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ईंट भट्ठों की आग में झुलस रहा बचपन, मानवीय संवेदनाएं भी हो रही तार-तार - झारखंड समाचार

लोहरदगा में नियमों को ताक पर रखकर धड़ल्ले से ईंट भट्ठों में बाल मजदूरी कराई जा रही है. इस पर न तो सरकार का और न ही समाज के किसी जिम्मेदार व्यक्ति ने सुध ली है.

काम करते बाल मजदूर

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Published : Jun 17, 2019, 7:49 PM IST

लोहरदगा: सरकार गरीबों के लिए कई योजनाएं चला रही है. प्रधानमंत्री आवास योजना, पेंशन योजना, स्वच्छ भारत मिशन सहित अन्य योजनाओं के माध्यम से देश की तस्वीर बदलना चाहती है. लेकिन बच्चों की तस्वीर बदल नहीं पा रही है. जिले के ईंट भट्ठों की आग में बचपन जल रहा है और सरकार के दावों की पोल खुल रही है.

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जिले के 63 ईंट भट्ठों में नियमों का खुला उल्लंघन आम लोगों के अधिकारों के प्रश्न को कटघरे में खड़ा करता है. ईंट भट्ठों के संचालन के समय जो जरूरी नियम तय किए जाते हैं, उन नियमों का पूरा ना होना कहीं ना कहीं ईट भट्ठों में काम करने वाले मजदूरों और उनके बच्चों के भविष्य को अंधकार में धकेल रहा है. लोहरदगा जिले में ज्यादातर ईट भट्ठों में छोटे-छोटे बच्चों को काम कराया जाता है.

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सेन्हा प्रखंड मुख्यालय से कस्तूरबा गांधी विद्यालय की ओर जाने वाले रास्ते में एक ईंट भट्ठे में कुछ यूं ही तस्वीर नजर आई. अमूमन सभी ईंट भट्ठों की ऐसे ही हालात है. पांचवी और छठी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे ट्रैक्टर और ईंट भट्ठों में मजदूरी करते दिखाई देते हैं. ईंट भट्ठों में मजदूरों के लिए ना तो शौचालय की व्यवस्था है और ना ही अन्य इंतजाम. हालात ऐसे हैं कि खुले में शौच जाना इनकी मजबूरी है. पेयजल का भी बेहतर प्रबंधन नहीं है. घर ऐसे होते हैं कि किसी भी आंधी तूफान में इनके सर से छत ही गायब हो जाए. छोटे-छोटे बच्चे कब दुर्घटना का शिकार हो जाएं, यह कोई नहीं जानता. यही नहीं बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी सात-आठ महीने बंद रहती है.

इन बच्चों की स्थिति की सुध लेने को लेकर सरकारी तंत्र की ओर से कोई प्रयास भी नहीं किया जाता है. बच्चों के अधिकार के लिए काम करने वाली संगठन और संस्थाएं इन बच्चों की दशा को सुधारने को लेकर कोई पहल ही नहीं करती. सहायक खनन पदाधिकारी भोला हरिजन कहते हैं कि मामला उनके संज्ञान में नहीं है. अगर ऐसा है तो वे श्रम विभाग को पत्राचार करते हुए आवश्यक कार्यवाही का अनुरोध करेंगे.

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