पलामू:पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय से करीब 80 किलोमीटर दूर सरगुजा और समरलेटा दो गांव है. जहां पूरा देश अब आत्मनिर्भर बनने की बात कर रहा है वहीं ये दोनों गांव पहले से ही आत्मनिर्भर हैं. घोर नक्सल इलाका मनातू में पड़ने वाले दोनों गांव में एक दर्जन से अधिक परिवार मधु और मधुमक्खी के छत्ते से मोम बनाने के काम से जुड़े हुए हैं. लेकिन, एक दिक्कत है और वह कि इनके उत्पाद को बाजार में उचित मूल्य नहीं मिल पाता. इसी वजह से ये लोग मुख्य धारा से काफी अलग हैं. लेकिन, अब इनके उत्पादों की पूरी कीमत मिल सकेगी. उत्पादों को पलाश ब्रांड से जोड़ने की योजना बनाई जा रही है ताकि इसका उचित मूल्य मिल सके. आदिम जनजाति परिवार के बीच कई दिनों से काम कर रही कुमारी नम्रता बताती हैं कि आदिम जनजाति परिवार को कई योजनाओं से जोड़ा जाएगा ताकि उनके स्वरोजगार को बढ़ावा दिया जा सके.
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ऐसे तैयार करते हैं मधु और मोम
आदिम जनजाति परिवार के लोग होली और दीवाली से पहले मोम को तैयार करते हैं. इससे पहले घने जंगल और पहाड़ों पर मधुमक्खी के छत्ते की तलाश शुरू होती है. लोग आग के जरिए और पेड़ के पत्ते से मधुमक्खी को भगाते हैं. मधुमक्खी के छत्ते को गर्म पानी में उबाला जाता है. उसके बाद उसे धूप में सुखाया जाता है और फिर ठंडे पानी से छाना जाता है. मोम की कीमत बाजार में 200 रुपए प्रति किलो और मधु 500 से 600 रुपए प्रति किलो बेचा जाता है. एक सीजन में पूरा परिवार 10 हजार रुपए कमाता है.