खूंटी: जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा मंगलवार को खूंटी दौरे पर रहे. जिले के महुवाटोली में आयोजित तिडू संकुरा पड़हा मेला में अर्जुन मुंडा बतौर मुख्य अतिथि शामिल रहे. इस मेले में विभिन्न गांव और टोलों के मुंडा जनजाति अलग-अलग जनजातीय परिधान में ढोल-नगाड़ों की थाप पर थिरकते नजर आए. जहां केंद्रीय मंत्री ने भी ढोल बजाये और मेले का आनंद लिया. मेले में मंचासीन अतिथियों को पगड़ी पहनाकर सम्मानित किया गया.
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क्यों करते हैं तिडू संकुरा पड़हा मेला का आयोजन: मालूम हो कि प्रत्येक साल तिडू संकुरा पड़हा मेला का आयोजन पड़हा राजाओं द्वारा किया जाता है. जनजातीय समाज में स्वशासन की व्यवस्था प्राचीन काल से पड़हा व्यवस्था से ही संचालित होती आयी है. आज भी उसी परंपरा का निर्वहन करते हुए तिडू संकुरा पड़हा मेला का आयोजन किया गया.
केंद्रीय मंत्री का संबोधन:तिडू संकुरा पड़हा मेला में उपस्थित पड़हा समुदाय को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि जनजातीय समाज ने जंगल-झाड़ियों को साफ कर खेती लायक जमीन बनायी, घर बनाया, परिवार बसाया. ऐसा करके जनजातीय समाज अपनी संस्कृति के साथ अक्षुण्ण रहा. फिर अलग-अलग स्थान और क्षेत्र के हिसाब से समाज को चलाने के लिए संविधान की तरह जनजातीय समाज ने अपने मापदंड बनाये और पड़हा व्यवस्था का आविर्भाव हुआ.
जनजातीय समाज अपनी अलग स्वशासन व्यवस्था: जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि अंग्रेजों और मुगलों के शासनकाल से पूर्व भी जनजातीय समाज अपनी स्वशासन परंपरा से ही आगे बढ़ता रहा है. लौह युग, ताम्र युग, स्वर्ण युग में सिक्के का प्रचलन बढ़ा. उसके बाद नोटों का भी चलन आया. लगातार देश दुनिया में बदलाव आते गए, लेकिन जनजातीय समाज अपनी अलग स्वशासन व्यवस्था के तहत समाज को एकजुट कर जीविकोपार्जन करता रहा. आज भी अपनी शासन व्यवस्था से जनजातीय समाज अपने सांस्कृतिक मूल्यों को आगे बढ़ाता रहा है.
संविधान के साथ चलने के लिए किया जागरूक: अर्जुन मुंडा ने कहा कि हमारे लिए देश में संविधान का निर्माण किया गया है. जितना हमारे लिए संविधान में लिखा गया है. हम भी उतना ही जागरूक होकर आगे बढ़ें, लेकिन कई बार हम संविधान में लिखी गयी बातों को ही कहकर संविधान के विरोध में कार्य करते हैं. यह हमारे लिए संकट का विषय बन जाता है और हम उलझ कर रह जाते हैं. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि इस देश में आजादी के बाद लंबे कालखंड तक शासन तो चला, लेकिन जिस उद्देश्य के साथ संवैधानिक व्यवस्था किया गया. उस उद्देश्य से उस ढंग से सोचने का मौका नहीं मिला. इसलिए समाज के अगुवों को सोचना चाहिए कि समाज में कैसे तारतम्य बनाकर व्यवस्थित समाज का निर्माण करें और आगे बढ़े.