पलामूः बच्चे देश और समाज का भविष्य है लेकिन इनके बचपन पर पर दलालों की नजर लग गई है. दलाल अपना दायरा बढ़ा रहे हैं और इन बच्चों पर शिकंजा जा कसते जा रहे हैं. 90 के दशक तक जिला के मनातू पूरे भारत में बंधुआ मजदूरी के लिए चर्चित रहा. 90 के बाद यह इलाका नक्सल हिंसा के लिए चर्चित हुआ, अब यह इलाका बाल मजदूरों के तस्करी का केंद्र बन गया है. मनातू का इलाका पिछड़ा हुआ है, जिन परिवारों के बच्चे बाल मजदूरी के लिए पलायन कर रहे है वो बेहद गरीब और लाचार है.
पैसों के लिए माता-पिता बच्चों को भेज रहे बाहर
लॉकडाउन के बाद मनातू इलाके से बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हुआ है. दलाल गाड़ी लेकर मनातू के इलाके या उससे सटे हुए इलाकों में पंहुच रहे हैं और बच्चों को लेकर जा रहे हैं. कई मामलों में माता-पिता तीन से पांच हजार रुपए में बच्चों को दलालों के हांथो में सौंप रहे हैं. मनातू के डुमरी के रहने वाले तेतर भुइयां का 14 वर्षीय बच्चा भी मजदूरी के लिए गया है. उसकी मां घर मे किराना दुकान चला कर पेट पाल रही. तेतर भूइयां की पत्नी बताती है कि वह सिर्फ इतना जानती है कि बेटा आधार कार्ड लेने के बहाने घर में आया और जब बाहर निकली तो देखी एक टेंपो में 14-15 बच्चे सवार थे और सभी मजदूरी के लिए जा रहे थे. इसी तरह डुमरी के ही मंगर भुइयां, कपील भुइयां, काजल भुइयां, मनराज भुइयां का बेटा अखिलेश भुइयां, बंगाली भुइयां, अकलू भुइयां, वृक्ष भुइयां का बेटा मजदूरी के लिए चला गया. मनातू के दलदलिया, डुमरी, साहद, नागद, मिटार, उरुर, जगराहा, बंसी खुर्द समेत कई गांव में दलालों के नेटवर्क है. दलाल आदिम जनजाति और दलित परिवार के बच्चो को अधिक निशाना पर ले रहे है.