लोहरदगा: झारखंड आदिवासी बहुल राज्य है. विशेष रूप से झारखंड के दक्षिणी छोटानागपुर और संथाल परगना में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं. राज्य सरकार जब बजट पेश करने वाली है तो हर किसी की नजर आदिवासियों के विकास को लेकर सरकार की सोच और योजना पर है. ऐसे में आदिवासियों के विकास के लिए अहम विषयों की ओर लोग सरकार का ध्यान आकृष्ट करा रहे हैं. हर कोई जानता है कि आदिवासियों का विकास करना है तो शिक्षा और रोजगार पर सबसे अधिक ध्यान देना होगा. इसके बिना आदिवासियों के साथ-साथ आदिवासी राज्य झारखंड का विकास नहीं हो सकता है. लोहरदगा जिला भी आदिवासी बहुल है. बजट को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने यहां के लोगों की राय जानी.
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लोहरदगा जिले की आबादी 4,61,790
17 मई 1983 को रांची जिले को विभाजित कर रांची, गुमला और लोहरदगा जिले को अलग-अलग किया गया था. इसी के फलस्वरूप लोहरदगा जिला अस्तित्व में आया. वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक लोहरदगा जिले की आबादी 4,61,790 है. जिसमें से पुरुष की आबादी 2,32,629 और महिलाओं की आबादी 2,29,161 है. जिले में कुल 66 पंचायत और 354 गांव हैं. वहीं कुल 88,638 परिवार निवास करते हैं. जिसमें से शहरी क्षेत्र में 12.4 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र में 87.6 प्रतिशत लोग निवास करते हैं. जिले साक्षरता की बात करें तो 67.61 प्रतिशत है. लोहरदगा जिले में अनुसूचित जाति की आबादी 15,330 और अनुसूचित जनजाति की आबादी 2,62,734 है. जिले की कुल आबादी में से अनुसूचित जनजाति की आबादी 56.9 प्रतिशत है.
विकास में पीछे छूट गए आदिवासी
विकास की दौड़ में आदिवासी समाज पीछे छूट चुका है. यहां पर आदिवासी समाज आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. लॉकडाउन के समय जब प्रवासी मजदूर वापस लौटने लगे तो 28 हजार मजदूर विभिन्न माध्यमों से वापस अपने गांव-अपने घर लौटे. जिसमें बड़ी संख्या में मजदूरों में आदिवासियों की संख्या थी. रोजगार की तलाश में हर साल हजारों परिवार उत्तर प्रदेश, बिहार, कोलकाता, असम, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में पलायन कर जाते हैं. इनके पास रोजगार की व्यवस्था नहीं होना, इन्हें पलायन करने को विवश करती है. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि जिले में 53.5 प्रतिशत ऐसे लोग हैं, जो दैनिक मजदूरी के सहारे अपने परिवार का भरण- पोषण करते हैं. इसमें आदिवासी समुदाय के लोगों की संख्या सबसे अधिक है. जबकि 21,281 किसानों की संख्या है.
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मजदूरी आदिवासियों के लिए रोजगार का प्रमुख माध्यम
मजदूरी ही आदिवासियों के लिए रोजगार का प्रमुख माध्यम है. हर साल हजारों आदिवासी परिवार छोटे-छोटे बच्चों के साथ रोजगार की तलाश में पलायन करते हैं. मनरेगा जैसी योजना में भी काम करने वाले सबसे अधिक मजदूरों में आदिवासियों की संख्या है. यहीं नहींं कृषि कार्य में भी आदिवासी ही जुटे हुए हैं. शिक्षा का अभाव और तकनीकी शिक्षा से दूरी इन्हें एक मजदूर के रूप में सीमित कर चुकी है.
शिक्षा और रोजगार को प्राथमिकता देने की मांग
झारखंड सरकार के बजट पर आदिवासियों की खास नजर है. आदिवासी समाज के लोग चाहते हैं कि राज्य सरकार शिक्षा और रोजगार को प्राथमिकता दें. वर्तमान समय में उत्तराखंड के चमोली में प्राकृतिक आपदा का शिकार हुए लोहरदगा के 9 मजदूरों में सभी आदिवासी हैं. रोजगार की तलाश में सभी उत्तराखंड गए थे. इस घटना ने यहां के लोगों को सोचने पर विवश कर दिया कि अगर रोजगार की व्यवस्था यहां पर होती तो क्या मजदूर पलायन करने को विवश होते. आदिवासी समाज से जुड़े हुए लोग चाहते हैं कि सरकार शिक्षा और रोजगार को प्राथमिकता दें. अगर कृषि को ही रोजगार बनाना है तो उसे बेहतर ढंग से क्रियान्वित करें.