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लातेहार में बांस की खेती से किसान बन रहे सबल, हो रही साल में 50-60 हजार की आमदनी

लातेहार में किसान बांस की खेती कर अच्छी आमदनी कर रहे हैं. सदर प्रखंड के होटवाग गांव निवासी शंभू यादव ने बताया कि बांस की खेती में अन्य पेड़ पौधे की अपेक्षा काफी कम मेहनत लगती है. वहीं, इसका फायदा भी काफी जल्दी मिलता है. वो सालभर में इससे लगभग 50 हजार की आमदनी करते हैं.

Farmers are making good income from bamboo cultivation in latehar
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Published : Aug 24, 2020, 2:30 PM IST

लातेहार: जंगल और पठार लातेहार जिले की पहचान है. यहां के बहुसंख्यक लोगों की आजीविका का मुख्य साधन पेड़ और उसके उत्पाद ही हैं. बांस की खेती भी एक ऐसा ही साधन है, जिसके माध्यम से किसान अच्छी आमदनी कर रहे हैं. लातेहार सदर प्रखंड के होटवाग गांव निवासी शंभू यादव बांस की खेती के सहारे हर साल अच्छी कमाई कर रहे हैं.

देखिए पूरी खबर

दरअसल, लातेहार जिले में 90 के दशक से पहले जंगली क्षेत्रों से बांस का व्यापार बड़े पैमाने पर होता था. उस समय जिले की पहचान बांस के निर्यातक के रूप में पूरे देश में अग्रणी था, लेकिन जब सरकार ने जंगली इलाकों से बांस की कटाई पर प्रतिबंध लगा दी तो यहां बांस का व्यापार लगभग ठहर सा गया था. जंगलों से बांस की कटाई रूकने के बाद ग्रामीणों को बुनियादी जरूरतों के लिए भी बांस मिलना मुश्किल होने लगा था. उसके बाद लोगों ने बुनियादी जरूरतों के लिए बांस की खेती छोटे पैमाने पर अपनी रैयती जमीनों पर आरंभ की.

200 से अधिक बांस के बखार

लातेहार सदर प्रखंड के शंभू यादव ने बांस की खेती में अपना भविष्य तलाशते हुए लगभग 200 बांस के बखार लगा लिए. बांस की खेती से उन्हें प्रत्येक साल आसानी से 50 से 60 हजार रुपए की आमदनी होने लगी. शंभू यादव ने बताया कि बांस की खेती में अन्य पेड़ पौधे की अपेक्षा काफी कम मेहनत लगती है. वहीं, इसका फायदा भी काफी जल्दी मिलता है.

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अन्य ग्रामीणों ने भी की बांस की खेती
लातेहार के लगभग सभी गांव में किसान अपने खेतों में बांस की उपज करते हैं. इसके लिए ना तो कोई खाद की जरूरत पड़ती है और न ही ज्यादा मेहनत लगती है. इस कारण किसान अपने जमीन में बांस के पौधे लगाते हैं.

बांस से कई वस्तुएं बनती हैं. इनमें मुख्य रूप से फर्नीचर के अलावे सजावट की वस्तुएं शामिल हैं. वहीं, सूप, टोकरी, झाड़ू समेत कई अन्य ग्रामीण उपयोग की वस्तुएं भी बांस से बड़े पैमाने पर बनाई जाती है. इस संबंध में रेंजर फॉरेस्ट ऑफिसर जितेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि बांस की खेती किसानों के लिए काफी लाभप्रद है. यह गरीबों के लिए सागवान कहा जाता है.

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