झारखंड

jharkhand

ETV Bharat / state

पाकुड़ में 'सफेद हाथी' साबित हो रही MDM योजना, करोड़ों खर्च के बावजूद स्कूल की चौखट नहीं लांघ रहे बच्चे

स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने सन 1995 में मिड डे मील यानी मध्यान भोजन योजना की शुरूआत की थी जो अब तक जारी है, लेकिन झारखंड के पाकुड़ में ये योजना दम तोड़ती नजर आ रही है. देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट

mid day meal, मिड डे मील
डिजाइन इमेज

By

Published : Feb 13, 2020, 11:12 PM IST

पाकुड़: विद्यालयों में छात्रों की शत-प्रतिशत मौजूदगी सुनिश्चित कराने और उन्हें शारीरिक-मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए चलाई जा रही मध्यान भोजन योजना अपने उद्देश्य से भटकता नजर आ रहा है. यही वजह है कि करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद बच्चे स्कूल की चौखट तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. जो इन स्कूलों के साथ-साथ देश के भविष्य के लिए भी अच्छे संकेत नहीं हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

दिन-ब-दिन बिगड़ रही योजना

दरअसल, यह सब उस राज्य में हो रहा है जिस राज्य के मुख्यमंत्री ने सरकारी खजाना खाली होने को लेकर पूर्व से चली आ रही कई योजनाओं को बंद करने का इशारा किया है. ऐसे में सवाल यह खड़ा हो गया है कि आखिर उच्च न्यायालय के निर्देश पर संचालित मध्यान भोजन योजना की स्थिति दिन-ब-दिन क्यों बिगड़ रही है और इसके लिए जवाबदेह कौन है. झारखंड के पाकुड़ जिले की अगर हम बात करें तो प्रति माह मध्यान भोजन योजना मद में कुकिंग कॉस्ट में 80 लाख, अंडा आपूर्ति मद में 20 लाख रुपए खर्च होने के साथ 22 सौ क्विंटल चावल की खपत हो रही है और बच्चों की उपस्थिति नामांकन के विरुद्ध महज 50 फीसदी है.

ये भी पढ़ें-धधकते अंगारों ने छीना इस शहर का चैन, जानिए दशकों पहले भड़की चिंगारी की कहानी

कई बार हो चुकी जांच और कार्रवाई

ऐसी बात नहीं है कि मध्यान भोजन योजना की समीक्षा के साथ-साथ इनकी जांच नहीं होती, जांच भी हुई कई अधिकारियों और शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई भी किया गया बावजूद जिस उद्देश्य से इस योजना को चालू किया गया उसकी प्राप्ति नहीं हो रही. क्योंकि जिन बच्चों के लिए मध्यान भोजन योजना की शुरुआत की गई और संचालन भी वे शत प्रतिशत रोज स्कूल नहीं आते. शिक्षा विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक जिले के स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या इस प्रकार है. कक्षा पहली से पांचवी तक 1 लाख 43 हजार 632 बच्चे और छठी से आठवीं तक 34 हजार 432 बच्चे हैं. जिले के प्राथमिक और मध्य सहित उत्क्रमित 993 विद्यालयों में नाम अंकित हैं. इन बच्चों को मध्यान भोजन योजना का लाभ दिलाने के लिए कुकिंग कॉस्ट में प्रतिमा 80 लाख रुपए, अंडा में 20 लाख, कक्षा 1 से 5 के लिए 15 सौ क्विंटल चावल एवं 6 से 8 के बच्चों के लिए 7 सौ क्विंटल 22 सौ क्विंटल चावल का उठाव होता है और नामांकित बच्चों के विरुद्ध बच्चों की उपस्थिति महज 50 फीसदी है.

समीक्षा के बाद भी नहीं हो रहा सुधार

मध्यान भोजन योजना के संचालन और इसके लेखा-जोखा सहित अन्य मामलों की जांच को लेकर सामाजिक अंकेक्षण की भी व्यवस्था सुनिश्चित की गई है. बीते वर्ष एमडीएम के सामाजिक अंकेक्षण में जो अनियमितता पाई गई. वह भी काफी चौंकाने वाला है. बीते वर्ष सामाजिक अंकेक्षण के दौरान एमडीएम संचालन में पाई गई अनियमितता और लापरवाही को लेकर उत्क्रमित मध्य विद्यालय सीतापहाड़ी के अध्यक्ष के खिलाफ एफआईआर दर्ज किए गए थे, तो लिट्टीपाड़ा प्रखंड के कुकुरडूबा, महेशपुर प्रखंड के दमदमा के हेडमास्टर पर जुर्माना लगाया गया था. इतना ही नहीं तत्कालीन जिला शिक्षा अधीक्षक अरुण कुमार और अमड़ापाड़ा प्रखंड के मध्य विद्यालय जमुगढ़िया के शिक्षक श्रवण कुमार दास, वर्णवास मरांडी और डीएसई कार्यालय के एक कर्मी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी. प्रखंड से लेकर जिला स्तर तक मध्यान भोजन योजना की प्रतिमाह समीक्षा होती है. बावजूद इसमें सुधार नहीं आ रहे और नामांकित शत-प्रतिशत बच्चे नहीं पहुंच रहे.

डीईओ ने दिया कार्रवाई क भरोसा

इस मामले को लेकर जिला शिक्षा अधीक्षक दुर्गानंद झा का कहना है कि मध्यान भोजन योजना किसी भी परिस्थिति में बंद नहीं होना चाहिए. यदि राशि का अभाव है तो जिला से मांग करें. उनका कहना है कि यदि किसी विद्यालय में एमडीएम बंद पाए जाने की शिकायत मिली तो सीधी कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने बताया कि सोशल ऑडिट के दौरान जो गड़बड़ियां पायी गयी थी उसमें शामिल अध्यक्ष और हेडमास्टर के खिलाफ कार्रवाई की गई है और संबंधित प्रखंडों के बीईओ से स्पष्टीकरण भी मांगा गया है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details