लातेहारः महुआ का सीजन आते ही ग्रामीण क्षेत्रों में बहार आ जाती है. प्रकृति भी पीले फल और फूल से सराबोर हो जाती है. इस मौसम का इंतजार गांव में रहने वालों को भी बेसब्री से रहता है. क्योंकि ग्रामीणों को अपने गांव में ही आर्थिक आमदनी का बेहतर विकल्प मिल जाता है. ऐसे में ग्रामीण पलायन करने के बदले अपने गांव में ही रहकर महुआ के व्यवसाय से जुड़ जाते हैं. इस महुआ के पेड़ से ग्रामीण और मजदूरों के साथ-साथ व्यवसायी तथा समाज के अन्य वर्ग भी सीधे तौर पर लाभान्वित होते हैं.
मार्च महीने के दूसरे सप्ताह से लेकर अप्रैल महीने के दूसरे सप्ताह तक महुआ का सीजन माना जाता है. लातेहार जिले में महुआ के पेड़ अत्यधिक मात्रा में पाए जाने के कारण यह सीजन यहां के ग्रामीणों के लिए वरदान के समान होता है. ग्रामीणों को अपने गांव और आसपास के जंगली क्षेत्रों में ही आर्थिक कमाई का एक बेहतर विकल्प मिल गया है. ग्रामीण सुबह और दोपहर में महुआ चुनते हैं, उसके बाद उसे धूप में सुखाने के बाद बाजार में बेचते हैं. इससे ग्रामीणों को काफी अच्छी कमाई हो जाती है.
रूक जाता है पलायनः महुआ का सीजन आने के बाद ग्रामीण क्षेत्रों से मजदूरों का पलायन भी पूरी तरह रूक जाता है. होली के मौसम में घर आने वाले मजदूर अपने घर में रहकर हैं महुआ चुनने का कार्य करते हैं. कुल मिलाकर 1 माह तक ग्रामीणों को उनके गांव और घर के आस-पास ही रोजगार के बेहतर साधन मिल जाते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि एक माह तक गांव में रोजगार की कमी नहीं रहती. अगर सरकार महुआ के पेड़ को लेकर कोई योजना बनाए तो यहां के गरीब ग्रामीणों को इसका सीधा लाभ मिल पाएगा. वहीं ग्रामीण यह भी बताते हैं कि महुआ का सीजन में लोग महुआ चुनने के बाद उसे बेचकर अपने जरूरत के सामान खरीदते हैं. महुआ के सीजन में ग्रामीणों को किसी चीज की कमी नहीं होती है.