लोहरदगा: हेमंत सरकार के सौ दिन पूरे हो गए. सरकार अपनी उपलब्धियों को भले ही गिना ले, लेकिन विपक्ष के लोग और खासकर लोहरदगा दंगा की पीड़ा सहने वाले लोग इन 100 दिनों के सरकार के कामकाज को याद कर निराश हो उठते हैं. हालांकि, यह चाहते हैं कि सरकार इनके जख्मों पर मरहम लगाए.
तिरंगा यात्रा के दौरान भड़की थी हिंसा
लोहरदगा में 23 जनवरी 2020 को तिरंगा यात्रा के दौरान भड़की हिंसा के बाद पूरा लोहरदगा जल उठा था. करोड़ों रुपए की संपत्ति फूंक दी गई. वर्षों से गंगा-जमुनी तहजीब का उदाहरण देने वाले लोहरदगा के लोग एक-दूसरे के दुश्मन बन बैठे थे. वक्त जरूर लगा, पर लोहरदगा आज फिर एक बार प्रेम और भाईचारे के रास्ते पर चल पड़ा है. विपक्ष हेमंत सोरेन सरकार के 100 दिन के कार्यकाल को सवालों के कटघरे में खड़ा करता है.
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विपक्ष के नेता साफ तौर पर कहते हैं कि सोरेन सरकार ने इन 100 दिनों में कुछ नहीं किया, जो वादे जनता से किए थे, उन वादों को पूरा ही नहीं किया. यहां तक कि रघुवर दास सरकार में जो योजनाएं जनता के लिए शुरू की गई थी, उन योजनाओं को भी बंद कर दिया गया. ऐसे में हेमंत सोरेन सरकार के पास इन 100 दिनों की उपलब्धियों को गिनाने के लिए कुछ भी नहीं है.
दंगा पीड़ित अपने उन दिनों की बात को याद करके दुखी हो उठते हैं. वह किसी समुदाय विशेष पर कोई आरोप तो नहीं लगाते, पर इतना जरूर कहते हैं कि उन्हें काफी गहरा जख्म मिला है. उन्होंने अपनों को खोया है, अपनी जमा पूंजी को खोया है. सरकार से वे चाहते हैं कि सरकार उनकी मदद करे, जिससे जिंदगी में वे फिर से चलना शुरू कर सकें.