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22 साल में बदली नक्सलियों के गढ़ की तस्वीरः बूढ़ा पहाड़ में 35 परिवारों का होगा पुनर्वास

राज्य गठन के बाद से ही झारखंड में नक्सलवाद हमेशा एक बड़ी समस्या बनकर उभरी. नक्सलियों के गढ़ बूढ़ा पहाड़ हमेश चर्चा में रहा. पलामू, लातेहार और गढ़वा में समाहित बूढ़ा पहाड़ आज सुरक्षा के घेरे में है. लेकिन इन 22 वर्षों में नक्सली संगठनों खिलाफ अभियान से पलामू में नक्सली कमजोर हुए हैं. इतना ही नहीं पड़ोसी जिला लातेहार और गढ़वा में इनके पांव उखड़े (Naxalites stronghold Palamu Garhwa and Latehar) हैं. 22 साल में नक्सलियों के गढ़ की तस्वीर कैसी बदली (Naxalites hold areas picture changing in 22 years) है, जानिए ईटीवी भारत की इस खास रिपोर्ट में.

Naxalites stronghold Palamu Garhwa and Latehar picture changing in 22 years
पलामू

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Published : Nov 10, 2022, 1:55 PM IST

Updated : Nov 11, 2022, 8:27 AM IST

पलामूः आज नक्सलियों के गढ़ में तस्वीरें बदलने लगी हैं. गांव को छोड़कर भागने वाली आबादी अब अपने गांव, अपने घर और अपनी जमीन पर वापस लौटने लगी है. आलम ऐसा है कि बूढ़ा पहाड़ में 35 परिवारों का पुनर्वास होगा. इतना कुछ बदलने में एक दो साल नहीं 22 साल लगे, नक्सली संगठनों खिलाफ अभियान की बदौलत आज पलामू में नक्सली कमजोर हुए हैं और बूढ़ा पहाड़ पर सुरक्षाबलों का कब्जा हो पाया (Naxalites stronghold Palamu Garhwa and Latehar) है.

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लेकिन याद कीजिए वह दौर, जब नक्सलियों के प्रभाव वाले इलाके से प्रतिदिन हिंसा की खबरें सामने आती थीं, उन इलाकों को छोड़कर भागते हुए लोग नजर आते थे. लेकिन अब यह तस्वीर बदलने लगी है. झारखंड राज्य गठन के 22 वर्ष हो रहे हैं, इन 22 वर्षो में सबसे बड़ा बदलाव नक्सलियों के प्रभाव वाले इलाके में हुआ (Naxalites hold areas picture changing in 22 years) है. पलामू, गढ़वा और लातेहार यानी नक्सलियों के गढ़ में तस्वीरें बदल रही हैं. बूढ़ा पहाड़ पर सुरक्षाबलों का कब्जा (Naxalites stronghold buddha pahad) हो गया है. बूढ़ा पहाड़ के आधा दर्जन गांव से 35 परिवार इलाका छोड़कर भाग गए थे, उन परिवारों को प्रशासनिक मौजूदगी में पुनर्वास किया जा रहा है. पुनर्वास होने वाले परिवारों और बूढ़ा पहाड़ में रहने वाले लोगों सरकारी योजनाओं से जोड़ा जा रहा है. पलामू रेंज डीआईजी राजकुमार लकड़ा ने बताया कि नक्सली संगठनों खिलाफ अभियान जारी है. पलामू, गढ़वा और लातेहार के सुदूरवर्ती इलाकों में सुरक्षा बलों की मौजूदगी में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं. सुरक्षा बल लोगों को सुरक्षित माहौल देने के साथ-साथ सरकारी योजनाओं का लाभ देने का भी प्रयास कर रहे हैं.

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खौफ से नहीं खरीदते थे बाइक, ना बनाते थे घर और ना सजते थे बाजारः
पलामू, गढ़वा और लातेहार के कई ऐसे इलाके हैं, जहां लोग नक्सलियों के खौफ से बाइक नहीं खरीदते थे, पक्के घर भी नहीं बनाते थे और वहां के बाजार भी नहीं सजते थे. लेकिन अब उन इलाकों में बदलाव आया है, 2009-10 ने मनातू के चक को नक्सलियों ने एक वर्ष के लिए बंद करवा दिया था. 2012-13 तक चक के इलाके में मात्र 10 से 15 लोगों के पास बाइक थी, आज चक के इलाके में 400 से अधिक लोगों के पास बाइक हैं. मनातू रहने वाले सच्चिन्द्रजीत सिंह की जमीन पर माओवादियों ने लंबे वक्त तक कब्जा जमाए रखा लेकिन अब हालात बदल रहे हैं, उनकी जमीन उन्हें धीरे-धीरे वापस मिल रही है.


जहां कभी सादे लिबास में जाती थी पुलिस, वहां अब सुरक्षा बलों का कब्जाःपलामू एसपी चंदन कुमार सिन्हा 2003-04 में छतरपुर एसडीपीओ के पद पर तैनात थे. ईटीवी भारत के साथ एसपी चंदन कुमार सिन्हा ने बताया कि 2003-04 का पलामू और अब के पलामू में जमीन आसमान का अंतर है. उस दौर में पुलिस सादे लिबास में किसी इलाके में कहीं आती-जाती थी लेकिन अब वह माहौल बदल गया है. सुरक्षा बलों की मौजूदगी में इन इलाकों में बदलाव आया है, अब लोग घर बनाने लगे हैं और गाड़ियां भी खरीदने लगे हैं, पुलिस की मौजदूगी में बदलाव हुआ है. पलामू, गढ़वा और लातेहार में नक्सलियों के गढ़ में पुलिस कैंप उन्हें बड़ा बदलाव लाया. आंकड़ों की बात करें तो 70 से भी अधिक पुलिस कैंप स्थापित, जिनके माध्यम से पूरे इलाके को सुरक्षित किया गया है.
Last Updated : Nov 11, 2022, 8:27 AM IST

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