रामगढ़: शारदीय नवरात्र की हर जगह धूम है. इस बार 9 दिन में नौ अद्भुत और मंगलकारी संयोग मिल रहे हैं. दो दिन अमृत सिद्धि, दो दिन सर्वार्थ सिद्धि, दो दिन रवि योग मिलेंगे. दो सोमवार भी होंगे जो शिव-शक्ति के प्रतीक हैं. रजरप्पा में मां छिन्नमस्तिके मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है.
वीडियो में देखें ये स्पेशल स्टोरी कामाख्या के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ के रूप में विख्यात मां छिन्नमस्तिके मंदिर काफी लोकप्रिय है. झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 79 किलोमीटर की दूरी पर मां छिन्नमस्तिके का यह मंदिर हैं. रजरप्पा के भैरवी और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर आस्था की धरोहर है. इसके अलावा यहां महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल 7 मंदिर हैं. पश्चिम दिशा से दामोदर तथा दक्षिण दिशा से कल-कल करती भैरवी नदी का दामोदर में मिलना मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है.
महाभारत युग का है मंदिर
दामोदर और भैरवी के संगम स्थल के पास ही मां छिन्नमस्तिके का मंदिर स्थित है. मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए माता छिन्नमस्तिके का दिव्य स्वरूप है. मंदिर के निर्माण काल के बारे में पुरातात्विक विशेषज्ञों में मतभेद है. किसी के अनुसार मंदिर का निर्माण 6 हजार साल पहले हुआ तो कोई इसे महाभारत युग का मानता है. यह मंदिर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है. असम स्थित मां कामाख्या मंदिर को सबसे बड़ी शक्तिपीठ माना जाता है.
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सुबह से ही लगता है भक्तों का तांता
मंदिर में सुबह 4 बजे से माता का दरबार सजना शुरू होता है. भक्तों की भीड़ भी सुबह से पंक्तिबद्ध खड़ी रहती है. इस भीड़ को संभालने और माता के दर्शन को सुलभ बनाने के लिए आवश्यकता पड़ने पर स्थानीय पुलिस भी मदद करती है. मंदिर के आसपास ही फल-फूल, प्रसाद की कई छोटी-छोटी दुकानें हैं. आमतौर पर लोग यहां सुबह आते हैं और दिनभर पूजा-पाठ और मंदिरों के दर्शन करने के बाद शाम होने से पहले ही लौट जाते हैं.
अद्भुत है पापनाशिनी कुंड
मां छिन्नमस्तिके मंदिर के अंदर स्थित शिलाखंड में मां की तीन आंखें हैं. बायां पांव आगे की ओर बढ़ाए हुए वह कमल पुष्प पर खड़ी हैं. पांव के नीचे विपरीत मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं. मां छिन्नमस्तिके का गला सर्पमाला और मुंडमाल से सुशोभित है. बिखरे और खुले केश, आभूषणों से सुसज्जित मां दिव्य रूप में हैं. दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना ही कटा मस्तक है. इनके अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं. जिन्हें वह रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं. इनके गले से रक्त की तीन धाराएं बह रही हैं. मंदिर का मुख्य द्वार पूरब मुखी है. मंदिर के सामने बलि का स्थान है. मंदिर की भित्ति 18 फीट नीचे से खड़ी की गई है. नदियों के संगम के मध्य में एक अद्भुत पापनाशिनी कुंड है, जो रोगग्रस्त भक्तों को रोगमुक्त कर उनमें नवजीवन का संचार करता है.
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मनोहारी है भैरवी और दामोदर नदी का संगम स्थल
भक्त दामोदर में स्नान कर मंदिर में जा सकते हैं. दामोदर और भैरवी नदी का संगम स्थल भी अत्यंत मनोहारी है. भैरवी नदी स्त्री नदी मानी जाती है, जबकि दामोदर पुरुष. संगम स्थल पर भैरवी नदी ऊपर से नीचे की ओर दामोदर नदी के ऊपर गिरती है. कहा जाता है कि जहां भैरवी नदी दामोदर में गिरकर मिलती है उस स्थल की गहराई अब तक किसी को पता नहीं है.मां छिन्नमस्तिके की महिमा की कई पुरानी कथाएं प्रचलित हैं. प्राचीन काल में छोटानागपुर में रज नामक एक राजा राज करते थे. राजा की पत्नी का नाम रूपमा था. इन्हीं दोनों के नाम से इस स्थान का नाम रजरूपमा पड़ा, जो बाद में रजरप्पा हो गया.
राजा दामोदर को मां छिन्नमस्तिके ने दिए दर्शन
एक कथा के अनुसार एक बार पूर्णिमा की रात में शिकार की खोज में राजा दामोदर और भैरवी नदी के संगम स्थल पर पहुंचे. रात्रि विश्राम के दौरान राजा ने स्वप्न में लाल वस्त्र धारण किए तेज मुखमंडल वाली एक कन्या देखी. उसने राजा से कहा - हे राजन, इस आयु में संतान न होने से तेरा जीवन सूना लग रहा है. मेरी आज्ञा मानोगे तो रानी की गोद भर जाएगी. राजा की आंखें खुलीं तो वह इधर-उधर भटकने लगे. इस बीच उनकी आंखें स्वप्न में दिखी कन्या से जा मिलीं. वह कन्या जल के भीतर से राजा के सामने प्रकट हुई. उसका रूप अलौकिक था. यह देख राजा भयभीत हो उठे.
रजरप्पा के रूप में विख्यात
राजा को देखकर देख वह कन्या कहने लगी- हे राजन, मैं छिन्नमस्तिके देवी हूं. कलियुग के मनुष्य मुझे नहीं जान सके, जबकि मैं इस वन में प्राचीन काल से गुप्त रूप से निवास कर रही हूं. मैं तुम्हें वरदान देती हूं कि आज से ठीक नौवें महीने तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी. हे राजन, मिलन स्थल के पास तुम्हें मेरा एक मंदिर दिखाई देगा. इस मंदिर के अंदर शिलाखंड पर मेरी प्रतिमा अंकित दिखेगी. तुम सुबह मेरी पूजा करके बलि चढ़ाओ. ऐसा कहकर छिन्नमस्तिके अंतर्ध्यान हो गईं. इसके बाद से ही यह पवित्र तीर्थ रजरप्पा के रूप में विख्यात हो गया.
डाकिनी और शाकिनी की भूख शांत करने के लिए कराया रक्तपान
एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार भगवती भवानी अपनी सहेलियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं. स्नान करने के बाद भूख से उनका शरीर काला पड़ गया. सहेलियों ने भी भोजन मांगा. देवी ने उनसे थोड़ी देर प्रतीक्षा करने को कहा. इसके बाद सहेलियों के विनम्र आग्रह पर उन्होंने दोनों की भूख मिटाने के लिए अपना सिर काट लिया. कटा सिर देवी के हाथों में आ गिरा और गले से तीन धाराएं निकलीं. वह दो धाराओं को अपनी सहेलियों की ओर प्रवाहित करने लगीं, तभी से ये छिन्नमस्तिके कही जाने लगीं.