पलामू: मनुष्य अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रकृति का दोहन करता जा रहा है. जंगलों की कटाई होने से जानवर जंगल छोड़कर घनी आबादी वाले क्षेत्रों में आ रहे है. जिसका सीधा असर लोगों के आम जन-जीवन पर पड़ रहा है. उनका स्वभाव हिंसक होता जा रहा है. बंदरो और लगूरों का जंगल छोड़कर शहर की तरफ रूख और उनका हिंसक होना इसी बात की ओर इशारा करता है. इससे आम लोगों को नुकसाना का भी सामना करना पड़ रहा है.
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नुकसान का आकड़ा पहुंचा 25 गुणा:अगर बात करे पलामू टाइगर रिजर्व के बेतला नेशनल पार्क इलाके में मौजूद बंदर और लंगूरों की तो उससे भी यही बात उभर कर सामने नजर आती है. पलामू टाइगर रिजर्व के अलावा पलामू गढ़वा लातेहार के जंगलों में बड़ी संख्या में लंगूर की मौजूदगी है. 40 से 50 की संख्या में लंगूरों की टोली आबादी वाले इलाकों में जा रही है. लंगूर फसल के साथ साथ बागवानी को भी नुकशान पहुंचा रहे है. पलामू गढवा और लातेहार में पिछले पांच वर्षों में बंदर और लंगूर से जुड़े नुकशान का आंकड़ा 20 से 25 गुणा बढ़ गया है.
1100 घरों को बंदर पहुंचा चुके नुकसान: 2015 में पलामू गढ़वा और लातेहार में बंदर और लंगूर द्वारा करीब 60 से 70 घरों को नुकसान पंहुचाया था. 2022 -23 में यह आंकड़ा बढ़ कर 1100 के करीब पहुंच गया है. यह आंकड़ा पीटीआर और उसके अंतर्गत आने वाले बेतला नेशनल पार्क के इलाके से अलग है. बंदर और लंगूर की एक बड़ी आबादी नेशनल और स्टेट हाईवे के अगल-बगल मौजूद रह रही है. रास्ते से गुजरने वाले लोग बंदर और लंगूरों को अपना खाना दे रहे है. इस दौरान कई राहगीर बंदर और लंगूरो को जंक फूड भी दे रहे है. वन विभाग और पलामू टाइगर रिजर्व प्रबंधन की ओर से कई जगह चेतावनी बोर्ड भी लगाई गई है.
क्या कहते है वन विभाग के अधिकारी:वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि लोगों द्वारा दिए गए खाना के बाद बंदर और लंगूरों का व्यवहार बदल रहा है. बंदर और लंगूर धीरे-धीरे मनुष्य की भोजन पर आश्रित हो रहे है. यही कारण है कि बंदर और लंगूर गाड़ियों के पीछे भी दौड़ रहे हैं और कई लोगों से सामानों को छीन लेते है. पलामू टाइगर रिजर्व के निदेशक कुमार आशुतोष बताते हैं कि बंदर एवं लंगूरों को जंक या अन्य किसी तरह का भोजन देने पर प्रतिबंध है. जंग फूड देने वालों को जेल भी जाना पड़ सकता है.
क्या कहते है पर्यावरणविद कौशल: पर्यावरणविद कौशल किशोर जायसवाल का कहना है कि बंदर और लंगूरों की आबादी वाले इलाकों में पहुंचना चिंताजनक है. उन्होंने कहा कि बड़ी तेजी से जंगल कम होते जा रहे हैं. नतीजा है कि जंगल पर आश्रित जीव भोजन और पानी की तलाश में आबादी वाले इलाके का रूख कर रहे है. कहा कि पिछले दो वर्षो में पूरा इलाका सुखाड़ से जूझ रहा है, जंगली जीव पानी की तलाश में भी बाहर निकल रहे है. उन्होंने कहा कि आम लोग बंदरों को अपना भोजन नहीं दे. भोजन के कारण बंदर हिंसक होते जा रहे है.