पाकुड़: लाखों करोड़ों खर्च करने के बाद भी जिले के शैक्षणिक स्तर में बदलाव नहीं आ पा रहा है. जिसका जीता जागता उदाहरण मैट्रिक का घोषित रिजल्ट है. वार्षिक माध्यमिक परीक्षा में पाकुड़ जिला का स्थान नीचे से पहला है. झारखंड के 24 जिलों में पाकुड़ जिले का मैट्रिक परीक्षा परिणाम का प्रतिशत 63.9 है.
मैट्रिक परिणाम पर प्रतिक्रिया बेहतर रिजल्ट नहीं
झारखंड सरकार ने शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए बीते वर्ष उच्च विद्यालयों में व्यापक पैमाने पर विषयवार शिक्षकों की बहाली की. इतना ही नहीं शिक्षकों का पदस्थापन भी उनकी इच्छा के अनुसार विद्यालयों में किया गया. सरकार की सोच थी कि शिक्षकों की कमी को दूर करने के बाद परिणाम भी बेहतर आएंगे, लेकिन पाकुड़ जिले के विद्यार्थियों का जो परिणाम आया है उसने न केवल सरकार, बल्कि शिक्षकों के अभिभावकों की मंशा पर भी पानी फेर दिया है.
ये भी पढ़ें-जामताड़ा: SBI ग्राहक सेवा केंद्र से 1.82 लाख की लूट
ईटीवी भारत ने छात्र और शिक्षकों से की बातचीत
परीक्षा परिणाम राज्य के दूसरे जिलों की अपेक्षा निम्न स्तर आने पर शिक्षकों के साथ-साथ अभिभावक भी कई तरह की प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं. लेकिन सच कहें तो झारखंड राज्य अलग बनने के बाद प्राथमिक हो या माध्यमिक शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए सरकार के स्तर से जो प्रयास किए जाने चाहिए थे वह नहीं हुआ. इसी का नतीजा है कि परिणाम बेहतर आने पर शिक्षक और विभाग अपनी पीठ थपथपाता है और परिणाम खराब आया तो सारा दोषारोपण परीक्षार्थियों पर करना शुरू हो जाता है. वार्षिक माध्यमिक परीक्षा में राज्य में सबसे कम बच्चों के सफल होने के क्या कारण हैं इस पर शिक्षकों, विद्यार्थियों से ईटीवी भारत ने बातचीत की.
विद्यार्थियों और शिक्षकों की राय
छात्रा सुप्रिया जायसवाल का मानना है कि जो बच्चे प्रतिदिन विद्यालय जाते हैं उनका परिणाम निश्चित रूप से अच्छा होता है. वैसे छात्र-छात्राओं का रिजल्ट खराब हुआ है जो विद्यालय नहीं के बराबर आते हैं. छात्रा रानी साहा का कहना है कि परीक्षा के एक-दो माह पूर्व छात्र-छात्राओं को रिवीजन करना चाहिए, ताकि वह परीक्षा में सही तरीके से लिख सकें, लेकिन कुछ छात्र-छात्राएं ऐसे होते हैं कि वे पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते और रिजल्ट खराब हो जाता है.
ये भी पढ़ें-चतरा: मां बेटी को सांप ने काटा, डॉक्टर की लापरवाही ने ले ली दुधमुंही की जान
सेल्फ स्टडी जरूरी
वहीं, छात्र मो. अरबाज का कहना है कि दूसरे जिलों की तुलना में पाकुड़ जिले में पढ़ाई का माहौल नहीं है, जिस कारण बच्चों का रिजल्ट खराब होता है. छात्र खोखन रविदास ने बताया कि रिजल्ट अच्छा हो इसके लिए सेल्फ स्टडी जरूरी है, लेकिन बहुत से बच्चे सेल्फ स्टडी पर ध्यान नहीं देते. शिक्षक अनिंद कुमार ने बताया कि बच्चों का रिजल्ट खराब होने का मुख्य कारण ग्रामीण इलाकों में विद्युत व्यवस्था खराब होना, साथ ही सबसे बड़ा कारण रोजगार का अभाव. शिक्षक ने बताया कि रोजगार के अभाव के कारण ग्रामीण इलाकों के बच्चे अपने अभिभावकों के साथ कामकाज में हाथ बटाते हैं और बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है.
ये भी पढ़ें-मंत्री मिथिलेश ठाकुर के कोरोना पॉजिटिव मिलने पर गढ़वा में हड़कंप, कार्यकर्ता करा रहे टेस्ट
'आगे रिजल्ट बेहतर हो इसके लिए प्रयास किए जा रहे'
इधर, जिला शिक्षा पदाधिकारी रजनी देवी ने बताया कि पाकुड़ जिले का रिजल्ट खराब होने का मुख्य कारण शिक्षकों का अभाव था और शिक्षकों की विभाग की ओर से बहाली भी कराई गयी थी, लेकिन समय कम रहने के कारण रिजल्ट खराब हुआ है. उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष की तुलना में इस साल का रिजल्ट बेहतर है. जिला शिक्षा पदाधिकारी ने बताया कि पिछले साल 54% रिजल्ट था और इस वर्ष 63.9% आया है. उन्होंने कहा कि आगे रिजल्ट बेहतर हो इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं.