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कोडरमा समाहरणालय में वन विभाग की ओर से कार्यशाला आयोजित, गिद्धों के संरक्षण पर किया गया विचार-विमर्श

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Published : Jan 4, 2023, 3:32 PM IST

वन विभाग की ओर से कार्यशाला के माध्यम से जिले में विलुप्त हो रहो गिद्धों को संरक्षित करने के लिए लोगों को जागरूक किया (Workshop On Conservation Of Vultures In Koderma) गया. बताया गया कि हमें पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिक निभाने वाले गिद्धों को बचाना जरूरी है, ताकि आहार श्रृंखला का चक्र बना रहे.

Workshop On Conservation Of Vultures In Koderma
Officers Discussing About Conservation of Vultures in Workshop

कोडरमा:विलुप्त हो रहे गिद्धों के संरक्षण को लेकर कोडरमा समाहरणालय सभागार में एक कार्यशाला का आयोजन किया (Workshop On Conservation Of Vultures In Koderma) गया. कार्यशाला में वन प्रमंडल पदाधिकारी सूरज कुमार सिंह ने कहा कि हमें गिद्धों की विलुप्त हो रही प्रजातियों को बचाने और गिद्धों से जुड़ी जानकारियां हासिल करने के लिए पहल करनी चाहिए.

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उन्होंने बताया कि वर्ष 2019 से पहले कोडरमा जिले में एक भी गिद्ध नहीं थे, लेकिन उसके बाद से जिले के कई क्षेत्रों में लगातार गिद्ध देखे जा रहे हैं, ऐसे में उनका संरक्षण करना हम सभी का दायित्व है.वर्ष 2019 से गिद्ध की प्रजातियां देखी जा रही हैं. कोडरमा वन प्रमंडल द्वारा गिद्ध संरक्षण योजना अंतर्गत कराए गए बेस लाइन सर्वे में गिद्धों की संख्या करीब 145 पाई गई. जिसमें जिप्स बेंगलेंसिस 42, जिप्स इंडिकस 68, जिप्स हिमालयइन्सिस 30, इजिप्शियन गिद्ध पांच पाई गई है.यदि हमलोगों ने समय रहते ठोस कदम न उठाया तो यह दुर्लभ पक्षी विलुप्त हो जाएगी. गिद्ध पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. पर्यावरण संतुलन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. अतः इसे संरक्षित करना हम सबों का कर्त्तव्य है. नहीं तो आने वाले दिनों में यह लुप्त हो जाएगी.

पर्यावरण संरक्षण में गिद्धों का महत्वपूर्ण स्थानःवहीं मौके पर डॉ सत्यप्रकाश (सदस्य,राज्य वन्यप्राणी परिषद) ने बताया कि भारत संघ में गिद्धों की कुल नौ प्रजातियां पायी जाती हैं. इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN ) की सूची के अनुसार गिद्धों की तीन प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर हैं. लोककथा और भारतीय साहित्य में इनको महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. प्रायः ये समूह में पाए जाते हैं, जो आकार में अन्य पक्षियों से काफी बड़े होते हैं. ये ऊंचे पेड़ों जैसे ताड़, युकेलिप्टस और शीशम पर रहना पसंद करते हैं. गिद्ध प्राकृतिक रूप से मृत पशुओं को खाकर पर्यावरण को शुद्ध रखते हैं. इन्हें प्राकृतिक सफाई कर्मी के रूप में भी जाना जाता है. अतः पर्यावरण संरक्षण में गिद्धों का महत्वपूर्ण स्थान है

झारखंड में गिद्धों की वर्त्तमान स्थितिःझारखंड में गिद्धों की छह प्रजातियां पाई जाती (Six Species Of Vultures In Jharkhand) हैं. जिनमें बंगाल का गिद्ध जिप्स बेंगलेंसिस, भारतीय गिद्ध जिप्स इंडिकस, हिमालयी गिद्ध जिप्स हिमालयइन्सिस, सफेद गिद्ध इजिप्शियन गिद्ध, साईनेरियर गिद्ध, लाल सिर वाला गिद्ध रेड हेडेड गिद्ध पाई जाती हैं. इनमें से चार प्रजातियां जिप्स बेंगलेंसिस, जिप्स इंडिकस, जिप्स हिमालयइन्सिस और इजिप्शियन गिद्ध कोडरमा में देखे गये हैं. सभी प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है.

हजारीबाग में 2008 में किए गए सर्वे के अनुसार सिर्फ 150-200 के बीच गिद्ध पाए गए और उनके पांच बच्चे भी देखे गए थे. वर्ष 2010 में इनकी संख्या 200-250 के बीच थी और 13 बच्चे थे. वर्ष 2013 में इनकी संख्या 250-300 के बीच होने का अनुमान है और 17 बच्चे देखे गये. वहीं 2014 से 2019 तक इनकी संख्या लगभग 350 से 450 होने का अनुमान है. वहीं 2021 सर्वे के अनुसार इनकी संख्या लगभग 400 के आसपास झारखंड के हजारीबाग प्रोविजनल सेफ जोन (100 किमी रेडियस) में होने का अनुमान है और इनके घोंसले सिर्फ हजारीबाग और कोडरमा में देखे जाते हैं.

गिद्धों का महत्वः गिद्ध मांसाहारी होते हैं और मृत पशुओं को खाकर धरती को साफ रखने और पर्यावरण को शुद्ध रखने का कार्य करते हैं (Vultures Work To Keep Environment Clean), गिद्ध सड़े-गले मृत पशुओं को खाकर कई तरह की महामारी बीमारियों जैसे कॉलरा, एन्थ्रैक्स, रैबीज इत्यादि से बचाव करते हैं, गिद्ध आहार श्रृंखला की महत्वपूर्ण कड़ी हैं, ये हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखकर जैव-विविधता में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, पारसी समुदाय में अपने प्रियजन के मृत शरीर को गिद्धों के भक्षण के लिए खुले में छोड़ दिया जाता है, ताकि आहार श्रृंखला का चक्र बना रहे.

गिद्धों के लिए खतरनाकः1980 के दशक में इनकी संख्या हजारों में थी, पिछले 30 सालों में इनकी संख्या में 97 प्रतिशत की कमी आयी है. पछले 20 वर्षों से तीन प्रजाति विलुप्ति के कगार पर खड़ी हैं. पक्षी वैज्ञानिकों ने शोध कर यह पता लगाया है कि इसके विलुप्ति का मुख्य कारण डाइक्लोफेनेक दर्द निवारक दवा है. हाल के वर्षों में वैज्ञानिको ने शोध कर बताया है कि डाइक्लोफेनेक के अलावा किटोप्रोफेन, निमोसुलाइड, एसीलोफेनेक, फ्लुनिक्जीन और कारप्रोफेन भी गिद्धों के लिए जहर है.



गिद्धों के संरक्षण के लिए करें उपायः यदि आपके घर में पशु बिमार है तो डाइक्लोफेनेक नामक दर्द निवारक दवा का प्रयोग न करें, यदि गिद्ध आपके इलाके में मरा हुआ दिखता हो तो उसकी सूचना तत्काल वन प्रमण्डल पदाधिकारी कोडरमा वन प्रमंडल को 06534-25238, 9431142825 या नियो ह्यूमन फाउंडेशन हजारीबाग (9934509213) को दें, गिद्धों को अशुभ समझकर उसे मारने या भगाने का प्रयास नहीं करें, जिस पेड़ पर गिद्ध का वास हो उस पर न पत्थर चलाएं और न ही भगाएं, बीमार जानवर को बिना डाक्टरी जांच के दवा नहीं दें, यदि पशु या अन्य जानवर विशाक्त पदार्थ से मरते हों तो उसे जमीन में गहरे गड्ढे कर दफन कर दें, गिद्ध के निवास स्थान पर आतिशबाजी न करें और न ही शोर मचाएं.

डीसी ने एसडीओ और ड्रग इंस्पेक्टर को संरक्षण के उपाय करने के दिए निर्देशःइस मौके पर उपायुक्त आदित्य रंजन ने विलुप्तप्राय गिद्धों के संरक्षण को लेकर एसडीओ और ड्रग इंस्पेक्टर को निर्देश दिया. उन्होंने कहा कि टीम गठित कर बैन दवाओं की खरीद-बिक्री या संचालन पर रोक लगाने के लिए अभियान चलाया जाए. इसके अलावा सभी बीडीओ और सीओ को निर्देश दिया कि सभी गांवों में ग्रामसभा का आयोजन कर गिद्धों के संरक्षण के लिए ग्रामीणों को जागरूक करें. कार्यशाला में मुख्य रूप से डीडीसी, एसडीओ, जिला पशुपालन पदाधिकारी, परियोजना निदेशक, एनएचएआई के कार्यपालक अभियंता, सभी बीडीओ, सभी सीओ, कोडरमा कार्यपालक पदाधिकारी, ड्रग इंस्पेक्टर, कोडरमा केमिस्ट एंड ड्रग संगठन के सदस्य उपस्थित थे.

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