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वो आम का पेड़ः जिसका इतिहास है लाल आतंक का, आज गवाह बन रहा अमन और विकास का

झारखंड में बूढ़ा पहाड़ को कभी नक्सलियों का गढ़ कहा जाता था, वो आज सुरक्षा बलों के कब्जे में है. यहां का एक पेड़ दशकों तक गवाह रहा लाल आतंक का मगर आज वो शांति का पैगाम पेश कर रहा है. बूढ़ा पहाड़ के झालूडेरा स्थित आम के पेड़ से जुड़ी पूरी कहानी जानिए, ईटीवी भारत की इस रिपोर्ट से. History of mango tree of Jhaludera related to Naxalites

story of mango tree of Jhaludera related to Naxalites in Budha Pahad in Jharkhand
बूढ़ा पहाड़ के झालूडेरा स्थित आम के पेड़ का इतिहास

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Oct 20, 2023, 12:44 PM IST

Updated : Oct 20, 2023, 1:15 PM IST

बूढ़ा पहाड़ से ईटीवी भारत संवाददाता नीरज कुमार की ग्राउंड रिपोर्ट

पलामूः जिस आम में पेड़ के नीचे तीन दशक तक खौफनाक साजिश रची गई. जिसमें दर्जनों जवान शहीद हुए और कई ग्रामीणों की जान गई. वो आम का पेड़ आज भी मौजूद है लेकिन अब उस पेड़ के नीचे बैठकर विकास और अमन-चैन का पैगाम दिया जा रहा है.

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ये कहानी है बूढ़ा पहाड़ की चोटी पर मौजूद झालूडेरा स्थित एक आम के पेड़ की. तीन दशकों के झंझावातों से गुजरकर आज भी ये अटल और अडिग खड़ा है. ये आम का पेड़ बूढ़ा पहाड़ में करीब 30 साल के लाल आतंक का गवाह है. पहले इस पेड़ के नीचे नक्सली कमांडर बैठकर अपनी रणनीति तय करते थे लेकिन अब उसी पेड़ के नीचे पुलिस और सीआरपीएफ के अधिकारी बैठकर विकास का खाका तैयार कर रहते हैं.

झारखंड छत्तीसगढ़ सीमा पर मौजूद बूढ़ा पहाड़ तीन दशक तक माओवादियों का ट्रेनिंग सेंटर के साथ साथ यूनीफाइड कमांड हुआ करता था. बूढ़ा पहाड़ के झालूडेरा स्थित आम के पेड़ के नीचे माओवादियों की बैठक होती थी. इसी बैठक में झारखंड और बिहार के इलाके के लिए कई रणनीतियां तय की जाती थीं. बूढ़ा पहाड़ के नजदीक छत्तीसगढ़ के पुंदाग के रहने वाले कयूम अंसारी बताते हैं कि इसी आम के पेड़ के नीचे माओवादियों की बैठक होती थी, बैठक के दौरान सभी टॉप नक्सली जुटते थे. कयूम अंसारी बताते हैं कि ग्रामीणों से माओवादी अपनी जरूरत की सामग्री मंगवाते थे. इस सामग्री को इसी पेड़ के नीचे रखा जाता था. इसके बाद सामग्री को यहां से दूसरी जगह पर ले जाया जाता था. नक्सलियों की बात नहीं मानने वाले ग्रामीणों की इसी आम के पेड़ के नीचे पिटाई की जाती थी.

इनामी माओवादी अरविंद ने बूढ़ा पहाड़ को बनाया था ट्रेनिंग कैंपः बिहार के जहानाबाद के रहने वाले देव कुमार सिंह उर्फ अरविंद ने बूढ़ा पहाड़ को ट्रेनिंग सेंटर बनाया था. अरविंद माओवादियों के पोलित ब्यूरो सदस्य के साथ साथ पीएलजीए का सुप्रीम कमांडर था. झारखंड की सरकार ने उस पर एक करोड़ का इनाम रखा था. 2018 में बूढ़ा पहाड़ पर ही बीमारी से अरविंद की मौत हो गई. इनामी नक्सली अरविंद ही बूढ़ा पहाड़ पर मौजूद आम के पेड़ के नीचे माओवादियों की बैठक लेता था.

यहां पर बैठक लेने के बाद अरविंद अपने बंकर में चला जाता था या बूढ़ा पहाड़ से नजदीक तलहटी के इलाके में छिप जाता था. अरविंद की मौत के बाद माओवादी सुधाकरण इसी पेड़ के नीचे बैठक करता था. उसके सरेंडर करने के बाद मिथिलेश मेहता और उसके बाद मारकस ने बूढ़ा पहाड़ की कमान संभाली थी. सितंबर 2022 में बूढ़ा पहाड़ को नक्सलियों से मुक्त करने के लिए ऑपरेशन ऑक्टोपस शुरू किया गया और दिसंबर 2022 में सुरक्षा बलों ने बूढ़ा पहाड़ की चोटी पर कब्जा जमा लिया

बूढ़ा पहाड़ पर कैंप स्थापित किया गया. जिस जगह माओवादी बैठक करते थे वहां सुरक्षा बलों ने तिरंगा झंडा लगाया है. वहीं आम के पेड़ के नीचे एक टेंट तैयार किया गया है जहां पुलिस और सीआरपीएफ के आलाधिकारी बैठक करते हैं. यहीं बैठकर इलाके के विकास कार्यो की समीक्षा की जाती है.

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Last Updated : Oct 20, 2023, 1:15 PM IST

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