लोहरदगा:दीपावली में मिट्टी के बर्तनों, दीया आदि का काफी महत्व है. इन सभी चीजों की पूर्ति हमें कुम्हार परिवार से होती है. समय में बदलाव के साथ लोगों की पसंद में भी बदलाव आया है. मिट्टी के बर्तनों के स्थान पर कांसा, पीतल के बर्तन उपयोग किए जाने लगे है. मिट्टी के दीये का स्थान अब इलेक्ट्रिक बल्ब और एलईडी लाइट ने ले लिया. ऐसे में कुम्हार समाज के सामने अपनी परंपरा को जीवित रखना बेहद मुश्किल हो गया था. परंपरा के साथ नई पीढ़ी जुड़ नहीं पा रहा था. इन सबके बीच कुम्हार समाज के जीवन में फिर एक बार बदलाव आया है. उनकी परंपरा को संजीवनी मिली है.
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लोहरदगा में मिट्टी के बर्तन, दीया आदि बनाने वाले कुम्हार समाज के अधिक लोग रहते हैं. इस समाज की आबादी लोहरदगा में लगभग 25 हजार है. जबकि इसमें से मात्र एक सौ परिवार ही मिट्टी के बर्तन बनाने के काम से जुड़े हैं. माटी कला बोर्ड के माध्यम से 2083 प्रति पीस की दर से इलेक्ट्रिक मशीन या इलेक्ट्रिक चाक (Electric Chalk) कुम्हार समाज के 40 परिवारों को उपलब्ध कराया गया है. जिसके बाद कुम्हार समाज के लोगों के लिए काम करना बेहद आसान हो चुका है. पहले हाथ और लकड़ी के डंडे के सहारे चाक के माध्यम से कुम्हार समाज के लोग बर्तन बनाते थे. जिससे वह काफी धीमी गति से काम कर पाते थे.
हाथ से मिट्टी के बर्तन बनाने में होती थी परेशानी
कुम्हार समाज के लोग कहते हैं कि दीपावली के समय जब हाथ से काम करना पड़ता था, तब दिन भर की मेहनत के बाद बहुत मुश्किल से चार सौ से लेकर पांच सौ तक दीया बना पाते थे. जबकि अब बड़े आराम से एक हजार से लेकर दो हजार दीया बना लेते हैं.