लातेहार:मनिका प्रखंड अंतर्गत बिचलीदाग गांव में कागज पर ही आदिम जनजातियों का बिरसा आवास बना देने का मामला प्रकाश में आया है. कागज में तो आवास पूर्ण दिखाए जा रहे हैं लेकिन धरातल पर आवास के ईंट भी नहीं दिख रहे हैं.
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दरअसल, बिचलीदाग गांव में रहने वाले सात आदिम जनजातियों को वित्तीय वर्ष 2018-19 में बिरसा आवास योजना के तहत आवास की स्वीकृति प्रदान की गई थी. सभी लाभुकों के आवास का निर्माण गांव का ही एक बिचौलिया करवा रहा था, लेकिन 4 साल गुजर जाने के बाद भी किसी भी लाभुक का आवास पूरा नहीं हो सका. गांव के तेजू परहिया और अखिलेश परहिया दोनों सगे भाइयों का आवास भी वही बिचौलिया बनवा रहा था. इसी बीच अचानक तालाब में डूबने से तेजू और अखिलेश की मौत हो गई. बिचौलिए ने इनके आवास का पैसा निकाल लिया. वहीं, लाभुकों की मौत के बाद आवास को पूरा करने के बजाय दीवार में लगाए गए ईंट को भी उखाड़ कर ले गया.
आवास के अभाव में गांव छोड़ने को मजबूर
बिचौलिया जब लाभुकों के आवास का ईंट भी उखाड़ कर ले गया, तो मृतक तेजू और अखिलेश की पत्नी अपने बच्चों के साथ गांव से पलायन करने को मजबूर हो गई. लाभुकों की मां जितनी परहिया गांव में रहती है. जितनी अपने परिवार के बिखरने के गम में हमेशा रोती रहती है. उसने बताया कि उनके दोनों बेटे की मौत होने के बाद गांव का ही संजय आया और निर्माणाधीन घर की दीवार के सारे ईंट उखाड़ कर ले गया. इसके बाद मजबूरी में उनकी बहुओं को भी घर के अभाव में गांव छोड़कर जाना पड़ा. वहीं ग्रामीण महेंद्र परहिया ने बताया कि जितनी के दोनों जवान बेटों की मौत होने के बाद बिचौलिया इसके घर की ईंट भी उखाड़ कर ले गया.