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पाकुड़ के प्रो. मुखर्जी की खोज ने जलकुंभी को अभिशाप से बनाया वरदान, लेकिन सरकार नहीं उठा सकी लाभ

जलकुंभी तालाब के काफी तेजी से फैलती है और जल में रहने वाले जीव-जंतुओं और वनस्पतियों को नुकसान पहुंचाती है, लेकिन पाकुड़ के कुमार कालीदास मेमोरियल कॉलेज में वनस्पतिशास्त्र के व्याख्याता डॉ. प्रसन्नजीत मुखर्जी ने इन जलकुंभी के न सिर्फ निपटारे के तरीके का निजात किया, बल्कि इसे किसानों के लिए वरदान भी बनाया है.

जलकुंभी पर शोध करते प्रोफेसर

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Published : Oct 4, 2019, 8:02 PM IST

पाकुड़: जिले के कुमार कालीदास मेमोरियल कॉलेज में वनस्पतिशास्त्र के व्याख्याता डॉ. प्रसन्नजीत मुखर्जी ने अभिशाप को वरदान बना दिया है. किसानों और मत्स्य पालकों को जलकुंभी से होने वाले नुकसान से निजात दिलाने के लिए डॉ. मुखर्जी ने जलकुंभी से खाद बनाने की इच्छा जगाई. शोधकर्ता डॉ. मुखर्जी ने जलकुंभी से खाद बनाने के तरीका का भी इजाफा किया, लेकिन इनके इस शोध का न तो सरकार लाभ उठा पाई और न ही किसान.

क्यों बन जाता है जलकुंभी अभिशाप

डॉ. मुखर्जी ने बताया कि जलकुंभी तालाबों में 48 हजार गुणा तेजी से बढ़ता है. इसके बढ़ने से न केवल तालाब के पानी में ऑक्सीजन की कमी होती है, बल्कि ऑक्सीजन की कमी होने से जल में रहने वाले छोटे-छोटे जीव-जंतु और वनस्पति जो पानी के ऑक्सीजन पाकर जीवित रहते हैं, उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ता है.

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जलकुंभी से बने खाद के फायदे
डॉ मुखर्जी ने बताया कि जलकुंभी से खाद बनाने का काम यदि व्यापक रूप से कराया जाय तो न केवल तालाबों के पानी की शुद्धता, जीव-जंतु और वनस्पति का रख रखाव होगा, बल्कि मत्स्य पालन वैसे तालाब जहां जलकुंभी ज्यादा पाए जाते हैं, उनको भी फायदा होगा. डॉ. मुखर्जी ने बताया कि जलकुंभी से बनाए गए खाद किसानों को सस्ते दर पर मिलेंगे. वहीं, जैविक खेती को भी इससे बढ़ावा मिलेगा. डॉ. मुखर्जी के अनुसार इस खाद से फुल की खेती को सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा.

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आखिर कैसे बन कर तैयार होता है यह खाद
डॉ. मुखर्जी ने जलकुंभी से खाद बनाने के तरीके की विधि बताई. खाद के इस्तेमाल से खेतों की उवर्रा शक्ति और फसलों की उपज बढ़ाई जा सकती है. पहले तो उन्होंने जलकुंभी से खाद निर्माण पर शोध किया. जिसमें अपने कॉलेज परिसर में ही गड्ढा खोदा, तालाब से जलकुंभी लाकर खाद बनाने का प्रयोग शुरू की. खाद को कई परतों में बनाया जाता है. पहले जलकुंभी को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट गड्ढे में डाल 5 इंच की परत बनाई जाती है. जिसमें गोबर और काफी कम मात्रा में यूरिया जैसे रासायन डाल दिए जाते हैं साथ ही बीच में एक बांस भी लगाया जाता है. जिससे ऑक्सीजन जा सके. इस प्रक्रिया को कई बार दोहराया जाता है. गड्ढा भर जाने के बाद उसे मिट्टी या कीचड़ से ढक दिया जाता है. बता दें कि यह खाद 80 दिनों में बन कर तैयार हो जाता है. खाद सस्ती दरों में किसानों को आसानी से उपलब्ध कराई जा सकती है.

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सरकार देश में विकसित तकनीक पर नहीं दे रही ध्यान

राज्य की रघुवर सरकार कृषि हो, मत्स्य पालन या कोई अन्य रोजगार से राज्य के लोगों को लाभांवित करने के लिए दूसरे प्रदेश और देश में किसानों और युवाओं को प्रशिक्षण के लिए भेज रही है, पर अपने ही राज्य के शोधकर्ताओं को सरकार मदद नहीं करती. जिस वजह से शोधकर्ता भी अखबारों के पृष्ठ की शोभा बनकर रह जाते हैं. ऐसा ही कुछ हुआ डॉ. जिस लगन और मेहनत से जलकुंभी से खाद बनाने का तरीका डॉ. मुखर्जी ने इजात किया, इसे किसानों के खेतों और मत्स्य पालकों के तालाबों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार ने पहल तक नहीं की.


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