खूंटी:देश के लिए प्राण न्योछावर करने वाले आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा की आज पुण्यतिथि है. इस गांव तक पहुंचते-पहुंचते विकास की सारी योजनाएं दम तोड़ देती है. झारखंड बने 21 साल से अधिक हो गए लेकिन सरकार के आश्वासन अब तक इस गांव में नहीं पहुंचे हैं. इस गांव में लोग बुनियादी सुविधाओं से भी महरूम हैं.
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दूसरे राज्यों में जाकर काम करने को मजबूर हैं लोग
बिरसा मुंडा के वंशज ने बताया कि आदर्श ग्राम योजना में पक्का मकान बनाने की शुरुआत की गई है. बिरसा के वंशज सुखराम मुंडा कहते हैं कि जल्द ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलकर उलिहातू की समस्या से अवगत कराएंगे. गांव में पानी, बिजली, शिक्षा और रोजगार की मांग करेंगे. रोजगार नहीं मिलने के कारण यहां के लोग दूसरे राज्यों में जाकर काम करने को मजबूर हैं.
सुखराम मुंडा का कहना है कि हम लोगों ने थोड़ा बड़ा मकान बनाने के लिए कहा था लेकिन हमारी मांगों के अनुसार मकान नहीं बन रहा है. छोटे मकान में बड़ा परिवार कैसे रहेगा? पानी के पानी की भी समस्या है. गर्मी के दिनों में तो लोग चुआं पर निर्भर रहते हैं. बिजली और स्वास्थ्य सुविधाएं तो थोड़ी ठीक हैं लेकिन बिरसा की जन्मस्थली बिरसा ओड़ा में लगे सोलर लाइट खराब पड़े हैं. बिरसा मुंडा से जुड़े ऐतिहासिक स्थल को भी सहेजने की जरूरत है.
बुनियादी सुविधाएं ही बिरसा को होगी सच्ची श्रद्धांजलि
ग्रामीण कहते हैं कि उलितातू में 15 नवंबर, 9 जून और डुम्बारी में 9 जनवरी को भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर कार्यक्रम का आयोजन होता है. मंत्री, सांसद और विधायक भी कार्यक्रम में पहुंचते हैं. कई लोग विकास का आश्वासन देते हैं लेकिन होता कुछ नहीं है. ग्रामीणों का कहना है कि बुनियादी सुविधाओं की बात करते-करते थक गए हैं. लेकिन, सरकार कोई एक्शन नहीं लेती. ऐसे में उलिहातू में बुनियादी सुविधाएं पहुंचेंगी तभी बिरसा मुंडा को सच्ची श्रद्धांजलि मानी जाएगी.
बिरसा मुंडा का जीवन परिचय
हिंदुस्तान की आजादी से 72 साल पहले 18 नवंबर 1875 को खूंटी के उलीहातू गांव में बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था. बिरसा मुंडा को आगे चलकर आदिवासियों ने भगवान का दर्जा दिया. धरती आबा कहे जाने वाले बिरसा मुंडा जब बड़े हुए तो सूदखोरों और अंग्रेजों का आतंक देखा. उन्होंने हक के लिए ऐसी लड़ाई छेड़ी कि कम उम्र में ही बिरसा आदिवासियों के लिए मसीहा बन गए. अंग्रेजों के खिलाफत करने पर उन्हें 1895 में गिरफ्तार किया गया लेकिन वे जल्द ही जेल से छूटकर आ गए.
बिरसा मुंडा ने जल-जंगल-जमीन को बचाने के लिए उलगुलान किया था. जनवरी 1900 में डोंबरी पहाड़ पर बिरसा जब जनसभा को संबोधित कर रहे थे तब अंग्रेजों से लंबा संघर्ष हुआ और इसमें कई आदिवासी मारे गए. बाद में 3 मार्च 1900 को चक्रधरपुर में बिरसा की गिरफ्तारी हुई. 9 जून 1900 को बिरसा ने अंतिम सांस ली. वैसे तो बिरसा मुंडा के निधन का कोई प्रमाण नहीं है लेकिन, आरोप है कि अंग्रेजों ने जहर देकर उन्हें मार दिया था.