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WORLD ENVIRONMENT DAY: पर्यावरण संतुलन का नमूना पेश कर रहा है बगरू हिल्स बॉक्साइट माइंस, प्रभावितों के चेहरे पर मुस्कान - लोहरदगा न्यूज

पर्यावरण से छेड़छाड़ का नतीजा है कि मौसम में बेतहाशा बदलाव हुए हैं. इन सबकी वजह विकास की अंधी दौड़ है, लेकिन विकास के साथ-साथ प्रकृति का संतुलन भी बना रह सकता है, जरूरत है सही पहल की. इसकी झलक दिखती है लोहरदगा के बगरू माइंस में.

Bagru Hills Bauxite Mines in lohardaga
Bagru Hills Bauxite Mines in lohardaga

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Published : Jun 5, 2023, 6:03 AM IST

Updated : Jun 5, 2023, 6:16 AM IST

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रांची/लोहरदगाः विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर ग्लोबल वार्मिंग और मौसम में हो रहे बदलाव पर मंथन चल रहा है. झारखंड भी इससे अछूता नहीं है. वनक्षेत्र होने के बावजूद यहां के मौसम में भारी बदलाव आया है. इसकी तमाम वजहों में से एक वजह है माइनिंग. यहां की धरती के नीचे कोयला, लौह अयस्क, बॉक्साइट समेत कई अयस्क भरे पड़े हैं. जिनकों निकालने के दौरान पर्यावरण संतुलन की अनदेखी की बातें अक्सर सामने आती हैं. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे बॉक्साइट माइनिंग क्षेत्र में लेकर चलेंगे, जिसे देखकर आपको लगेगा कि पर्यावरण से तालमेल बिठाकर भी विकास का काम हो सकता है.

विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षणः रांची से करीब 80 किलोमीटर दूर लोहरदगा जिला में है बगरू पहाड़. यहां बॉक्साइट के कई माइंस हैं, जिनका संचालन आदित्य बिड़ला ग्रुप की कंपनी हिंडाल्कों दशकों से कर रही है. खास बात है कि एक तरफ बॉक्साइट निकाला जा रहा है तो दूसरी तरफ खनन हो चुके (माइंड आउट) क्षेत्र को पुराने स्वरूप में लौटाया भी जा रहा है. इसी का नमूना है बगरू पहाड़ पर मौजूद दो तालाब, जहां सालों भर पानी भरा रहता है. इस तालाब में स्वयं सहायता समूह की महिलाएं बत्तख पालन कर रही हैं. बत्तख और उसके अंडे बेचकर अपनी जरूरतें पूरा कर रही हैं. दोनों तालाब में मछली पालन भी किया गया है.

रैयतों के चेहरे पर है खुशीः पास के गांव की मंजू कुमारी ने बताया कि हमारे क्षेत्र में हो रहे विकास के कार्य से उन्हें खुशी होती है. कैती उरांव भी खुश हैं. दोनों स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हैं. कहती हैं मुर्गी पालन की सुविधा मिल जाती और आमदनी और बढ़ जाती. यहां के रैयतों को माइंस में नौकरी मिली हुई है. बच्चों को स्कूल ले जाने के लिए बस की सुविधा है. इलाज के लिए क्लीनिक भी है.

लोहरदगा का बगरू माइंस समुद्र तल से करीब 12सौ मीटर ऊपर है. इतनी ऊंचाई से ट्रॉली के जरिए बॉक्साइट को रेलवे साइडिंग तक पहुंचाया जाता है. पूरा पहड़ा सखुआ के विशाल पेड़ों से घिरा हुआ है. यहां सैलानी सेल्फी लेने पहुंचते हैं. एक तरह से कहें तो पूरे लोहरदगा की आर्थिक व्यवस्था को गति मिल रही है. बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिला हुआ है. पूरे क्षेत्र को इस कदर विकसित किया गया है कि यहां फिल्म की शूटिंग हो सकती है. चारों तरफ बड़े-बड़े सखुआ के पेड़ और बीच में गार्डन, तालाब और बगीचे. विकसित किए गये तालाब के तट पर बांस के दो कॉटेज बनाए गए हैं. बांस का ही एक कांफ्रेंस हॉल बनाया गया है. इसकी कारीगरी की जितनी भी तारीफ की जाए कम है.

रैयत और प्रकृति के बीच संतुलनः बगरू पहाड़ पर जाने के बाद विकसित किए गये क्षेत्र को देखकर लगता ही नहीं कि यहां कभी बॉक्साइट की माइनिंग हुई होगी. लेकिन सच्चाई यही है. कंपनी के एजेंट ऑफ माइंस प्रतीक कुमार ने बताया कि कैसे कंपनी रैयतों और प्रकृति के बीच संतुलन बना रही है. उन्होंने कहा कि कंपनी इको टूरिज्म के रूप में इलाके को डेवलप कर रही है ताकि भविष्य में जब यहां माइनिंग खत्म हो तो यह क्षेत्र अलग रूप में दिखे.

माइनिंग के बाद मिट्टी भराईः बगरू हिल्स बॉक्साइट माइंस के लिए 165 हेक्टेयर जमीन लीज पर ली गई है. इसकी तुलना में 112 हेक्टेयर क्षेत्र में माइनिंग का काम पूरा हो चुका है. खनन के बाद 81 हेक्टेयर क्षेत्र को मिट्टी से भरा जा चुका है. पूरे क्षेत्र में 2 लाख 84 हजार से ज्यादा पेड़ लगाए गए हैं. अब यहां चाय के बागान के अवसर तलाशे जा रहे हैं. इसका पॉजिटिव रिजल्ट सामने आया है. साथ ही कई हेक्टेयर में नाशपाती के बागान तैयार किए जा रहे हैं. ताकि यहां के रैयतों की आमदनी में और ज्यादा इजाफा हो सके. इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार सृजन की वजह से पलायन पर रोक लगी है.

आमतौर पर माइनिंग के बाद इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस के गाइडलाइन का पालन करना होता है. लेकिन ज्यादातर मामलों में खनिज निकालने के बाद उस क्षेत्र को पुराने स्वरूप में वापस नहीं किया जाता है. लेकिन बगरू हिल्स की तस्वीर बिल्कुल अलग है.

Last Updated : Jun 5, 2023, 6:16 AM IST

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