पलामूः कोरोना काल में सहारा बने मनरेगा में अब मजदूरों की संख्या घटने लगी है. जून तक जिले में 39686 मजदूरों ने काम मांगा था. जबकि दिसंबर तक 49157 मजदूरों ने ही काम मांगा है. कोरोना काल में पलामू के सभी 1871 गांवों में मनरेगा की योजना शुरू हुई थी. पलामू में मनरेगा के तहत अब तक 16 लाख मानव दिवस सृजित हुए हैं. कोरोना काल के बाद पलामू में मजदूरों और प्रवासियों को रोजगार उपलब्ध करवाना बड़ी चुनौती थी. रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए मनरेगा के तहत 4 हजार योजनाओं पर काम शुरू किया गया था, लेकिन जिले में अब 8 हजार से अधिक योजना पर काम किया जा रहा है. योजना बढ़ी, लेकिन उस अनुपात में मजदूर नहीं बढ़े. पलामू में मनरेगा के तहत बागवानी, बिरसा हरित ग्राम योजना, वीर शहीद पोटो खेल विकास योजना पर काम शुरू किया गया. वीर शहीद पोटो खेल विकास योजना के तहत हर पंचायत में एक खेल के मैदान को विकसित किया जाना है.
लॉकडाउन में मिली छूट के बाद पलायन शुरू
लॉकडाउन की शुरुआत में मनरेगा के तहत मजदूरों को रोजगार उपलब्ध करवाया गया. हालांकि लॉकडाउन में मिली छूट के बाद मजदूर वापस पलायन कर गए. पलामू में 2.22 लाख मनरेगा के निबंधित मजदूर हैं, जबकि 53 हजार प्रवासी मजदूर हैं. करीब 10 से 15 हजार प्रवासियों के पास मनरेगा का जॉब कार्ड है. लॉकडाउन में मिली छूट के बाद काम मांगने वालों की संख्या घट गई. जून के बाद छह महीनों में सिर्फ 10 हजार मजदूर ही काम मांगने के लिए सामने आए. पलामू के हैदरनगर प्रखंड में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों ने मनरेगा में काम किया है. हालांकि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने काम मांगा उन्हें नहीं मिला. हैदरनगर के जयराम बताते है कि शुरुआत में उन्होंने काम किया था, लेकिन अभी उन्हें नहीं मिला है, जैसे तैसे परिवार चल रहा है. मजदूर राजेंद्र शर्मा ने बताया कि काम नहीं मिल रहा है. मजदूर रोशन खान मनरेगा के कार्यों से खुश हैं. मनरेगा मजदूरों को काफी फायदा हुआ है.