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माओवादी समर्थकों के लिए बदनाम झारखंड का अंतिम गांव, ग्रामीणों के लिए एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ है खाई - पलामू में नक्सलियों से प्रभावित गांव का हाल

झारखंड का अंतिम गांव (Last Village of Jharkhand) लुंगराही पर नक्सल समर्थक होने का ठप्पा है. इस गांव के लोगों के लिए एक तरफ कुआं है तो दूसरी तरफ खाई है. हथियार के बल नक्सली ग्रामीणों से खाना मांगते हैं तो देना पड़ता है जबकि पुलिस भी अभियान के क्रम में गांव पहुंचती है तो उन्हें सब बताना पड़ता है. बाद में ग्रामीणों को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती है.

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झारखंड का अंतिम गांव लंगुराही

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Published : Jul 21, 2021, 5:18 AM IST

Updated : Jul 21, 2021, 7:56 AM IST

पलामू:झारखंड के अंतिम गांव का नाम है लंगुराही और यहां के लोगों की दास्तां बहुत दर्दभरी है. पलामू जिले के हरिहरगंज थाना क्षेत्र में पड़ने वाले आखिरी गांव पर नक्सल समर्थक होने का ठप्पा है. बिहार सीमा से लगे इस गांव से माओवादियों का छकरबंधा कॉरिडोर शुरू होता है. पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय से करीब 95 किलोमीटर दूर ये गांव मुख्य धारा से कटा हुआ है. विकास योजनाओं से दूर ये गांव पुलिस और सुरक्षाबलों की रडार पर है.

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एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई...

लंगुराही और उसके आसपास के गांव के लोगों के लिए एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई वाला हाल है. हथियार के बल नक्सली ग्रामीणों से खाना मांगते हैं तो देना पड़ता है जबकि पुलिस भी अभियान के क्रम में गांव पहुंचती है तो उन्हें सब बताना पड़ता है. बाद में ग्रामीणों को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती है. ग्रामीण अशोक यादव का कहना है कि वे दोनों तरफ से मारे जाते हैं. कुछ ग्रामीणों की आपसी रंजिश है तो कुछ मजबूरी के कारण शिकार हुए हैं. एक ग्रामीण ने बताया कि गांव के कुछ लोगों पर मुकदमा है और वे जेल गए हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि पूरा गांव नक्सली है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

1995-96 में बढ़ी नक्सली गतिविधि, दो दर्जन से ज्यादा लोगों पर है मुकदमा

लंगुराही और उससे सटे हुए गांव करमलेवा, परसलेवा, चहका, बरवादोहा, तुरी गांव के दो दर्जन से अधिक लोगों पर नक्सल गतिविधि से संबंधित मुकदमा दर्ज है. इलाके की बड़ी आबादी कृषि पर आधारित है. यह इलाका बिहार के औरंगाबाद और गया से सटा है. पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों ने इन गांवों को रडार पर लिया है. पुलिस और सुरक्षाबल आज भी इन गांवों में नक्सल अभियान और गतिविधि के खिलाफ कार्रवाई के लिए ही जाते हैं.

गांव का एक युवक हाल ही में जेल से बाहर निकला है और अब मुख्य धारा में जीवन गुजार रहा है. न्यायिक कारणों से वह कैमरे के सामने नहीं आया. उसने बताया कि गांव के लोग पुलिस और नक्सलियों के बीच पीस रहे हैं. गांव के ही रघुनंदन यादव बताते हैं कि पिछले कुछ समय से नक्सली नहीं आ रहे हैं. ग्रामीण आपस में ही लड़ रहे हैं और एक दूसरे को नक्सली बताकर फंसा रहे हैं.

गांव में बुनियादी सुविधाओं की कमी, नहीं जाते प्रशासनिक अधिकारी

लंगुराही और उसके आसपास के गांवों में अधिकारी नहीं जाते हैं. विधायक या नेता चुनाव के वक्त ही जाते हैं. कुछ ही नेता लोगों से मिलते हैं. बारिश के दिनों में ये इलाका कट जाता है. गांव को जोड़ने वाला पुल अधूरा है. गांव में स्वास्थ्य केंद्र नहीं है. स्कूल है लेकिन शिक्षक नहीं आते हैं. गांव की बड़ी आबादी कई सरकारी योजना, आवास और पेंशन से वंचित है. गांव के सुरेश यादव ने बताया कि यहां आने के लिए कई किलोमीटर का सफर करना पड़ता है. पुल नहीं होने के कारण लोग काफी परेशान हैं.

एसपी चंदन कुमार सिन्हा का कहना है कि पुलिस सभी लोगों से मुख्यधारा में रहने की अपील कर रही है. जो लोग मुख्यधारा से भटक गए हैं वे आत्मसमर्पण करें और सरकारी योजनाओं का लाभ लें. एसपी ने कहा कि सभी को पता है कि नक्सलियों का क्या हाल होता है. पुलिस और सुरक्षाबल इलाके में सुरक्षित माहौल तैयार कर रहे हैं.

Last Updated : Jul 21, 2021, 7:56 AM IST

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