पलामू:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सप्ताह में एक दिन इलेक्ट्रॉनिक गैजेट को छोड़ने की अपील की है. यह अपील इस बात की ओर इशारा करती है कि मोबाइल की लत कितनी खतरनाक होते जा रही है. रील्स देखकर वर्चुअल दुनिया में जीना एक बीमारी बनती जा रही है. रील्स के आदि लोगों की याददाश्त कमजोर हो रही है. ऐसे लोग परिवार और समाज से कटे कटे रहे हैं. इसके आदि लोगों ने अपने लिए एक वर्चुअल दुनिया बना ली है. पलामू देश के पिछड़े जिलों में से एक है, जंहा रील्स की लत लोगों को सताने लगी है.
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मेदिनीराय मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के मानसिक अस्पताल में इस तरह के लत पंहुचने वाले आंकड़े काफी अधिक हैं. मानसिक अस्पताल में 400 से अधिक ऐसे लोग पंहुचे हैं, जिन्हें रील्स देखने की लत लगी है और उन्होंने अलग दुनिया बना ली है. ये मरीज पलामू के साथ-साथ पड़ोसी जिले गढ़वा, लातेहार, चतरा, बिहार के गया औरंगाबाद, छत्तीसगढ़ के बलरामपुर और यूपी के सोनभद्र के इलाके से भी आ रहे हैं. पलामू मानसिक अस्पताल में 10636 मरीज निबंधित है. जनवरी महीने में 1600 से अधिक लोग काउंसलिंग के लिए पंहुचे थे, जिसमें 50 से अधिक सोशल मीडिया में रील्स से सम्बंधित समस्या से जूझ रहे थे.
केस स्टडी: पलामू के एक युवक ने कोरोनाकाल से पहले एम-टेक किया था. एम-टेक करने के बाद उसने सरकारी नौकरी एक मल्टी नेशनल कंपनी में नौकरी के लिए तैयारी शुरू की थी. इसी दौरान उसे रील्स देखने की लत लग गई है. शुरुआत में वह कुछ देर रील्स देखता था, धीरे-धीरे वह घंटों रील्स देखने लगा. उसे ये लत इतनी खतरनाक लग गई कि वह मानसिक रूप से कमजोर होने लगा और याददाश्त भी कमजोर हो गई. आज उसका इलाज पलामू मानसिक अस्पताल में चल रहा है. इसी तरह पलामू के हुसैनाबाद के रहने वाले एक किशोर को रील्स देखने की लत गई, मोबाइल का डाटा नहीं रहने पर वह घर में चोरी करता था और मोबाइल में डाटा पैक रिचार्ज करवाता था. नौवीं तक की पढ़ाई में क्लास में उसे 90 प्रतिशत अंक आते थे, दसवीं में उसे 47 प्रतिशत नंबर आये. परिजनों ने डॉक्टर को बताया कि किशोर की याददाश्त भी कमजोर हो गई है, वह उसे बाजार भेजते हैं, लेकिन वह भूल जाता है कि क्या लाना है.
डॉक्टर की सलाह बनाए दूरी:पलामू मानसिक अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ सुनील कुमार बताते हैं कि चंद सेकंड की वीडियो लोगों को रोमांचित करती है. कुछ सेकंड में ही वीडियो लोगों को अलग दुनिया में ले जाते हैं. डॉक्टर बताते हैं कि लोग जिस तरह की वीडियो पसंद करते है रील्स भी उसी तरह के होते हैं. उन्होंने बताया कई लोग पोर्न और इस तरह के जुड़े कंटेंट के रील्स देखने को आदि हो रहे हैं. डॉक्टर ने बताया कि लोग कई तरह की समस्या लेकर पंहुचते हैं. रील्स वाली समस्या अधिक आ रही है. उन्होंने बताया कि अधिकतर समस्याओं में मोबाइल एक बड़ी वजह है. इसके लत से लोगों की याददाश्त कमजोर हो रही है, जबकि कई लोग अवसाद का शिकार हो रहे हैं. डॉक्टर सुनील कुमार बताते हैं कि लोगों को सावधान रहने की जरूरत है, रील्स रोमांचित करता है, लेकिन इसकी लत नहीं लगने दें.
युवाओं को पसंद आ रही काल्पनिक दुनिया: एक सर्वे के मुताबिक भारत में प्रतिदिन 60 लाख से भी अधिक रील्स बनाए जाते हैंं. ये सभी रील्स सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपलोड किए जाते हैं. रील्स के माध्यम से बड़ी संख्या में युवा काल्पनिक दुनिया मे जीने लगते हैं. पलामू के युवा सन्नी शुक्ला बताते हैं कि युवाओं को वर्चुअल दुनिया अधिक पसंद आ रही है. युवा काल्पनिक दुनिया में जीना पसंद कर रहे हैं. उनको यही दुनिया पसंद आ रही है और यहीं सुख-दुख ढूंढ रहे हैं. नतीजा यह है कि वे मानसिक रूप से कमजोर हो रहे हैं और उनकी याददाश्त भी कम होते जा रही है.