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पाकुड़: रेशम कीट पालन से जुड़े 4 हजार आदिवासी किसान, बन रहे आत्मनिर्भर - पाकुड़ में आदिवासी किसान रेशम कीट का पालन कर रहे

पाकुड़ में हथकरघा और हस्तशिल्प निदेशालय द्वारा संचालित अग्र परियोजना के माध्यम से आदिवासी किसान रेशम कीट का पालन कर रहे हैं. किसान इस व्यवसाय से लगभग 20 हजार रुपए महीना आमदनी कर रहे हैं.

Tribal farmers are rearing silk pests in Pakur
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Published : Aug 13, 2020, 7:52 PM IST

पाकुड़: जिले के नक्सल प्रभावित इलाके के ग्रामीण आदिवासी रेशम कीट पालन से जुडे हैं. इसके लिए इन ग्रामीणों को रेशम कीट पालन का प्रशिक्षण दिया गया. पाकुड़ के अमड़ापाड़ा, लिट्टीपाड़ा और हिरणपुर के ग्रामीण इसका लाभ उठा रहे हैं.

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हथकरघा एवं हस्तशिल्प निदेशालय द्वारा संचालित अग्र परियोजना ने सबसे पहले पहाड़िया और आदिवासी ग्रामीणों का चयन कर उन्हें रेशम कीट पालन का प्रशिक्षण दिया. प्रशिक्षण में रेशम कीट पालन के तरीकों और इससे होने वाले अर्थोपार्जन के बारे में भी बताया गया. जो ग्रामीण हुनर बंद हो गए हैं उनसे रेशम कीट पालन कराया जा रहा है. अग्र परियोजना द्वारा की गयी पहल का ही नतीजा है कि आज लगभग चार हजार किसान रेशम कीट का पालन कर रहे हैं.

किसानों द्वारा तैयार कोकून को अग्र परियोजना रेशम के धागे के लिए बाहर भेज देगी. सरकार की इस महत्वपूर्ण योजना का जिले के तीन प्रखंड अमड़ापाड़ा, लिट्टीपाड़ा एवं हिरणपुर के ग्रामीण लाभ उठा रहे हैं. सरकार ने यदि रेशम कीट के प्रोसेसिंग की व्यवस्था अग्र परियोजना कार्यालय में ही कर दी तो निश्चित रूप से इसका भी लाभ जिले के हुनरमंद लोगों को मिल पाएगा.

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अग्र परियोजना सहायक नईम अंसारी ने बताया कि इस वर्ष किसानों के बीच 70 हजार तितली का अंडा वितरण किया जाना है. उन्होंने बताया कि अंडा वितरण के बाद किसानों से पेड़ों में ब्लीचिंग का छिड़काव के साथ साफ-सफाई भी कराया जाएगा और जब अंडा से कीड़ा निकल जाएगा तो उसे पेड़ में चढ़ाकर 35 दिनों के लिए छोड़ दिया जाएगा. इसके बाद कोकून तैयार कर उसे प्रोसेसिंग के लिए बाहर भेज दिया जाएगा. परियोजना सहायक ने बताया कि एक किसान 18 से 20 हजार रुपए की आमदनी कर लेता है. यदि सही तरीके से देखभाल करें तो किसान और ज्यादा आमदनी कर सकता है.

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