पलामूः 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस (International Day of the World Indigenous Peoples) है. अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में आदिवासी योद्धाओं की कई कहानियां हैं. 1857 की क्रांति में आदिवासी भोक्ताओं का विद्रोह काफी महत्वपूर्ण (Korwa rebellion of Palamu) रहा है. उस समय के कुछ काले अध्याय भी हैं जो बताते हैं कि उस दौरान अंग्रेजों ने आदिवासियों के दमन के लिए किस तरह कदम उठाए थे.
इसे भी पढ़ें- विश्व आदिवासी दिवस: झारखंड की सत्ता में रहकर भी धरती पुत्र के सपने हैं अधूरे, कहां रूके, कहां फंसे, कहां बढ़ना जरूरी
पलामू में आदिवासियों की क्रांति (rebellion of Palamu) को दबाने के लिए एक राजा की मदद लेकर अंग्रेजों ने एक साथ छह हजार कोरवा का सिर कलम करवा दिया था. यह सामूहिक हत्या महुआडांड़, गारु और पलामू के सीमावर्ती इलाके में की गयी थी. इस घटना का जिक्र प्रसिद्ध इतिहासकार और लेखक हवलदारी रामगुप्त 'हलधर' ने पलामू का इतिहास नामक किताब में किया है. इस किताब के 155, 156 और 157 पेज में इसका जिक्र है. प्रोफेसर एससी मिश्रा बताते हैं कि किताब में लिखे गए तथ्यों का शोध जरूरी है. हवलदारी रामगुप्त का लिखी गई बातें काफी महत्वपूर्ण हैं.
कोरवा का सिर काटने वाले को कहा गया सिरकटवा राजाः 6000 कोरवा का सिर कलम करने का इतिहास यहां के तत्कालीन राजा जयप्रकाश नारायण सिंह (Raja Jaiprakash Narayan Singh) से जुड़ा हुआ है. 1857 की क्रांति के समय पलामू के इलाके में कोरवा का विद्रोह शुरू हुआ था. राजा जयप्रकाश नारायण सिंह ने तत्कालीन कमिश्नर को पत्र लिखकर विद्रोहियों का दमन करने में मदद करने की बात कही थी. स्वीकृति मिलने के बाद राजा कोरवा के साथ मिलकर अंग्रेजों खिलाफ लड़ाई में सभी को विश्वास में लिया. एक दिन मौका देखकर राजा ने सभी विद्रोहियों को खूब शराब पिलाई. शराब पीने के बाद विद्रोही बेहोश हो गए, राजा ने इस दौरान करीब छह हजार कोरवा का सिर कटवा दिए. सुबह बचे हुए कोरवा इस जघन्य हत्याकांड को देखकर वहां से भाग गए.
इस घटना के लिए अंग्रेजों ने राजा जयप्रकाश नारायण सिंह को GCIOBE की उपाधि दी थी. किताब में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि इस घटना के बाद राजा की तीसरी पारी आते-आते पूरे कुल का सर्वनाश हो गया. देव राजा जयप्रकाश नारायण सिंह को अंग्रेजों ने कई इलाके दिए थे. जब राजा जयप्रकाश नारायण सिंह कई स्टेट में कर वसूली के लिए पहुंचे तो वहां कहा गया कि विश्रामपुर स्टेट से पहले कर वसूले. लेकिन विश्रामपुर स्टेट ने विद्रोह कर दिया और देव राजा को भगा दिया. हवलदारी रामगुप्त के पौत्र किशोर कुमार गुप्त बताते हैं कि उनके दादा के द्वारा लिखी गयी इतिहास की किताब में कई घटनाओं का जिक्र है, जिसमें सिरकटवा राजा का भी जिक्र किया गया है.