पलामूः ललना जिए दूल्हा दुल्हिन लाखों बारिश के बोल पर ग्रामीण इलाके में शादियों के दौरान गाते हुए कुछ लोग नजर आ जांएगे. गाने वाला कभी अकेला नहीं होता बल्कि उसके साथ तीन से चार लोग होते हैं. इन लोगों रामायण काल से इस कला को जिंदा रखा है. इस कला को संरक्षित करने वाले लोगों को पांवरिया कहा जाता(history of Pawaria in Jharkhand) है. आधुनिकता के दौर में पांवरिया इस लोक कला और संस्कृति को संरक्षित कर दूसरों की खुशियों में अपनी खुशियों को ढूंढते हैं.
रामायण काल से चली आ रही है पांवरिया लोक कला की परंपरा, पीढ़ियों से दूसरों की खुशियों में ढूंढ रहे अपनी खुशी - पलामू न्यूज
पलामू में पांवरिया समाज के लोग इस कला को संरक्षित कर दूसरों की खुशियों में अपनी खुशी ढूंढते नजर आते हैं. रामायण काल से ही इस कला का प्रचलन(history of Pawaria in Jharkhand) है. हालांकि आधुनिकता के इस दौर का प्रभाव इस समाज और कला पर भी पड़ा है.
![रामायण काल से चली आ रही है पांवरिया लोक कला की परंपरा, पीढ़ियों से दूसरों की खुशियों में ढूंढ रहे अपनी खुशी history of Pawaria in Jharkhand](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/768-512-17124916-926-17124916-1670300214737.jpg)
पांवरिया का आना शुभःकिसी के यहां बच्चे का जन्म या शादी समारोह हो पांवरिया वहां पंहुचते हैं और अपने गीत और कला के माध्यम से आशीर्वाद देते हैं. कहा जाता है कि पांवरिया भगवान राम के जन्म के दौरान राजा दशरथ के यहां गाने बजाने के लिए पहुंचे थे. पलामू मंगला काली मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित रवि शास्त्री ने कहा कि शास्त्रों में पांवरिया का जिक्र है. राजा दशरथ के जब चार पुत्र हुए तो सभी को बुलाया गया था. इस दौरान पांवरियों को राजा दशरथ ने काफी उपहार दिए थे. पंडित रवि शास्त्री बताते हैं कि पांवरिया का आगमन बच्चे के लिए दीर्घायु माना जाता है और यह काफी शुभ होता है जिसका शास्त्रों में जिक्र है.