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पत्थलगड़ी या काला कानून! जानिए कैसे हुई झारखंड में इसकी शुरूआत

झारखंड में पत्थलगड़ी का इतिहास काफी पुराना है लेकिन इसके विवाद की शुरूआत चार साल पहले खूंटी से हुई. ग्राम सभा को विशेष अधिकार होने और पंचायती राज व्यवस्था को नकारने की बात पत्थलगड़ी समर्थकों ने प्रशासन और सरकार को चुनौती देते हुए सरकारी योजनाओं की खिलाफ आवाज उठाने लगे.

pathalgadi, पत्थलगड़ी
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Published : Jan 22, 2020, 5:03 AM IST

Updated : Jan 22, 2020, 7:09 AM IST

खूंटी:पत्थलगड़ी विवाद का इतिहास लगभग चार साल पुराना है. जब जनवरी 2017 में खूंटी के भंडरा से पत्थलगड़ी कर इसकी शुरुआत की गई थी. जिसके तहत पांचवी अनुसूची के क्षेत्रों में ग्राम सभा को विशेष अधिकार होने और पंचायती राज व्यवस्था को नकारने की बात पत्थलगड़ी समर्थकों ने की. इसके तहत भंडरा और आसपास के लगभग एक दर्जन गांवों में पत्थलगड़ी की गई. इन्होंने सीधे तौर पर प्रशासन और सरकार को चुनौती देते हुए आवाज बुलंद की.

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धीरे-धीरे अन्य इलाकों में फैलता गया
भावनात्मक तौर से जुड़ द्दा होने के कारण और स्थानीय प्रशासन की विफलता फलस्वरूप यह विवाद धीरे-धीरे अन्य इलाकों में फैलता चला गया. पत्थलगड़ी कर क्षेत्र में बाहरी लोगों का प्रवेश पर रोक लगाने की जानकारी से प्रशासन हरकत में आई और नेताओं के खिलाफ सख्ती से निपटने की चेतवानी प्रशासन ने शुरू की. लेकिन बात नहीं बनी, तो धीरे-धीरे पत्थलगड़ी नेता प्रशासन को चुनौती देने लगे. जिससे क्षेत्र में विकास योजनाओं को पहुंचा पाना भी जिला प्रशासन के लिए सिरदर्द बन गया. इसी दौरान कांकी इलाके में पथलगड़ी कर नेताओं ने बेरीकेटिंग कर रास्ता बंद कर दिया और सूचना पर पहुंची पुलिस को ग्रामीणों ने घेरकर बंधक बना लिया. तो सूचना पर पहुंचे जिला प्रशासन की टीम को भी पुलिस ने घेर लिया बात आगे बढ़ी तो एसडीओ और एसपी दल-बल के साथ पहुंचे. लेकिन पहले से बंधक बने टीम को छुड़ा नहीं पाए और 25 अगस्त 2017 की पूरी रात तक एसडीओ, एसपी, डीएसपी कई थाना प्रभारी समेत लगभग 200 जवानों को बंधक बना कर रखा. हालांकि सुबह डीआईजी और डीसी के हस्तक्षेप के बाद उन्हें मुक्त कराया जा सका.

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जून 2018 में हुई थी कोचांग की घटना
जिला प्रशासन की टीम को बंधक बनाने के बाद से ग्रामीणों का हौसला और बढ़ गया उसके बाद लगातार प्रशासन को चुनौती देने लग गए. फरवरी 2018 में नक्सलियों के खिलाफ अभियान में निकले सीआरपीएफ के लगभग तीन कंपनी को ग्रामीणों ने बंधक बनाया. वहां भी डीसी और एसपी पहुंचे और ग्रामीणों से सुलह कर उन्हे मुक्त करवाया गया. उसके बाद 18 जून 2018 को अड़की के कोचांग इलाके में डायन प्रथा के खिलाफ नुक्कड़ नाटक कर जागरूकता फैलाने गई छ युवतियों के साथ सामूहिक दुष्कर्म की गई. जिसमें पत्थलगडी नेता और पीएलएफआई नक्सलियों ने घटना को अंजाम दिया.

सांसद कड़िया मुंडा के हाउस गार्ड का किया था अपहरण
घटना की कार्रवाई के दौरान घाघरा में पत्थलगड़ी नेताओं ने पुलिस को चुनौती देते हुए सभा की लेकिन पुलिस और ग्रामीणों में भिडंत हो गई और पुलिस ने जमकर लाठियां भांजी. इसी दौरान भागते हुए पत्थलगड़ी समर्थकों ने 26 जून को सांसद कड़िया मुंडा के घर से हॉउस गार्ड के तीन और पुलिस के एक जवान का हथियार समेत अपहरण कर अपने साथ ले गए. जून के अंत में पुलिस ने उनके खिलाफ सीधे कार्रवाई की जिसमें कथित तौर पर एक ग्रामीण की मौत हुई थी. ग्रामीणों ने आरोप लगाया था कि पुलिस की गोली से मौत हुई थी. घटना के लगभग एक सप्ताह के बाद पुलिस ने जवानों को मुक्त कराया था और जब्त हथियार भी बरामद किया था. उसके बाद पत्थलगड़ी समर्थकों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई तेज हुई और जल्द ही कई पत्थलगड़ी समर्थक नेता और अगुआ को पुलिस ने गिरफ्तार किया था.

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समर्थन में लिखने वालों पर दर्ज हो चुका है देशद्रोह का मुकदमा
प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी और प्रशासन की करवाई के बाद ये आंदोलन कमजोर पड़ गया. इस बीच पुलिस ने सोशल मीडिया में पत्थलगड़ी के समर्थन में लिखने वालों सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया. जिसके बाद आंदोलन में एक नए विवाद की भी शुरुवात हो गई. लेकिन वो ज्यादा दिनों तक नहीं चला क्योंकि पुलिस लगातार नेताओं को चिन्हित स्थान से एक-एक कर गिरफ्तार करते चली गई. जिससे आंदोलन ठप पड़ गया और क्षेत्रों में प्रशासन ने जागरूकता अभियान चलाना शुरू कर दिया जिसमें लोग जुड़ते चले गए लेकिन पत्थलगड़ी आंदोलन की आग बुझा नहीं लेकिन शांत जरुर हो गया था लेकिन चाईबासा की घटना के बाद मानो इस आंदोलन को फिर से पर लग गए हैं.

Last Updated : Jan 22, 2020, 7:09 AM IST

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