जानकारी देते पलामू जोन के आईजी राजकुमार लकड़ा पलामूः पोस्ता की खेती रोकना पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती है. झारखंड-बिहार सीमा पर सैकड़ों एकड़ में पिछले एक दशक से पोस्ता की खेती हो रही है. पोस्ता की खेती रोकने के लिए कई कदम उठाए गए हैं, फिर भी बड़े पैमाने पर ग्रामीण और तस्कर खेती कर रहे हैं. पोस्ता की खेती का कारोबार करोड़ों में है. नवंबर के महीने से पोस्ता की खेती की शुरुआत होती है. पोस्ता की खेती को लेकर अलर्ट जारी किया गया है.
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चतरा और हजारीबाग के सीमावर्ती इलाकों में पुलिस की है नजरः पलामू, लातेहार, चतरा हजारीबाग के अलावा झारखंड-बिहार के तमाम सीमावर्ती इलाकों में निगरानी शुरू कर गई है. जिन इलाकों में पहले पोस्ता की खेती होती थी उन इलाकों का जायजा लिया जा रहा है. वहीं संवेदनशील इलाकों में खास निगरानी रखी जा रही है. प्रभावित इलाकों में पुलिस ने सर्वे भी शुरू कर दिया है. पोस्ता की खेती करने के मामले में चिन्हित लोगों का डाटा तैयार किया जा रहा है और उनका पता लगाया जा रहा है.
ग्रामीणों को किया जा रहा जागरूक, पुलिस करेगी सख्त करवाई-आईजीःइस संबंध में पलामू के जोनल आईजी राजकुमार लकड़ा ने बताया कि पोस्ता की खेती के लिए पहले चरण में ग्रामीणों को जागरूक किया जा है. पोस्ता की खेती की रोकथाम के लिए पुलिस स्थानीय जनप्रतिनिधियों से भी संपर्क में. उन्होंने बताया कि नुक्कड़-नाटक और अन्य माध्यम से ग्रामीणों को पोस्ता से होने वाले नुकसान के बारे में बताया जा रहा है. आईजी ने बताया कि पुलिस पोस्ता की खेती करने वाले और तस्करों के खिलाफ सख्त है. सभी के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है. प्रभावित इलाकों में वन विभाग के साथ मिलकर टीम बनायी गई है.
बदला है पोस्ता की खेती का ट्रेंड, तस्कर अब भाड़े पर ले रहे जमीनः पिछले दो वर्षों में पलामू, लातेहार और बिहार से सटे हुए सीमावर्ती इलाकों में पोस्ता की खेती का ट्रेंड बदला है. पहले पोस्ता की खेती वन भूमि पर होती थी, लेकिन अब रैयती जमीन पर भी पोस्ता की खेती हो रही है. पोस्ता की खेती के लिए तस्कर नए इलाकों में किसानों को लालच दे रहे हैं और खेती करवा रहे हैं. वैसे लोग जो पोस्ता की खेती करने के आरोप में जेल जा चुके हैं या जिनपर एफआईआर दर्ज है वे भी अपने इलाके से निकलकर दूसरे इलाके में जमीन को लीज पर ले रहे हैं. संबंधित जमीन पर बाहर के मजदूरों को रखकर पोस्ता की खेती करायी जा रही है.
कई राज्यों में फैला है नेटवर्क, तस्करों को होता है लाखों का फायदाःदरअसल, तस्कर वैसी जमीन को चिन्हित करते हैं जो जल स्रोत के अगल-बगल हो और वहां खेती के कम संसाधन उपलब्ध हो. वैसे इलाकों में तस्कर लालच देते हैं और खेती करवाते हैं. प्रति एकड़ रैयतों को 40 से 50 हजार रुपए दिए जाते हैं, जबकि रैयतों को इन खेतों से कोई खास आमदनी नहीं होती थी. पोस्ता से तैयार कच्चा अफीम और डोडा को यूपी, बिहार, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली समेत कई राज्यों में भेजा जाता है.