पाकुड़: जिला मुख्यालय के शहीद सिद्धो-कान्हू पार्क में स्थित 1856 ई. में बनाया गया मार्टिलो टावर आज भी संथाल विद्रोह की याद ताजा करती है. यही वजह है कि हूल दिवस के मौके पर यहां आज भी खासकर आदिवासी समाज के लोग मार्टिलो टावर देखने पहुंचते हैं.
24 घंटे में हुआ था टावर का निर्माण
अंग्रेजों के अत्याचार शोषण के खिलाफ संथाल विद्रोहियों पर नजर रखने और उनका प्रतिरोध करने के उद्देश्य से वर्ष 1856 में तत्कालीन अनुमंडल पदाधिकारी सर मार्टिन ने उक्त टावर का निर्माण 24 घंटे के अंदर कराया था.
अंग्रेजी शासन का विरोध
जानकारों के मुताबिक, अंग्रेज शासनकाल में अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार और शोषण के खिलाफ धनुष पूजा गांव में हजारों की संख्या में आदिवासी अपने पारंपरिक हथियारों के साथ विद्रोह करने के लिए इकट्ठा हुए थे. संथाल आदिवासियों द्वारा विद्रोह के पूर्व अपने पारंपरिक प्रमुख हथियार धनुष की पूजा की गई थी, जिसके कारण आज उस स्थल का नाम धनुष पूजा पड़ा है.
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संथाल विद्रोह
संथालों द्वारा किए जाने वाले विद्रोह की भनक अंग्रेजी हुकूमत को लगी और रातों-रात 1856 में सर मार्टिन द्वारा मार्टिलो टावर का निर्माण कराया गया. इतिहासकार बताते हैं कि जब संथालों द्वारा विद्रोह किया गया तो उस पर नजर रखने और प्रतिरोध करने के लिए अंग्रेजी सैनिकों ने मार्टिलो टावर का सहारा लिया. मार्टिलो टावर की ऊंचाई 27 फीट और उसका व्यास बाहर से 17 फीट है, इसमें 52 छिद्र और 2 खिड़की बने हुए हैं और एक दरवाजा भी मौजूद है. मार्टिलो टावर में बनाए गए छेद से ही अंग्रेजी सैनिक संथाल विद्रोह में शामिल संथालों पर गोलियां चलाते थे.