झारखंड

jharkhand

ETV Bharat / state

कोडरमा: 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति की मांग को लेकर प्रदर्शन - Koderma News in Hindi

कोडरमा में भी 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति लागू करने की मांग तेज हो रही है. लोगों बैनर पोस्टर लेकर रैली सरकार का विरोध करते दिखे. इस दौरान लोगों ने हेमंत सरकार के चुनावी वादे भी याद दिलाए जो दो साल के बाद भी पूरे नहीं हुए हैं.

demonstration in Koderma
demonstration in Koderma

By

Published : Mar 12, 2022, 12:57 PM IST

Updated : Mar 12, 2022, 1:36 PM IST

कोडरमा: झारखंड में 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति लागू करने और बाहरी भाषा की जगह स्थानीय भाषा को प्रमुखता दिए जाने की मांग को लेकर आंदोलन बड़ा रूप लेता जा रहा है. कोडरमा में भी इसे लेकर विरोध के स्वर तेज हो गए हैं. झारखंड भाषा संघर्ष समिति के बैनर तले चंदवारा प्रखंड के जामुखाडी गांव में सैकड़ों लोगों ने रैली निकाली और हाथों में बैनर पोस्टर लेकर 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति को जल्द से जल्द लागू करने की मांग की.

इसे भी पढ़ें:कार्यकर्ता देबू तुरी की हिरासत में मौत के खिलाफ बीजेपी का महाधरना आज, साहिबगंज पहुंचे भाजपा के कई दिग्गज

प्रदर्शन के दौराने लोगों ने कहा कि 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति लागू होने से झारखंड के मूल निवासियों को लाभ मिलेगा. लोगों ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को उनके चुनावी वादे याद दिलाए और कहा कि 2 साल बीत गए हैं लेकिन स्थानीय नीति अब तक लागू नहीं किया जा सका है. लोगों ने कहा कि भोजपुरी और मगही से कोडरमा के लोगों का कोई वास्ता नहीं है. ऐसे में यहां जरूरत है स्थानीय भाषा खोरठा को लागू किए जाने की. 1932 का खतियान के आधार पर स्थानीय नीति लागू करने और भोजपुरी, मगही और अंगिका भाषा की जगह स्थानीय भाषा को लागू करने की पुरजोर मांग हो रही है, इसे लेकर सियासत भी होने लगी है.

देखें वीडियो


क्या है 1932 का खतियान: दरअसल, 1932 का खतियान इतिहास से जुड़ा है. बिरसा मुंडा आंदोलन के बाद 1909 छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम बना, जिसे सीएनटी एक्ट (CNT Act) के नाम से भी जाना जाता है. इस एक्ट में मुंडारी खूंटकट्टीदार का प्रावधान किया गया, जिसके जरिए आदिवासी के जमीनों को बचाने की कोशिश की गई. इस एक्ट में प्रावधान था कि गैर आदिवासी, आदिवासियों की जमीन नहीं ले सकते हैं. यह खतियान आज भी यहां का संविधान है. हालांकि इसमें कुछ संसोधन भी हुए हैं. झारखंड के गठन के बाद से ही 1932 के खतियान का जिक्र होता आया है. जिसका सीधा तात्पर्य है कि वही लोग झारखंड के मूल निवासी हैं, जिनके पूर्वजों के नाम 1932 के खतियान में शामिल है.

Last Updated : Mar 12, 2022, 1:36 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details