झारखंड

jharkhand

ETV Bharat / state

कुम्हार समाज की परंपरागत व्यवसाय को मिली संजीवनी, इलेक्ट्रिक चाक से संवरने लगी जिंदगी

लोहरदगा में कुम्हार समाज के जीवन में फिर एक बार बदलाव आया है. उनकी परंपरागत व्यवसाय को संजीवनी मिल गई है. माटी कला बोर्ड के माध्यम से 2083 प्रति पीस की दर से इलेक्ट्रिक मशीन या इलेक्ट्रिक चाक (Electric Chalk) कुम्हार समाज के 40 परिवारों को उपलब्ध कराया गया है. जिसके बाद कुम्हार समाज के लोगों के लिए काम करना बेहद आसान हो गया है और एक दिन में सैकड़ों दिये तैयार कर रहे हैं.

ETV Bharat
इलेक्ट्रिक चाक से बन रहे मिट्टी के दीये

By

Published : Oct 24, 2021, 5:22 PM IST

Updated : Oct 24, 2021, 5:36 PM IST

लोहरदगा:दीपावली में मिट्टी के बर्तनों, दीया आदि का काफी महत्व है. इन सभी चीजों की पूर्ति हमें कुम्हार परिवार से होती है. समय में बदलाव के साथ लोगों की पसंद में भी बदलाव आया है. मिट्टी के बर्तनों के स्थान पर कांसा, पीतल के बर्तन उपयोग किए जाने लगे है. मिट्टी के दीये का स्थान अब इलेक्ट्रिक बल्ब और एलईडी लाइट ने ले लिया. ऐसे में कुम्हार समाज के सामने अपनी परंपरा को जीवित रखना बेहद मुश्किल हो गया था. परंपरा के साथ नई पीढ़ी जुड़ नहीं पा रहा था. इन सबके बीच कुम्हार समाज के जीवन में फिर एक बार बदलाव आया है. उनकी परंपरा को संजीवनी मिली है.

इसे भी पढे़ं: कई शहरों में जगमगाएगा हजारीबाग के टेराकोटा डिजाइन का दीया, आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा भारत



लोहरदगा में मिट्टी के बर्तन, दीया आदि बनाने वाले कुम्हार समाज के अधिक लोग रहते हैं. इस समाज की आबादी लोहरदगा में लगभग 25 हजार है. जबकि इसमें से मात्र एक सौ परिवार ही मिट्टी के बर्तन बनाने के काम से जुड़े हैं. माटी कला बोर्ड के माध्यम से 2083 प्रति पीस की दर से इलेक्ट्रिक मशीन या इलेक्ट्रिक चाक (Electric Chalk) कुम्हार समाज के 40 परिवारों को उपलब्ध कराया गया है. जिसके बाद कुम्हार समाज के लोगों के लिए काम करना बेहद आसान हो चुका है. पहले हाथ और लकड़ी के डंडे के सहारे चाक के माध्यम से कुम्हार समाज के लोग बर्तन बनाते थे. जिससे वह काफी धीमी गति से काम कर पाते थे.

देखें पूरी खबर

हाथ से मिट्टी के बर्तन बनाने में होती थी परेशानी

कुम्हार समाज के लोग कहते हैं कि दीपावली के समय जब हाथ से काम करना पड़ता था, तब दिन भर की मेहनत के बाद बहुत मुश्किल से चार सौ से लेकर पांच सौ तक दीया बना पाते थे. जबकि अब बड़े आराम से एक हजार से लेकर दो हजार दीया बना लेते हैं.

दीये बनाते बच्चे

इसे भी पढे़ं: चाइनीज चकाचौंध के सामने दम तोड़ रही मिट्टी के दीयों की कलाकृति


नई पीढ़ी भी काम में ले रहे रुचि


महिलाएं भी मिट्टी के बर्तन और दीया बनाने में जुट गई हैं. यही नहीं अब समाज की नई पीढ़ी भी इस काम में रुचि ले रहे हैं. काम में कड़ी मेहनत, परेशानी, कम बचत की वजह से नई पीढ़ी इससे जुड़ नहीं पा रहे थे. लेकिन अब नई पीढ़ी के लोग रुचि लेने लगे हैं. पहले कड़ी मेहनत के बाद कम दीये तैयार होते थे. वहीं प्रति सैकड़ा दीया ढाई सौ रुपये में बेचना पड़ता था.

इलेक्ट्रिक से बने दीये

इलेक्ट्रिक चाक आने से दीये का प्रोडक्शन बढ़ा

वर्तमान समय में इलेक्ट्रिक चाक से अधिक दीये तैयार हो जाते हैं. जिसके कारण कम कीमतों में दीये की बिक्री की जाती है. इससे कुम्हारों कारीगरों को नुकसान भी नहीं हो रहा है. अब एक सौ रुपये से लेकर डेढ़ सौ रुपये प्रति सैकड़ा दीये बेचे जाने लगे हैं. कीमत कम होने से लोग खरीदने के लिए आगे भी आ रहे हैं. जिससे उन्हें बाजार भी मिल पा रहा है. इलेक्ट्रिक चाक की सहायता से काम करना बेहद आसान हो चुका है. परिवार के सभी सदस्य मिलकर आराम से काम कर करते हैं. पहले एक व्यक्ति के लिए काम करना बेहद मुश्किल होता था. गांव-गांव में इलेक्ट्रिक चाक का वितरण किए जाने से कुम्हार समाज की परंपरागत व्यवसाय को संजीवनी मिल चुकी है.

Last Updated : Oct 24, 2021, 5:36 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details