खूंटीः मन्नत पूरी करने वाली मां दुर्गा के दरबार मे सालों भर भक्तों की भीड़ रहती है. श्रद्धालु अपनी पीड़ा लेकर मां के दरबार में अर्जी लगाने आते हैं, माता सभी के दुख हरती हैं और उन्हें खुशहाली प्रदान करती हैं. मन्नत पूरी होने और माता का आशीर्वाद प्राप्त होने के बाद दोबारा भक्त खुशी मन से मां की आराधना करने के लिए आते हैं. खूंटी का सोनमेर माता का मंदिर, लोगों के आस्था का केंद्र (Sonmer Mata Mandir of Khunti) है. ईटीवी भारत के साथ इस नवरात्रि जानिए, सोनमेर माता की महिमा (Sonmer Mandir significance) के बारे में.
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कोई लापता है और दुर्गा मां से मांग लो तो वो वापस घर लौट जाता है, किसी की गाड़ी चोरी हो गई है तो माता उसे उसके घर तक भेजवा देती है. किसी को शादी नहीं हो रही है तो माता शादी भी करवा देती हैं. किसी का पति छोड़कर चला गया तो उसका पति उसके पास वापस लौट आता है. ऐसी कई मन्नतों को पूरी करने वाली दुर्गा माता के दरबार मे रोजाना भक्तों की भीड़ रहती है. लाखों आदिवासियों एवं गैर आदिवासियों का आस्था का केंद्र है, खूंटी के कर्रा स्थित सोनमेर माता का मंदिर. दस भुजाधारी सोनमेर माता दुर्गा मां के दरबार में सालों भर भक्तों का तांता लगा रहता है. लेकिन प्रत्येक मंगलवार को दस भुजी माता की पूजा से विशेष आशीर्वाद की प्राप्ति होती है. इसके अलावा नवरात्रि के मौके पर सोनमेर मंदिर में माता की पूजा का विशेष महत्व (navratri puja in Sonmer Mandir) है.
नवरात्रि समाप्ति के 5 दिन बाद आश्विन पूर्णिमा में बड़े पैमाने में मेले का आयोजन किया जाता है. जिसमें राज्य के बाहर से व्यापारी अपने समानों की बिक्री के लिए पहुंचते हैं. पूर्व में सोनमेर मंदिर में नवरात्रि की पूजा बड़े धूमधाम से आयोजित होती थी. मान्यता है कि जरियागढ़ के राजा के आदेश के बाद नवरात्रि के 5 दिन बाद मेला लगा कर पूजा आयोजित होने लगी. इस मेले के बाद भैंसे की बलि दी जाती है. सोनमेर में माता का पिंड लगभग 200 साल पुराना है. 1981 में धल परिवार के सौजन्य से वर्तमान मंदिर की आधारशिला रखी गई. वर्तमान में ओडिशा के कारीगरों द्वारा भव्य 51 फीट ऊंचा गुंबज तैयार किया गया है. मंदिर में पाहन के द्वारा पूजा करवाई जाती है. मंदिर समिति के अध्यक्ष किशोर बड़ाइक ने बताया की झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश से बड़ी संख्या में भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं. इसके बाद मनोकामना की पूर्ति होने पर आभार जताने वो दोबारा इस मंदिर में आते हैं. ऐसा माना जाता है कि सच्चे मन से प्रार्थना करने पर मां अपने भक्तों की मन्नत अवश्य पूरी करती हैं.
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कर्रा के सोनमेर गांव में दुर्गा पूजा के अवसर पर सैकड़ों साल से मेला लग रहा है. आदिकाल में क्षेत्र के लोगों के द्वारा जरियागढ़ महाराज से माता की मंदिर के लिए विषय में प्रार्थना की गई थी. राजा के प्रयासों से 10 भुजी माता की मूर्ति की स्थापना हुई. बताया जाता है कि पूर्वजों को मां दुर्गा ने सपने कहा कि मैं तेरे गांव के टोंगरी में बसी हूं. इस सपने के बाद सुबह हड़िया पहान टोंगरी में जाकर देखता है तो एक शिला दशभुजी मां दुर्गा की आकृति लिए खड़ी है. पहान तत्काल वह नहा धोकर कांसा का लोटा में जल लेकर जलार्पण किया. पहान द्वारा प्रत्येक दिन यह कार्य को देखकर गांव में वाले भी पूजा करने लगे और मन्नते मांगने लगे और लोगों को मां भगवती का आशीर्वाद प्राप्त होने लगा. धीरे-धीरे सोनमेर माता की महिमा की चर्चा पूरे प्रखंड में फैल गयी. माता की महिमा जानकर दूर-दराज के इलाकों से भी भक्त माता के दर्शन के लिए आने (Khunti center of faith for people) लगे.
रामेश्वर धल व ग्रामीणों के द्वारा मां की प्रतिमा को पहले झाड़ियों से घेरा गया. इसके बाद 1991 में जगपति धल की अगुवाई में मंदिर का शिलान्यास किया गया. माता की पूजा के लिए भक्त घर से रंगुवा मुर्गा, नारियल, फूल, अक्षत लेकर सुबह मंदिर में आते हैं. मन्नत पूरा होने पर बकरे की बलि दी जाती है. लोगों में यह भी मान्यता है कि अगर कोई चीज गुम हो जाए तो यहां आकर मां सोनमेर माता की पूजा अर्चना करने से उस वस्तु की प्राप्ति होती है.