लोहरदगा: झारखंड की पहचान यहां के जंगलों और हरियाली से है. झारखंड का कुल वन क्षेत्र 23611 वर्ग किलोमीटर है. यह राज्य के कुल क्षेत्रफल का 29.62 प्रतिशत है. निजी स्थानों में भी लगे पेड़-पौधों को जोड़ दें तो 33 झारखंड में फीसदी जंगल है. राज्य की एक बड़ी आबादी जंगलों के सहारे ही भरण पोषण करती है. यहां के लोग जलावन की लकड़ी बेचकर गुजारा करते हैं. वहीं दातुन पत्ता, जंगली फल आदि की बिक्री के माध्यम से भी सैकड़ों लोग अपना जीवन-यापन करते हैं.
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विकास के नाम पर राज्य में लगातार जंगल काटे जा रहे हैं. वहीं वन माफिया भी जलावन के नाम पर पेड़ों की कटाई कर रहे हैं, जिसके कारण जंगल धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं. अब राज्य सरकार ने जंगल के माध्यम से ही स्थानीय लोगों को रोजगार देने के लिए एक नई योजना का क्रियान्वयन शुरू किया है. लोहरदगा के किस्को प्रखंड के सुदूरवर्ती क्षेत्र तिसिया, सलैया गांव में इस योजना की शुरुआत की गई है. यहां पर ब्रिकेट प्लांट के माध्यम से लोगों को रोजगार भी मिल रहा है.
सूखे पत्तों से तैयार किया जाता है ब्रिकेट
लोहरदगा के किस्को प्रखंड के पाखर पंचायत के तिसिया गांव में ब्रिकेट प्लांट की स्थापना की गई है. पावर प्लांट, उद्योग, ढाबा, ईंट भट्ठा, होटल और घरेलू कार्य में ईंधन के रूप में ब्रिकेट काफी ज्यादा उपयोगी होगा. ब्रिगेड इको फ्रेंडली होने के साथ-साथ कोयला की तुलना में अधिक गुणवत्तापूर्ण है. ब्रिकेट का निर्माण सूखे पत्तों से किया जाता है.
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कई गांव के लोगों को मिलेगा रोजगार
ब्रिकेट उत्पादन के माध्यम से लोहरदगा जिले के किस्को प्रखंड अंतर्गत पाखर पंचायत के तिसिया गांव एवं जंगल पर निर्भर कम से कम 20 गांव के लोगों को आय का एक नया साधन मिल गया है. भविष्य में यह और भी बढ़ने की संभावना है. वर्तमान समय में स्थानीय स्त्री-पुरुष जंगलों में गिरे सूखे पत्तों को लाकर ब्रिकेट प्लांट में दो रुपए प्रति किलो की दर से बेच रहे हैं. एक व्यक्ति को हर दिन कम से कम दो सौ रुपए से तीन सौ रूपये तक की आमदनी हो जाती है. छोटे-छोटे बच्चे भी इस कार्य से जुड़े हैं.
बेकार के कई चीजों से तैयार किया जाता है ब्रिकेट
ब्रिकेट का उत्पादन सूखे पत्तों, पुआल, डंडियों, कृषि उत्पाद एवं वन के व्यर्थ पदार्थों से किया जाता है. ब्रिकेट को तैयार करने के बाद इसे 5.50 रुपये प्रति किलो की दर से बिक्री किया जाता है. प्रारंभिक रूप से अभी यह ट्रायल में है और जल्द ही यह पूरी तरह से काम करने लगेगा. 5000 हेक्टेयर वन क्षेत्र से तिसिया गांव में 35 लाख रुपए की लागत से ब्रिकेट प्लांट की स्थापना की गई है. प्लांट में ट्रायल के रूप में 15 टन ईंधन का उत्पादन किया जा रहा है, जिसकी आपूर्ति लोहरदगा जिले के चिन्हित ईंट-भट्ठा में करने की तैयारी की जा चुकी है. ट्रायल के बाद इसे अन्य कारोबारियों और लोगों को उपलब्ध कराया जाएगा. ब्रिकेट का उपयोग ढाबा, ईंट-भट्ठा, होटल आदि स्थानों में किया जाना है. पत्ते के माध्यम से इंधन तैयार होने से पेड़ों की कटाई पर भी रोक लगेगी. स्थानीय ग्रामीण भी इससे काफी खुश हैं. प्लांट के माध्यम से कई लोगों को रोजगार मिला है.
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लोहरदगा में ब्रिकेट प्लांट ना सिर्फ यहां के लोगों के लिए वरदान साबित हो रहा है, बल्कि जंगलों के लिए भी जीवन देने वाला है. अब सूखे पत्तों की सहायता से कोयला का विकल्प तैयार किया जा रहा है. स्थानीय लोगों को इससे ना सिर्फ रोजगार मिल रहा है, बल्कि क्षेत्र के जंगलों की सुरक्षा को लेकर ग्रामीण सक्रिय भी हो चुके हैं. सूखे पत्तों से तैयार होने वाला यह इंधन ईंट-भट्ठा सहित अन्य स्थानों में उपयोग में लाया जाएगा.