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छठ को लेकर आदिम जनजाति है उत्साहित, टोकरी से होती है अच्छी आमदनी - लातेहार में छठ पर्व को लेकर आदिम जनजाति उत्साहित

लातेहार के आदिम जनजाति बहुल ओरिया गांव में छठ त्योहार को लेकर काफी उत्साहित रहते हैं. आदिम जनजाति भले ही छठ का त्योहार नहीं मनाते है लेकिन इस पर्व के कारण उनके सूप और दौउरा बनाने का व्यवसाय चरम पर होता है. इससे आदिम जनजातियों को अच्छी आमदनी भी होती है.

primitive tribes excited about chhath festival in  latehar
आदिम जनजाति

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Published : Nov 17, 2020, 10:31 AM IST

लातेहार: कहा जाता है कि भगवान सूर्य की कृपा समाज के हर वर्ग पर बनी रहती है, जो लोग भगवान सूर्य की उपासना भी नहीं करते उनके जीवन में भी भगवान सूर्य की उपासना का त्योहार छठ बाहर ले आती है. कुछ ऐसा ही दृश्य इन दिनों लातेहार जिले के आदिम जनजाति बहुल ओरिया गांव में देखने को मिल रहा है. इस गांव में रहने वाले आदिम जनजाति भले ही छठ का त्योहार नहीं मनाते हो लेकिन इस पर्व के कारण उनके सूप और दौउरा बनाने का व्यवसाय चरम पर होता है. इससे आदिम जनजातियों को अच्छी आमदनी भी होती है.

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दरअसल छठ महापर्व झारखंड और बिहार का लोक त्यौहार है. झारखंड और बिहार राज्य में छठ करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या काफी अधिक होती है. दूसरी ओर छठ महापर्व की मान्यता है कि बांस से बने सूप और दौउरा से ही भगवान सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है. ऐसे में छठ का त्योहार आते ही सूप और दौरा की बिक्री चरम पर होती है. बिक्री अधिक होने के कारण कीमत भी आम दिनों की अपेक्षा अधिक होती है. इससे सूप बनाने वाले आदिम जनजाति के लोगों को काफी अच्छी आमदनी हो जाती है.100 से 110 रुपये पीस की दर से बिकता है सूपछठ महापर्व के आगमन पर सूप की बिक्री काफी अधिक हो जाती है. इस सीजन में सूप 100 से लेकर 110 रुपये प्रति पीस की दर से आदिम जनजातियों से व्यवसायिक खरीद कर ले जाते हैं. यही व्यवसाई बाजार में जाकर सूप 170 से लेकर 200 रुपये तक प्रति पीस की दर से बेचते हैं. सूप बनाने वाले शीतल परहिया ने कहा कि आम दिनों में सूप मुश्किल से 40 से 50 रुपये की दर से व्यवसाई खरीद कर ले जाते हैं लेकिन छठ का मौसम आने पर कम से कम 100 रुपये में उनकी सूप आसानी से बिक जाती है.हर दिन बना लेते हैं पांच सूपआदिम जनजाति की महिला रीता ने कहा कि वे लोग पूरे परिवार मिलकर कम से कम 5 सूप एक दिन में बना लेते हैं. ऐसे में छठ का मौसम में तो अच्छी आमदनी हो जाती है लेकिन अन्य दिनों में ज्यादा लाभ नहीं हो पाता है.छठ महापर्व का बेसब्री से रहता है इंतजारआदिम जनजाति समूह के वैसे लोग जो बांस की वस्तुएं बनाकर अपनी आजीविका चलाते हैं, उन्हें छठ महापर्व का काफी बेसब्री से इंतजार रहता है. महापर्व के आगमन के साथ ही उन लोगों को काफी अच्छी आमदनी हो जाती है. भगवान सूर्य की कृपा दृष्टि समाज के सबसे पिछड़े श्रेणी में खड़े आदिम जनजातियों पर सीधा पड़ती है.

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आदिम जनजातियों का है प्रमुख व्यवसाय
आदिम जनजातियों का प्रमुख आजीविका का साधन बांस से निर्मित सामान ही है. जंगलों से बांस लाकर उससे सूप, टोकरी, झाड़ू आदि बनाकर उसे बेचकर ही इनकी आजीविका चलती है. भगवान सूर्य की उपासना का त्यौहार कुछ दिनों के लिए तो इनके जीवन में बाहर लाती है लेकिन त्योहार खत्म होते ही इनका जीवन बदहाल हो जाता है. जरूरत इस बात की है कि सरकार आदिम जनजातियों के हुनर को बढ़ावा दे और इन्हें उचित बाजार उपलब्ध करवाएं ताकि इनका भी जीवन सुख में हो सके.

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