पलामू: जिस इलाके से पहली बार देश में बाघों की गिनती शुरू हुई थी. आज उस इलाके में गिनती के लिए बाघ ही नहीं बचे है. हम बात कर रहे हैं एशिया के बड़े टाइगर प्रोजेक्ट में से एक पलामू टाइगर रिजर्व की. पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में मार्च 2020 के बाद बाघ नहीं दिखें हैं.
टाइगर प्रोजेक्ट की योजना की शुरुआत
हर साल 29 जुलाई को ग्लोबल टाइगर डे मनाया जाता है. इस दौरान बाघों को संरक्षित करने को लेकर चर्चा की जाती है, लेकिन पूरे विश्व मे अब कुछ सौ बाघ ही बचे हैं. अगर बात करें पलामू टाइगर रिजर्व की तो यह गढ़वा, लातेहार और छत्तीसगढ़ सीमा से सटा हुआ है, जो 1026 वर्ग किलोमीटर में फैला है, जबकि इसका कोर एरिया 226 वर्ग किलोमीटर में फौला है. 1974 में पूरे देश में बाघों को संरक्षित करने के लिए एक साथ नौ इलाकों में टाइगर प्रोजेक्ट की योजना शुरू की गई थी. पलामू टाइगर रिजर्व उन नौ इलाकों में से एक है, जंहा बाघों को संरक्षित करने का काम शुरू हुआ था.
बाघों की संख्या में इस प्रकार हुई कमी
1974 में पलामू टाइगर प्रोजेक्ट के इलाकों में 50 बाघ बताए गए थे, जबकि देश में पहली बार 1932 बाघों की गिनती पलामू से ही शुरू हुई थी. 1974 में पलामू टाइगर प्रोजेक्ट शुरू हुआ था तो बताया गया था कि अब यहां 50 बाघ बचे हैं. 2005 में जब बाघों की गिनती हुई तो बाघों की संख्या घट कर 38 हो गई. 2007 में जब फिर से गिनती हुई तो बताया गया कि पलामू टाइगर प्रोजेक्ट में 17 बाघ है. 2009 में वैज्ञानिक तरीके से बाघों की गिनती शुरू हुई तो बताया गया कि सिर्फ आठ बाघ बचे हुए हैं. उसके बाद से कोई भी नया बाघ रिजर्व एरिया में नहीं मिला.
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फरवरी में मृत मिली थी एक बाघिन
पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में फरवरी महीने में एक बाघिन की मौत हुई थी. बाघिन बुजुर्ग थी. पलामू टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर डॉ वाईके दास बताते हैं कि फरवरी में बाघिन की मौत के दौरान तीन बाघ के सबूत मिले थे, लेकिन मार्च के बाद पीटीआर के बाघ नही देखें गए. उन्होंने यह भी बताया कि यहां या तो बाघ सचमुच नहीं है या उनके कर्मी बेहतर काम नहीं कर रहे हैं. इसलिए बाघों के देखने पर ईनाम घोषित किया गया है. पीटीआर के ट्रैकर यासीम बताते हैं कि फरवरी के बाद उन्होंने बाघ को नहीं देखा है. अंतिम बार वे बाघ का पीछा करते हुए छिपादोहर तक गए थे, लेकिन उसके बाद बाघ कहां गया, उन्हें पता नहीं चला.