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Published : Jun 13, 2020, 6:02 PM IST

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LOCKDOWN: मांग घटने से बढ़ीं पशुपालकों की मुश्किलें, नहीं बिक रहा है दूध

लगभग तीन महीने की कोरोना काल का असर सब्जी और फलों के किसानों के साथ ही पोल्ट्री और डेयरी व्यवसाय पर भी पड़ा हैं. लोहरदगा में भी दूध की खपत कम होने से डेयरी संचालक और दूध उत्पादकों के सामने यही परेशानी है कि दूध का क्या करें. लोग औने-पौने दाम में दूध बेचने को विवश हैं. वहीं दूधी की डिमांड कम होने से व्यपारी उसका पनीर बनाकर उसे भी कम दामों में बेच रहे हैं.

problems of cattlemen increased due to reduced milk demand in lohardaga
मांग घटने से बढ़ीं पशुपालकों की मुश्किलें

लोहरदगा: दूध उत्पादन के क्षेत्र में लोहरदगा जिला अपना अलग पहचान रखता है. यही कारण है कि यहां के लोहरदगा डेयरी पिछले दो दशक से भी ज्यादा समय से क्रियाशील है. फिलहाल लोहरदगा डेयरी का संचालन मिल्क फेडरेशन के माध्यम से हो रही है. फिर भी लोहरदगा में दूध उत्पादन अपनी अलग पहचान रखता है. लोहरदगा में औसतन हर दिन 20,000 लीटर दूध का उत्पादन होता था.

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लॉकडाउन की वजह से दूध का उत्पादन ऐसा प्रभावित हुआ है कि अब तक इससे उबर नहीं पाया है. लोग कहते थे कि लोहरदगा में दूध की नदियां बहती हैं. आज वहीं पर अकाल नजर आ रहा है. जिले के अमूमन हर गांव में दूध संग्रह केंद्र है. जिसके माध्यम से ना सिर्फ महिलाएं दूध का संग्रह करती हैं, बल्कि दूध उत्पादन के क्षेत्र में ग्रामीणों का जुड़ाव हमेशा से बना हुआ है.

दूध संग्रह कर मेधा दूध की होती है पैकिंग

लोहरदगा जिले में झारखंड राज्य दुग्ध उत्पादक सहकारी महासंघ के माध्यम से जिले के अलग-अलग ग्रामीण क्षेत्रों से दूध का संकलन किया जाता है. फिर इस दूध को लोहरदगा डेयरी परिसर स्थित शीत गृह में रखा जाता है. यहां से इसे रांची भेजा जाता है. जहां पर मेधा दूध की पैकिंग होती है. फिर यही दूध राज्य के अलग-अलग हिस्सों में भी जाता है. जहां पर बिक्री की जाती है.

दूध उत्पादक

चारा का जुगाड़ करना भी मुश्किल

लोहरदगा में पहले एक सामान्य गौ-पालक भी महीने में 8 से 10 हजार रुपए की आमदनी कर लेता था. वर्तमान समय में स्थिति ऐसी हो गई है कि मवेशियों के लिए चारा का इंतजाम करना भी मुश्किल हो गया है. बात साधारण सी है कि लॉकडाउन का मतलब ना तो मवेशी समझ सकते हैं और ना ही दूध उत्पादन ही कम किया जा सकता है. मवेशियों को तो चारा भी चाहिए और वह दूध भी देंगी. भले ही यह दूध बाजार में बिक ना पाए.

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कई जिलों में होती थी दूध की बिक्री

लोहरदगा से पहले सामान्य तौर पर भी दूध उत्पादक गुमला, लातेहार और रांची के अलग-अलग क्षेत्रों में बेचने का काम करते थे. सिर्फ होटल में 5 हजार लीटर से ज्यादा दूध की बिक्री होती थी. लॉकडाउन की वजह से होटल बंद हुए तो यहां पर दूध की बिक्री भी बंद हो गई. हालात ऐसे हुए कि जो दूध 40 रुपए प्रति लीटर बिकता था, वह दूध 30 रुपए प्रति लीटर भी खरीदने वाला कोई नहीं है. मजबूरी में दूध उत्पादकों को पनीर बना कर उसे भी औने-पौने दाम में बेचना पड़ रहा है. लॉकडाउन का यह समय दूध उत्पादकों और गौ-पालकों के लिए काफी कष्टकारी रहा है.

सुनसान पड़ा लोहरदगा का खटाल

अधिकारी भी मानते हैं कि बेबस हैं दूध उत्पादक

जिला गव्य विकास पदाधिकारी त्रिदेव मंडल का कहना है कि दूध उत्पादक वर्तमान समय में काफी ज्यादा परेशान है. दूध का उत्पादन और उसकी बिक्री काफी प्रभावित हुई है. यह समय गौ-पालक और दूध उत्पादकों के लिए बेहद विपरीत है. विभाग सरकार के प्रावधान के अनुसार हर संभव सहयोग की कोशिश कर रहा है. चारा उपलब्ध कराने से लेकर मवेशियों की देखभाल को लेकर भी जानकारी दी जा रही है. हाल के समय में बीपीएल लाभुकों के बीच गाय का वितरण किया गया है.

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लोहरदगा जिले को कभी दूध उत्पादक के रूप में एक पहचान मिली थी. लॉकडाउन ने ऐसी कमर तोड़ी की दूध उत्पादक और दूध का उत्पादन दोनों प्रभावित हो गए. मवेशियों के लिए चारे का जुगाड़ करना भी मुश्किल हो गया.

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