पाकुड़: जिले के लिट्टीपाड़ा प्रखंड के 304 गांवों में रहने वाले आदिवासी, पहाड़िया एवं अन्य समुदाय को साफ पीने पानी देने के लिए योजना शुरू कराई गई. 217 करोड़ की ग्रामीण जलापूर्ति योजना की गति इतनी धीमी है कि इसका खामियाजा यहां के ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है.
कंपनी कर रही लेट-लतीफी
शासन और प्रशासन की लापरवाही एवं योजना के संवेदक मेसर्स टहल कंसल्टिंग इंजीनियर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की लेट लतीफी कर रही है. जिससे यहां की ग्रामीण महिलाओं को दुर्गम क्षेत्रों एवं पहाड़ों पर रहने वाले ग्रामीणों को बरसात के इस मौसम में भी पीने का पानी के लिए झाड़ियों जंगलों से गुजरते हुए झरना कुंआ और नदियों का पानी लेने को मजबुर होना पड़ रहा है. योजना के संवेदक की ओर से ग्रामीण इलाकों में रखे गये पाइप और अधुरे पड़े चेकडेम, इंटेकवेल, सम्प, टंकी ग्रामीणों को मुह चिढ़ा रहा है. जिस गति से लिट्टीपाड़ा वृहत ग्रामीण जलापूर्ति योजना का काम चल रहा है. शायद ही आने वाले एक साल के अंदर इसका काम पूरा हो सके और यह अपने उद्वेश्य में सफल हो पाये.
40 फीसदी भी नहीं हुआ काम
जिला के सबसे पिछड़े लिट्टीपाड़ा प्रखंड के आदिम जनजाति पहाड़िया ग्रामीणों की मांग पर तत्कालिन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपने शासनकाल में 217 की लिट्टीपाड़ा वृहत ग्रामीण जलापूर्ति योजना की स्वीकृति दी. निविदा निकाली गयी और इस योजना को पूर्ण कराने की जिम्मेदारी मेसर्स टहल कंसल्टिंग इंजीनियर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को दी गयी. टहल कंपनी ने पेयजल स्वच्छता विभाग के साथ 159 करोड़ रुपये का इकरारनामा किया और काम भी चालू किया गया. लेकिन इस महत्वपूर्ण योजना की की प्रगति 40 फीसदी भी नहीं हो पायी है. योजना को मार्च 2020 तक पूर्ण कराया जाना था.