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झारखंड का एक गांव ऐसा भी, जहां इंसान और जानवर एक साथ बुझाते हैं अपनी 'प्यास' - Littipara block

पाकुड़ के लिट्टीपाड़ा के मांसधारी गांव की बदहाली है कि यहां के लोगों को पीने के लिए साफ पानी भी नसीब नहीं है. लिहाजा यहां के इंसान और जानवर एक साथ अपनी प्यास बुझाने को मजबूर है. मामले की जानकारी के बाद डीसी ने मदद का भरोसा दिया है.

गंदा पानी पीने को मजबूर ग्रामीण

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Published : Jul 29, 2019, 5:25 PM IST

Updated : Jul 29, 2019, 6:40 PM IST

पाकुड़: देश के सबसे पिछड़े 12 प्रखंडों में शामिल पाकुड़ जिले के लिट्टीपाड़ा के एक गांव में पीने के पानी के लिए इंसानऔर जानवर एक साथ पहुंचते है. इस गांव में न पानी की व्यवस्था है, न ही सड़क और न बच्चों के लिए कोई स्कूल. अधिकारियों की अनदेखी की वजह से यहां के लोगों की ऐसी दुर्दशा है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर एक ओर जलशक्ति से जनशक्ति अभियान चलाकर जल को संचित करने और भूगर्भ में जा रहे जलस्तर को ऊपर उठाने का काम किया जा रहा है. शासन और प्रशासन भी जलशक्ति अभियान को व्यापक रूप देने में जुटा है, लेकिन झारखंड राज्य के पाकुड़ के लिट्टीपाड़ा प्रखंड में इस गांव में आज भी जानवर और इंसान अपनी प्यास बुझाने के लिए एक साथ पहुंचते है.

नारे कागजों तक है सीमित
झारखंड राज्य अलग होने के वर्षो बाद भी मांसधारी गांव में मूलभुत और बुनियादी सुविधाए ग्रामीणों को मुहैया नहीं कराई जा सकी है. जल जंगल और जमीन का नारा बुलंद कर शासन का सुख भोगने वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा हो या सबका साथ सबका विकास का सपना दिखाने वाली भारतीय जनता पार्टी, किसी ने भी अपने शासनकाल में भी इस गांव के लिए ,कुछ नहीं किया. जिससे इस गांव की दशा और दिशा जस की तस रह गई. लिहाजा यहां रह रहे लोगों की दुर्दशा साफ झलक रही है.

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गांव में नहीं है पक्की सड़क
हकीकत यह है कि इस गांव तक पहुंचने के लिए सड़क तक नहीं है. पानी पीने के लिए चापानल, कुआं जैसी कोई व्यवस्था भी नहीं की गई है. जिसके चलते गांव के एक पुराने झरने में आदमी और जानवर दोनों पानी की तालाश में वहां पहुंचते हैं. यह पुराना झरना ही है जो इंसान और जानवर को एक सूत्र में पिरोये हुए हैं.

लाचार हैं गांव के कई लोग
वहीं, स्वास्थ्य सुविधाओं की दुर्दशा ऐसी कि गांव का 55 वर्षीय धोलिया पहाड़िया इलाज के अभाव में खाट पर अपनी जिंदगी बीता रहा है, क्योंकि स्वस्थ झारखंड सुखी झारखंड का सपना दिखाने वाले बाबु धोलिया के घर की चौखट तक अबत क नहीं पहुंच पाए हैं. यही नहीं स्कूल है, पर शिक्षक नहीं आते, गांव के बच्चे पढ़ने के बजाय दिनभर मवेशी चराने का काम करते हैं.

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सरकारी योजना का नहीं मिलता इन्हें लाभ
सरकार की कौशल विकास और मुद्रा जैसी रोजगार मुहैया कराने वाली योजनाएं इस गांव के लोगों को अबत क लाभांवित नहीं कर पाई है. परंपरागत बरबट्टी, मकई, बाजरा, अरहर, सुतनी, खुरसा, बाजरा की खेती के अलावे वन उत्पादों का दोहन कर इस गांव में रहने वाले पहाड़िया ग्रामीण अपना पेट भर रहे हैं.

डीसी ने गांव की रिपोर्ट लेने भेजी टीम
इस गांव की हालत देखने के बाद जब ईटीवी भारत की टीम ने डीसी कुलदीप चौधरी से पूछा तो उन्होंने बताया कि 'इसकी सूचना आपके माध्यम से मुझे मिली है.' डीसी ने ये भी कहा कि एक टीम गांव में भेजी जायेगी ताकि जांच के बाद रिपोर्ट मिले. उन्होंने बताया कि पेयजल की व्यवस्था की जायेगी, साथ ही इसकी समीक्षा भी करेंगे.

Last Updated : Jul 29, 2019, 6:40 PM IST

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