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कर्नल एस अखौरी ने कारगिल की लड़ाई में दिखाया था पराक्रम, घुटने टेकने पर मजबूर हो गए थे दुश्मन - कारगिल की लड़ाई में कर्नल एस अखौरी का पराक्रम

पूरे भारत में 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है. इस दौरान कारगिल की लड़ाई में शामिल वीर योद्धाओं को याद किया जाता है. पलामू के कुछ ऐसे वीर हैं, जिन्होंने कारगिल की लड़ाई में अपनी वीरता और पराक्रम की बौदलत दुश्मनों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था.

कर्नल एस अखौरी ने कारगिल की लड़ाई में दिखाया था पराक्रम
Colonel S Akhauri had shown might in Kargil war

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Published : Jul 25, 2020, 8:09 PM IST

पलामू: पूरे भारत में 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है. इस दौरान कारगिल की लड़ाई में शामिल वीर योद्धाओं को याद किया जाता है. पलामू के कुछ ऐसे वीर हैं, जिन्होंने कारगिल की लड़ाई में अपनी वीरता और पराक्रम की बौदलत दुश्मनों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था.

कर्नल एस अखौरी का बयान

वीरता के लिए जाना जाता है कर्नल का परिवार

कर्नल एस अखौरी का परिवार वीरता के लिए जाना जाता है. उनके बेटे फ्लाइट लेफ्टिनेंट मनु अखौरी फाइटर प्लेन उड़ाते हुए शहीद हो गए थे. मनु अखौरी ने जब उड़ान भरी थी तो अचानक फाइटर प्लेन में खराबी आ गई थी. जब उन्होंने प्लेन को लैंड करवाना चाहा तो देखा कि आगे 1500 स्कूली बच्चे मैदान में हैं. उन्होंने वहां लैंड नहीं करवाया और आगे सुरक्षित जगह देखा, तब तक प्लेन क्रैश कर गया.

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कारगिल की लड़ाई में दुश्मनों के खिलाफ दिखाई थी अपनी तकनीकी पकड़

कारगिल की लड़ाई के दौरान कर्नल एस अखौरी पर सेना के इलेक्ट्रॉनिक और मैकेनिकल बटालियन की पूरी जिम्मेदारी थी. यह बटालियन टैंक, गन, रडार, नाइट विजन, मिसाइल की मरम्मत करने और जवानों तक पंहुचाने की जिम्मेदारी उठता था. कर्नल एस अखौरी बताते हैं कि कारगिल की लड़ाई से पहले उन्हें लगा था कि कुछ होने वाला है. वे उस दौरान सांबा और हीरानगर के इलाके में तैनात थे. उनका कहना है कि कारगिल की लड़ाई के दौरान वे ठिकानों का जिरोईंग का काम करते थे, ताकि सेना तोप में गोले मिसाइल को सही ठिनाने पर गिरा सके.

बड़ी चुनौती वाली थी कारगिल की लड़ाई

बता दें कि कर्नल एस अखौरी 1976 कमिशन के माध्यम से भर्ती हुए थे और 2013 में रिटायर हुए थे. कर्नल अखौरी मेदिनीनगर के इंजीनियरिंग रोड में रहते है, जो उनके शहीद बेटे मनु अखौरी के नाम से हो गया है. कर्नल अखौरी बताते हैं कि कारगिल की लड़ाई बड़ी चुनौती वाली थी. जवानों को दुश्मनों के ठिकाने को बताने के साथ-साथ हथियारों को ठीक करना पड़ता था. रात के वक्त तकनीकी जानकारी उपलब्ध करना बड़ी चुनौती होती थी, इसके बावजूद बटालियन ने सफलतापूर्वक युद्ध को अंजाम दिया.

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