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जमीन मिली, पर नहीं मिले कागजात, पीढ़ियां गुजर गईं समस्या जस की तस, अब बेचे जा रहे गांव के गांव

पलामू में अभी भी जमीन की समस्या जस की तस बनी हुई है. जिले के दर्जनों गांवों में हजारों ऐसे ग्रामीण हैं जिनके पास जमीनें तो हैं लेकिन कागजात नहीं है. इसका फायदा उठाकर धोखे से जमीनों को बेचा जा रहा है और ग्रामीणों को इसकी जानकारी भी नहीं है. जमीन विवाद के चलते यहां नक्सलवाद ने भी तेजी से पैर पंसारे.

पलामू में जमीन समस्या
पलामू में जमीन समस्या

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Published : Feb 23, 2021, 8:17 PM IST

Updated : Mar 3, 2021, 12:01 PM IST

पलामूः जिले में जमीन की समस्या दशकों पुरानी है. जमीन को लेकर नक्सलवाद पनपा कई बड़े अपराध हुए. आज भी पलामू में 10 अपराध में चार से छह अपराध के मामले जमीन की समस्या से जुड़ हुए हैं.

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पलामू में ऐसे हजारों लोग हैं जिनके पास जमीन हैं लेकिन उसके कागजात नही है. लोगों को जमीन दिलवाने के लिए 70 से लेकर 90 के दशक तक कई आंदोलन हुए, लोगों को जमीन भी मिली लेकिन उन्हें उसका कभी मालिकाना हक नही मिल पाया.

दर्जनों गांव की जमीनों पर ग्रामीणों का कब्जा है लेकिन उनके पास कागजात नही है. पलामू, गढ़वा और लातेहार में कई गांव की जमीन को बेच दिया गया है. ग्रामीणों को इसकी जानकारी भी नही मिली.

नक्सलियों ग्रामीणों को दी गई थी हजारों एकड़ जमीन

1960 में सीलिंग एक्ट लागू होने के बाद 70 के दशक में पलामू में सैकड़ों लोगों को जमीन दी गई थी. उसके बाद पलामू में धीरे-धीरे जमीन का विवाद गहराने लगा.

70 और 80 के दशक के बीच जमीन विवाद में है पलामू में नक्सलवाद का जन्म हुआ. 90 का दशक तक आते-आते विभिन्न वामपंथी संगठन और नक्सलियों ने जमीन को लेकर संघर्ष शुरू किया.

पलामू के कई बड़े जमींदारों से जमीन लेकर नक्सलियों ने ग्रामीणों के बीच बांटी. अविभाजित पलामू के चंदवा पाकी मनातू,नौडीहा बाजार ,बिश्रामपुर,हरिहरगंज, मनिका, भंडरिया,नगर उंटारी,रमना मेराल, धुरकी में 30 से 35,000 एकड़ जमीन ग्रामीणों के बीच बांटी गई. नक्सल आंदोलन से कभी लंबे समय से जुड़े रहे युगल पाल बताते हैं कि 90 का दशक जमीन को लेकर संघर्ष का दशक रहा है.

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उस दौरान कई जगहों पर जमीन में लाल झंडे गाड़े गए थे. ग्रामीणों को बड़ी संख्या में जमीनें दी गईं थी. आज हालात बदल रहे हैं. ग्रामीणों को जमीन तो मिली है लेकिन उन्हें कागजात कभी मिल नहीं पाए. नतीजा है कि जमीन के मालिक कॉरपोरेट घरानों और अन्य विभागों को भी जमीन बेच रहे हैं. कई गांव की जमीने बेंच दी गईं.

अब जमींदार खेती में मांग रहे हैं हिस्सा

पलामू प्रमंडल में कई ऐसे गांव हैं जिनकी जमीनें बेच दी गई हैं अब ग्रामीण कई जगहों पर गुहार लगा रहे हैं. लातेहार जिले के मनिका थाना क्षेत्र के कुटमू गांव भी ऐसा ही है, जहां के जमींदार ने पूरे गांव को एक कॉर्पोरेट घराने को बेच दिया था.

कॉर्पोरेट घराना जमीन का अधिग्रहण तो नहीं कर पाया लेकिन उसने वन विभाग को वहीं जमीन बेच दी. वन विभाग ने गांव की आधे से अधिक जमीन पर अपनी कब्जा जमा लिया है.

वन विभाग ने जमीन पर प्लांटेशन कर दिया है और ग्रामीणों को उस जमीन पर किसी भी तरह की गतिविधि नहीं करने की हिदायत भी दी है. इसी तरह पलामू के नौडीहा बाजार प्रखंड के डगरा पंचायत की कहानी है. गांव के ग्रामीण कई दशकों से गैरमौजरूआ और वन भूमि पर खेती कर रहे हैं.

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गांव के बड़ी संख्या में ग्रामीणों को जमींदारों से भी जमीन मिली थी. डगरा में नक्सलियों ने भी जमीन पर कब्जा किया था और ग्रामीणों के बीच वितरण किया था. उस जमीन से माओवादी कुछ हिस्सा लेते थे. माओवादियों के कमजोर होने के बाद अब जमींदार उस जमीन से अपना हिसाब मांग रहे हैं.

पाकी प्रखंड के जीरो गांव और हरिहरगंज की एक गांव की भी यही कहानी है. गढ़वा के भंडरिया के इलाके में भी जमीन बेच दी गई है और ग्रामीणों को इसकी जानकारी नहीं मिली है.

ग्रामीण दे रहे हिस्सा, कई स्तर पर लगा रहे गुहार

नौडीहा बाजार के झगरा गांव के किसान लल्लू यादव बताते हैं कि अब उन्होंने हिस्सा देना शुरू कर दिया है क्योंकि इसी जमीन पर उन्हें खेती भी करना और रहना भी हैं.

आगे क्या होगा उन्हें नहीं पता है. पहले नक्सली हिस्सा लेते थे अब जमींदार हिस्सा ले रहे हैं. इसी तरह ग्रामीण सुरेश बताते हैं कि उन्होंने कब्जा नहीं किया है लेकिन उन्हें जमीन मिली थी अब गांव की किसी दूसरे जगह बसने को बोला जा रहा है हालांकि ग्रामीण अभी तैयार नहीं हुए हैं.

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लातेहार कुटुम कुटुम के ग्रामीण बिंदु सिंह बताते है पहले गांव में कोई नहीं आता था अब जमींदार वापस आने लगे हैं. उनके गांव की जमीन बेच दी गई है पहले भी वह हिस्सा देते रहे हैं. डकरा पंचायत के मुखिया इस बात को स्वीकार करते हैं कि जमीन की समस्या भी गहरा रही है.

कागजात के लिए नहीं हुआ प्रयास

कभी वामपंथी आंदोलन से जुड़े रहे सतीश कुमार बताते हैं कि संघर्ष के दौरान ग्रामीणों को जमीन तो दे दी गई, कभी कागजातों के लिए प्रयास नहीं हुआ. नतीजा है कि जमीन बेची जा रहे है. बिहार में सरकार ने इस तरह की जमीनों के लिए कागजात बनवाए थे लेकिन झारखंड में कभी ऐसा कभी नहीं हुआ.

Last Updated : Mar 3, 2021, 12:01 PM IST

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