लातेहारः जिला मुख्यालय में सरहुल पर्व अनोखे ढंग से मनाया जाता है. आदिवासी परंपरा पर आधारित इस त्योहार में लोग जहां पारंपरिक रूप से पूजा करते हैं. वहीं, सामूहिक रूप से सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का संकल्प लेकर इस त्योहार को अनोखा बना देते हैं. इस बार भी लातेहार में लोगों ने सरहुल पर संकल्प लिया कि वह अपने बच्चे को अनिवार्य रूप से पढ़ाएंगे और जल जंगल जमीन की सुरक्षा करेंगे.
ये भी पढ़ें-प्रकृति के प्रति अनोखे प्रेम का पर्व है सरहुल, साल वृक्ष पर फूल लगने पर होती है नए वर्ष की शुरूआत
दरअसल, कोरोना वायरस के बढ़े हुए प्रकोप के कारण इस बार सरहुल का त्योहार पूरी सादगी से मनाया गया. इस वर्ष इस प्रकृति पूजा के त्योहार पर न तो मांदर और नगाड़ा की गूंज सुनाई दी और ना ही आदिवासी बालाओं का पारंपरिक सामूहिक नृत्य देखने को मिला. इसके बावजूद सरहुल त्योहार को लेकर लोगों का उत्साह कम ना था. परंपरा के अनुसार जिला मुख्यालय स्थित बासावाड़ा में साल वृक्ष की पूजा की गई और सरना मां से समाज के सुरक्षा की कामना की गई.
बच्चों को पढ़ाने और जंगल को बचाने का लिया गया संकल्प
इस मौके पर आदिवासी समाज के लोगों ने सामूहिक रूप से संकल्प लिया कि वह लोग भले ही भूखे रहे लेकिन अपने बच्चों को अनिवार्य रूप से शिक्षित करेंगे. इसके अलावा यह भी संकल्प लिया गया कि जंगल और पेड़ पौधों की पूरी तरह सुरक्षा की जाएगी. लोगों ने कहा कि जिस प्रकार दुनिया में प्राकृतिक आपदाएं आ रही हैं, उसका प्रमुख कारण प्रकृति के साथ छेड़छाड़ और पेड़ पौधों को नुकसान पहुंचाना ही है. ऐसे में समाज के प्रत्येक वर्ग का यह पहला कर्तव्य है कि पेड़ पौधों को सुरक्षा दे. खुद भी पेड़ लगाएं और दूसरों को भी पेड़ लगाने के प्रति जागरूक करें.