पलामू: 27 जनवरी को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बूढ़ापहाड़ पहुंचेंगे. हेमंत सोरेन राज्य के पहले सीएम हैं जो बूढ़ापहाड़ के इलाके में पहुंचेंगे. सीएम हेलीकॉप्टर से बूढ़ापहाड़ पहुंचेंगे और कई घंटे तक इलाके में रहेंगे. सीएम इस दौरान स्थानीय ग्रामीणों की समस्याओं से अवगत होंगे और उसके समाधान को लेकर कई घोषणाएं भी करेंगे.
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सीएम के साथ गढ़वा और लातेहार की पूरी प्रशासनिक टीम भी मौजूद रहेगी. इस दौरान मुख्य सचिव, गृह सचिव, डीजीपी और सीआरपीएफ के टॉप अधिकारी भी मौजूद रहेंगे. वहीं झारखंड-छत्तीसगढ़ सीमा स्थित बूढ़ापहाड़ इलाके में पहली बार गणतंत्र दिवस समारोह धूमधाम से मनाने की तैयारी चल रही है और इससे जुड़े कई बड़े आयोजन हो रहे हैं. इलाके के एक दर्जन गांवों में पहली बार गणतंत्र दिवस के दौरान झंडोत्तोलन किया जाना है. पूर्व में माओवादियों के भय के कारण इलाके में झंडोत्तोलन नहीं किया जाता था.
बूढ़ापहाड़ पर चलाया जा रहा ऑपरेशन ऑक्टोपस, सुरक्षाबलों का हुआ है कब्जा: बूढ़ापहाड़ पर सितंबर महीने से माओवादियों के खिलाफ ऑपरेशन ऑक्टोपस शुरू किया गया था. इस अभियान में सुरक्षाबलों ने पहली बार बूढ़ापहाड़ पर अपना कब्जा जमा लिया है. अभियान के क्रम में माओवादी बूढ़ापहाड़ को छोड़कर भाग गए हैं. बूढ़ापहाड़ पर सुरक्षाबलों ने आधा दर्जन के करीब अपने कैंपों को स्थापित किया है. इन कैंप में कोबरा, सीआरपीएफ, जगुआर के जवानों को तैनात किया गया है. इलाके से अब तक सुरक्षाबलों ने 2500 से अधिक लैंड माइंडस बरामद किया है और आधा दर्जन से अधिक बंकरों को ध्वस्त किया है.
इलाके के विकास के लिए तैयार किया गया है रोड मैप, किया गया था सर्वेक्षण: बूढ़ापहाड़ पर कब्जे के बाद सुरक्षाबलों ने सबसे पहले इस इलाके में सामाजिक और आर्थिक सर्वेक्षण शुरू किया था. इलाके में रहने वाले एक-एक गांव के एक-एक परिवार का डाटा तैयार किया गया है. इस डाटा के माध्यम से ग्रामीणों की समस्याओं को भी नोट किया गया है. अभियान के क्रम में सुरक्षाबलों ने खुद से रोड और पुल तैयार किया है और इलाके को पहली बार मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश की है.
2013-14 में बूढ़ापहाड़ को माओवादियों ने यूनिफाइड कमांड बनाया था: 2013-14 में बूढ़ापहाड़ को माओवादियों ने अपना यूनिफाइड कमांड बनाया था. माओवादी अपनी सभी तरह की गतिविधि का संचालन यहीं से करते थे और बिहार, झारखंड और उत्तरी छत्तीसगढ़ में घटनाओं को अंजाम देते थे. बूढ़ापहाड़ से माओवादियों ने एक अभेद किला बना रखा था. बूढ़ापहाड़ अभियान में 2013-14 से अब तक एक दर्जन के करीब जवान शहीद हुए हैं, जबकि डेढ़ दर्जन से अधिक जख्मी हुए हैं. बूढ़ापहाड़ के इलाके में तीन दर्जन से अधिक बार सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच मुठभेड़ भी हुई है. माओवादियो का पोलित ब्यूरो सदस्य रहा देव कुमार सिंह उर्फ अरविंद के नेतृत्व में माओवादियों ने बूढ़ापहाड़ को ठिकाना बनाया था. 2018 में अरविंद की मौत हो गई थी. अरविंद की मौत के बाद सुधाकरण ने बूढ़ापहाड़ की कमान संभाली थी. 2019-20 में सुधाकरण ने अपनी टीम के साथ तेलंगाना में आत्मसमर्पण कर दिया था. बाद में बूढ़ापहाड़ की कमान मिथिलेश मेहता को मिली थी. मिथिलेश मेहता 2022 में गिरफ्तार हुआ था. बूढ़ापहाड़ की कमान फिलहाल सौरव उर्फ मारकुस बाबा के पास है.