पाकुड़:रोजगार और आत्मनिर्भरता के मामले में जिले की आदिवासी महिलाएं भी पुरुषों से पीछे नहीं है. घरों का चौका बर्तन कर परिवार का भरण-पोषण करने वाली गांव की महिलाएं आज न केवल खुद को, बल्कि दूसरी महिलाओं को भी स्वरोजगार और आत्मनिर्भर बनाने के लिए अरहर खेती के बाद दाल उत्पादन का काम कर रही है.
'लोकल को वोकल' का नारा हुआ चरितार्थ
पूरे देश में कोरोना संक्रमण से बचाव और रोकथाम को लेकर लॉकडाउन लागू है. लॉकडाउन के दौरान महिला हो या पुरुष सभी अपने को सुरक्षित रखने के लिए अपने-अपने घरों में ही रह रहे हैं. प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन 4 लागू होने से पहले एक नारा दिया है. 'लोकल को वोकल' इसी नारे को चरितार्थ कर रही जिले की वैसी आदिवासी महिलाएं जो न केवल कम पढ़ी लिखी हैं, बल्कि इनका अधिकांश अबतक की जिंदगी बाल-बच्चों के पालन-पोषण और चौका बर्तन में गुजरा है.
एससीआई विधि से हुई अरहर की खेती
पाकुड़ की आदिवासी महिलाएं न केवल अरहर की खेती, बल्कि आज दाल का उत्पादन भी कर रही है. इन आदिवासी महिलाओं की ओर से उत्पादित दाल की खपत जिला प्रशासन आंगनबाड़ी केंद्रों में करेगा, जिसे गर्भवती और धातृ माताओं के बीच मुफ्त में वितरण किया जाएगा. जिले के दर्जनों गांव की आदिवासी महिलाएं अरहर की खेती के साथ-साथ इससे दाल बना रही है और खुद आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ अन्य महिलाओं को रोजगारोन्मुखी बना रही है. झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी ने पहले एक हजार महिला किसानों से अरहर की खेती एससीआई विधि से करवाया.