पाकुड़: विलुप्ति के कगार पर पहुंच रही आदिम जनजाति पहाड़िया समाज के दिन अब बहुरने वाले हैं. ऐसा इसलिए कि आदिम जनजाति पहाड़िया समाज की महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण के लिए सरकार ने उड़ान परियोजना को धरातल पर उतारने का काम किया है. आर्थिक रूप से कमजोर इन आदिम जनजाति पहाड़िया परिवारों की पारंपरिक खेती को बढ़ावा देकर महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण में उड़ान परियोजना मददगार साबित हो रहा है.
पहाड़िया जनजाति का मुख्य पेशा है खेती
झारखंड राज्य के अंतिम छोर पर बसे पाकुड़ जिले के लिट्टीपाड़ा, अमड़ापाड़ा के अलावा महेशपुर, पाकुड़िया और हिरणपुर के पहाड़ों पर वर्षों से निवास करने वाले आदिम जनजाति पहाड़िया का मुख्य पेशा खेती ही रहा है. इन प्रखंडों के पहाड़ों और दुर्गम जंगलों में स्थित गांवों में रहने वाले पहाड़िया समुदाय के पुरूष वर्ग के लोग बरबट्टी, मकई, कुर्थी, बाजरा, मरूआ, अरहर आदि की खेती कर अपना और परिवार का किसी तरह भरण पोषण किया करते थे. इस पारंपरिक खेती के लिए आर्थिक रूप से कमजोर पहाड़िया परिवारों को बीज आदि की खरीददारी के लिए महाजनों का सहयोग लेना पड़ता था. इतना ही नहीं फसलों के उत्पादन के बाद इसकी बिक्री बिचैलियों को औने-पौने दामो में करनी पड़ती थी जिसके चलते जितना ये मेहनत करते थे उतना फायदा पहाड़िया परिवारों को नहीं मिलता था.
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सामाजिक और आर्थिक रूप से होंगे सशक्त
ग्रामीण विकास विभाग की महत्वपूर्ण उड़ान परियोजना के माध्यम से पहाड़िया परिवारों के सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए सरकार ने पहाड़िया महिलाओं से खेती कराने का निर्णय लिया. उड़ान परियोजना को धरातल पर उतारने और इसके संचालन की जिम्मेवारी झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी को दी गयी. जेएसएलपीएस ने जिले के आदिम जनजाति पहाड़िया महिलाओं को पहले सखी मंडलों से जोड़ा और उन्हे पारंपरिक खेती अरहर, मरूआ, कुर्थी, बरबट्टी, मकई आदि की अधिक उपज करने के साथ ही कृत्रिम खाद के उपयोग की जानकारी देने के लिए पहले प्रशिक्षण दिया. जब गांव की पहाड़िया महिलाएं अपने पारंपरिक खेती के लिए पूरी तरह प्रशिक्षित हो गयी तो उन्हे बीज मुहैया कराया गया.