पलामूः प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी के उत्तर भारत बंद का सोमवार को झारखंड बिहार और झारखंड छत्तीसगढ़ सीमावर्ती क्षेत्रों में आंशिक असर देखा गया. माओवादियों के बंद के कारण कई इलाकों में यात्री वाहनों का परिचालन के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों के बाजार में प्रभावित हुए हैं.
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नक्सलियों के बंद का पलामू गढ़वा और लातेहार के कई इलाकों में आंशिक असर देखा गया है. झारखंड से छत्तीसगढ़ जबकि पलामू से विभिन्न इलाकों में जाने वाली कई यात्री वाहनों का परिचालन बंद रहा. पलामू के नौडीहा बाजार, हरिहरगंज पिपरा, लातेहार के गारू छिपादोहर बारेसाढ़ के ग्रामीण इलाके में बंद के कारण बाजार बंद रहे.
बंद को लेकर हाई अलर्टः माओवादियों के बंद को लेकर झारखंड बिहार झारखंड छत्तीसगढ़ चुनाव क्षेत्र में हाई अलर्ट जारी किया गया. पुलिस मुख्यालय ने मामले में के एसओपी जारी किया है, बंद के दौरान किसी भी पुलिस अधिकारी को लूज मूवमेंट में करने से मना किया गया है. अति नक्सल प्रभावित इलाकों में सरकारी संपत्ति की सुरक्षा बढ़ा दी गई है और कई इलाकों में अतिरिक्त बल की तैनाती की गई है.
बरकाकाना सोननगर रेलखंड पर रेलवे की मदद से पेट्रोलिंग शुरू की गई है. झारखंड छत्तीसगढ़ जबकि झारखंड बिहार सीमा पर माओवादियों खिलाफ अभियान शुरू किया गया है, इस अभियान में सीआरपीएफ जगुआर आईआरबी जैप के जवानों को लगाया गया है. पिछले एक महीने में माओवादियों ने यह दूसरी बार बंद की घोषणा की है. चतरा की घटना के बाद माओवादियों ने अपने मगध जोन में बंद की घोषणा की थी. पलामू रेंज आईजी राजकुमार लकड़ा ने बताया कि बंद को लेकर हाई अलर्ट जारी किया गया है, आम लोगों का सुरक्षाबलों पर विश्वास बढ़ा है.
माओवादियों ने क्यों बुलाया बंदः तीन अप्रैल को चतरा के लावालौंग मुठभेड़ में माओवादियो के टॉप पांच कमांडर मारे गए थे. इसके विरोध में माओवादियों ने उत्तरी भारत बंद की घोषणा की है. मांओवादियों के ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ में नक्सल पर ड्रोन से हमला किया जा रहा है जबकि चतरा में उनके पांच कमांडर मारे गए हैं. इसी के विरोध में 15 मई को उतरी भारत बंद की घोषणा की जाती है. हालांकि बिहार में गया जिला के इलाके में बंद के संबंध में पर्चा भी सुरक्षाबलों को बरामद हुआ था. इस पर्चे में 14 और 15 मई को बंद की बात कही गई थी. माओवादी के ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो के तरफ से जारी बयान में 15 मई को ही बंद की घोषणा की गई है.
माओवादियों के बंद का अब नहीं होता असरः नक्सल संगठनों के बंद का असर अब नजर नहीं आता है. कुछ खास पॉकेट में बंद का आंशिक रूप से प्रभाव पड़ता है. पिछले पांच साल में सुरक्षाबलों की पहुंच सभी इलाकों में हो गई है. सुरक्षाबलों ने इलाके में एक सुरक्षित माहौल तैयार किया है जिसके कारण माओवादियों का बंद का प्रभाव नजर नहीं आता है. कुछ वर्ष पहले तक बंद के दौरान माओवादी हिंसक घटनाओं को अंजाम देते थे. इस दौरान माओवादी रेलवे ट्रैक या सरकारी भवनों को नुकसान पहुंचाते थे. 2010 से 2016 के बीच माओवादियों ने बंद के दौरान झारखंड बिहार और झारखंड छत्तीसगढ़ सीमा पर 137 हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया. 2020 के बाद से यह आंकड़े 95 प्रतिशत से भी कम हो गए हैं.