लातेहार: कहा जाता है कि भगवान सूर्य की कृपा समाज के हर वर्ग पर बनी रहती है, जो लोग भगवान सूर्य की उपासना भी नहीं करते उनके जीवन में भी भगवान सूर्य की उपासना का त्योहार छठ बाहर ले आती है. कुछ ऐसा ही दृश्य इन दिनों लातेहार जिले के आदिम जनजाति बहुल ओरिया गांव में देखने को मिल रहा है. इस गांव में रहने वाले आदिम जनजाति भले ही छठ का त्योहार नहीं मनाते हो लेकिन इस पर्व के कारण उनके सूप और दौउरा बनाने का व्यवसाय चरम पर होता है. इससे आदिम जनजातियों को अच्छी आमदनी भी होती है.
छठ को लेकर आदिम जनजाति है उत्साहित, टोकरी से होती है अच्छी आमदनी - लातेहार में छठ पर्व को लेकर आदिम जनजाति उत्साहित
लातेहार के आदिम जनजाति बहुल ओरिया गांव में छठ त्योहार को लेकर काफी उत्साहित रहते हैं. आदिम जनजाति भले ही छठ का त्योहार नहीं मनाते है लेकिन इस पर्व के कारण उनके सूप और दौउरा बनाने का व्यवसाय चरम पर होता है. इससे आदिम जनजातियों को अच्छी आमदनी भी होती है.
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आदिम जनजातियों का है प्रमुख व्यवसाय
आदिम जनजातियों का प्रमुख आजीविका का साधन बांस से निर्मित सामान ही है. जंगलों से बांस लाकर उससे सूप, टोकरी, झाड़ू आदि बनाकर उसे बेचकर ही इनकी आजीविका चलती है. भगवान सूर्य की उपासना का त्यौहार कुछ दिनों के लिए तो इनके जीवन में बाहर लाती है लेकिन त्योहार खत्म होते ही इनका जीवन बदहाल हो जाता है. जरूरत इस बात की है कि सरकार आदिम जनजातियों के हुनर को बढ़ावा दे और इन्हें उचित बाजार उपलब्ध करवाएं ताकि इनका भी जीवन सुख में हो सके.