि से रामगढ़ के किसान कर रहे स्ट्रॉबेरी की खेती, हो रहा मुनाफा - रामगढ़ में किसान कर रहे स्ट्रॉबेरी की खेती
ठंडे इलाके में पैदा होने वाली स्ट्रॉबेरी अब झारखंड के सुदूरवर्ती क्षेत्र गोला दुलमी और रामगढ़ प्रखंड में भी होने लगी है. प्रखंड के कई गांवों के किसान टपक विधि से अपनी सीमित जमीन में इसकी खेती कर रहे हैं.
आम तौर पर मनमोहक लाल स्ट्रॉबेरी ठंडे इलाके की पैदावार मानी जाती है, लेकिन यह फल अब गोला, दुलमी और रामगढ़ प्रखंड के खेतों में भी अपनी लालीमा बिखेर रही है. किसानों ने अपनी मेहनत और लगन के बल पर यह कारनामा कर दिखाया है. प्रखंड के पांच गांवों जामसिंग, भैपुर, उसरा, गोडान्तु और कुसुमभा कुस्टेगढ़ा में किसान कम पूंजी में इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.
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आंखों और हड्डियों के इलाज के लिए फायदेमंद
इस संबंध में किसान हरीश कुमार ने बताया कि रांची, बोकारो, रामगढ़ के बाजार में इसकी अच्छी मांग है. चार से पांच सौ रुपये किलो तक इसकी मांग है. वहीं लोग इसको आंखों और हड्डियों के इलाज के लिए खेतों से ही खरीद कर ले जा रहे हैं. यह फल शुद्ध रूप में खेतों में मिल रहे हैं. जिले के गोला प्रखंड के कुसटेगढा में किसान वासुदेव ने इसकी शुरुआत आधा एकड़ जमीन से की है. खेतों में लग रहे फल और मुनाफा को देखते हुए इन्होंने अगली बार 1 एकड़ में इसकी खेती करने की योजना बना रहे है. वहीं इनसे प्रेरणा पाकर और भी कई किसान स्ट्रॉबेरी की खेती करने का मन बना चुके हैं.
कैसे होती है स्ट्रॉबेरी की खेती
नवंबर महीने में की जाने वाली इस खेती में कुछ सावधानियों की जरूरत होती है. जब फरवरी और मार्च में इसमें फल आते है तो फल का मिट्टी से संपर्क न हो इसके लिए प्लास्टिक से पौधे के फल वाली जगहों का ढका जाता है.